Translations:Maha Chohan/25/hi: Difference between revisions
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
| (6 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
| Line 1: | Line 1: | ||
ईश्वरीय ऊर्जा प्रकाश के एक छोटे से बीज के रूप में पृथ्वी के ह्रदय और प्रत्येक पदार्थ में प्रवेश करती है और फिर रूप और अस्तित्व, विचार और धारणा की प्रत्येक कोशिका में फैल कर अध्यात्मविद्या और चेतना का भण्डार बन जाती है। बहुत से लोग यह जान नहीं पाते परन्तु कुछ ज़रूर पहचान जाते हैं। उस दिव्य ज्ञान के प्रकाश को फैलाते हुए जो नश्वर धारणा से परे है और शाश्वतता की सुबह की ताजगी में है, यही प्रकाश हर क्षण को ईश्वर-आनंद से भर देता है—वह आनंद जिसे मनुष्य अपनी चेतना में उठने वाली अनगिनत अनुभूतियों के द्वारा पहचानता है।” <ref>द महा चौहान, “द डिसेंट ऑफ़ द होली स्पिरिट (The Descent of the Holy Spirit),” {{POWref|७|४८, २७ नवम्बर, १९६४}}</ref> | |||
</blockquote> | </blockquote> | ||
Latest revision as of 11:14, 15 December 2025
ईश्वरीय ऊर्जा प्रकाश के एक छोटे से बीज के रूप में पृथ्वी के ह्रदय और प्रत्येक पदार्थ में प्रवेश करती है और फिर रूप और अस्तित्व, विचार और धारणा की प्रत्येक कोशिका में फैल कर अध्यात्मविद्या और चेतना का भण्डार बन जाती है। बहुत से लोग यह जान नहीं पाते परन्तु कुछ ज़रूर पहचान जाते हैं। उस दिव्य ज्ञान के प्रकाश को फैलाते हुए जो नश्वर धारणा से परे है और शाश्वतता की सुबह की ताजगी में है, यही प्रकाश हर क्षण को ईश्वर-आनंद से भर देता है—वह आनंद जिसे मनुष्य अपनी चेतना में उठने वाली अनगिनत अनुभूतियों के द्वारा पहचानता है।” [1]
- ↑ द महा चौहान, “द डिसेंट ऑफ़ द होली स्पिरिट (The Descent of the Holy Spirit),” Pearls of Wisdom, vol. ७, no. ४८, २७ नवम्बर, १९६४.