Translations:Adept/4/hi: Difference between revisions

From TSL Encyclopedia
No edit summary
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
निपुण होने का अर्थ है ईश्वर के मन में प्रवेश करने के लिए अपने भीतर ईश्वर की लौ और ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त करना। इसका मतलब यह है की आप किसी भी परिस्तिथि में विचलित नहीं होते, स्तिथि कितनी ही विषम क्यों न हो, आप अपने मार्ग पर पर अडिग रहते हैं। निपुण व्यक्ति सदा स्थिर भाव से रहते हैं, बिल्कुल ताई ची
विशेषज्ञ होने का अर्थ है ईश्वर के मन में प्रवेश करने के लिए अपने भीतर ईश्वर की लौ और ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त करना। इसका मतलब यह है की आप किसी भी परिस्तिथि में विचलित नहीं होते, स्तिथि कितनी ही विषम क्यों न हो, आप अपने मार्ग पर पर अडिग रहते हैं। विशेषज्ञ सदा स्थिर भाव से रहते हैं, बिल्कुल ताई ची (T’ai Chi) के मध्य में। वह व्यक्ति स्वयं को सर्वोच्च रूप से ईश्वर के रूप में जानता है क्योंकि ईश्वर ने मानव की जगह ले ली है। यह एकीकरण ही आपका लक्ष्य है...
(T’ai Chi) के मध्य में। वे यह जान पाते हैं कि उनके अंदर ईश्वर का वास है, ईश्वर ने मानव की जगह ले ली है। यह एकीकरण ही आपका लक्ष्य है...

Latest revision as of 11:03, 5 December 2023

Information about message (contribute)
This message has no documentation. If you know where or how this message is used, you can help other translators by adding documentation to this message.
Message definition (Adept)
To be an adept means to have a certain mastery for the holding of Light, for the crystallization of the God-flame within you and for the entering in to the Mind of God. It means, beloved, that you are moved neither to the right nor to the left, neither up nor down by circumstances, by whatever negative is hurled at you. Adeptship is to be unmoved, to be in the center of the T’ai Chi, to know oneself supremely as God but never as a human god—for God has displaced the human. This is your goal of union....

विशेषज्ञ होने का अर्थ है ईश्वर के मन में प्रवेश करने के लिए अपने भीतर ईश्वर की लौ और ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त करना। इसका मतलब यह है की आप किसी भी परिस्तिथि में विचलित नहीं होते, स्तिथि कितनी ही विषम क्यों न हो, आप अपने मार्ग पर पर अडिग रहते हैं। विशेषज्ञ सदा स्थिर भाव से रहते हैं, बिल्कुल ताई ची (T’ai Chi) के मध्य में। वह व्यक्ति स्वयं को सर्वोच्च रूप से ईश्वर के रूप में जानता है क्योंकि ईश्वर ने मानव की जगह ले ली है। यह एकीकरण ही आपका लक्ष्य है...