Translations:Karma/43/hi: Difference between revisions

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मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के  सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,<ref>देखिये [[Special:MyLanguage/Lake of Fire|अग्नि की झील]] में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"<ref>Matt. २५:४१.</ref>
मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के  सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,<ref>देखिये [[Special:MyLanguage/Lake of fire|अग्नि की झील]].</ref> में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"<ref>Matt. २५:४१.</ref>

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Message definition (Karma)
In Matthew 25 Jesus illustrates that the final judgment is based on the karma of an active (positive) or an inactive (negative) Christianity. Here works of love (i.e., charity) are the key to salvation. The Lord promises to those who minister unto him even in the person of “one of the least of these my brethren”<ref>Matt. 25:40.</ref> that they shall inherit the kingdom; whereas to those who do not minister unto him for the very love of Christ in all people, he says, “Depart from me, ye cursed, into everlasting fire,<ref>See [[Lake of fire]].</ref> prepared for the devil and his angels.”<ref>Matt. 25:41.</ref>

मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।[1] ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,[2] में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"[3]

  1. Matt. २५:४०.
  2. देखिये अग्नि की झील.
  3. Matt. २५:४१.