Karmic Board/hi: Difference between revisions
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अपनी अपरिमित दया दिखाते हुए भगवान ने कार्मिक बोर्ड के सदस्यों को मनुष्यों और ईश्वर के बीच मध्यस्तता करने के लिए नियुक्त किया है। कार्मिक बोर्ड मानव जाति की स्व-चेतना के स्तर पर कार्य करता है और प्रतिदिन मानव जाति द्वारा ऊर्जा के उपयोग के संतुलन को नापता है। | |||
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== कार्य == | |||
कर्म के स्वामी व्यक्तिगत कर्म, समूह कर्म, राष्ट्रीय कर्म और विश्व कर्म के चक्रों का निर्णय करते हैं। इन कर्म चक्रों को निर्धारित करते समय उनका मंतव्य केवल लोगों की आध्यात्मिक उन्नति होता है। जब कर्म के स्वामी पृथ्वी के लिए कर्म का एक चक्र जारी करते हैं, तो वे प्रकृति साम्राज्य को भी विशेष कार्य देते हैं - ये कार्य [[Special:MyLanguage/law of cycles|चक्र के नियम]] के अनुसार ही होते हैं। | |||
मनुष्यों के आपसी मतभेदों और प्रकृति की अवमानना का सबसे ज़्यादा असर [[Special:MyLanguage/elemental|सृष्टि देवो]] पर पड़ता है। हज़ारों वर्ष पहले [[Special:MyLanguage/Lemuria|लेमूरिया]] महाद्वीप का प्रशांत महासागर में डूबना इस बात की पुष्टि करता है। यह उस समय के पुजारियों द्वारा पवित्र अग्नि का अत्याधिक दुरुपयोग करने के कारण हुआ था। | |||
जलवायु में परिवर्तन, तूफान, बाढ़, आग, बवंडर और प्रलय - सब मनुष्य द्वारा [[Special:MyLanguage/Holy Spirit|पवित्र आत्मा]] की रचनात्मक शक्ति के दुरुपयोग का परिणाम है। समय समय पर होनेवाली ये प्राकृतिक गड़बड़ियां सृष्टि के मौलिक तत्वों का संतुलन बहाल करती हैं और पृथ्वी के चार निचले शरीर पुनः व्यवस्थित हो जाते हैं। | |||
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साल में दो बार, [[Special:MyLanguage/winter solstice|शीतकालीन]] और ग्रीष्मकालीन संक्रांति पर, कर्म के देवता मनुष्यों की याचिकाओं की समीक्षा करने के लिए [[Special:MyLanguage/Royal Teton Retreat|रॉयल टेटन रिट्रीट]] में मिलते हैं। इन याचिकाओं में दिव्यगुरूओं के शिष्य सकारात्मक कार्यों को करने के लिए उनसे ऊर्जा, प्रकाश-रुपी उपहार और अनुदान का अनुरोध करते हैं। इस सभी पत्रों को पवित्र करने के बाद जला दिया जाता है जिसके बाद देवदूत इन्हें आकाशीय स्तर पर रॉयल टेटन रिट्रीट में ले जाते हैं, जहां कर्म के स्वामी सबकी याचिकाएं पढ़ते हैं। | |||
जो शिष्य ईश्वर की सहायता माँगते है, वे बदले में किसी विशेष कार्य या सेवा करने का प्रण कर सकते हैं, या फिर वे नियमित रूप से ईश्वर की [[Special:MyLanguage/prayer|प्रार्थना]] और [[Special:MyLanguage/decree|डिक्री]] करने की प्रतिज्ञा ले सकते हैं। मनुष्यों द्वारा की गयी डिक्रीस दिव्यगुरूओं के लिए एक निधि समान होती हैं जिसका उपयोग वे विश्व के लिए कल्याणकारी कार्यों में कर सकते हैं। शिष्य अपने [[Special:MyLanguage/causal body|कारण शरीर]] का एक भाग ऊर्जा के रूप में भी दिव्यगुरूओं दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कर्म के स्वामी की अनुमति लेनी होती है। कारण शरीर का कितना भाग दिया जा सकता है यह उस व्यक्ति के ईश्वरीय स्वरुप और पवित्र आत्मिक स्व पर निर्भर करता है। | |||
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Latest revision as of 11:04, 10 May 2024
कार्मिक बोर्ड आठ दिव्यगुरुओं की एक संस्था है जो पृथ्वी के प्रत्येक जीव की ज़िम्मेदारी उठाती है। इनका कार्य हर एक जीव को उसके कर्म के अनुसार, दया दिखाते हुए, उचित इन्साफ देना है। ये सभी २४ वरिष्ठ दिव्यात्माओं के अधीन रहते हुए, पृथ्वी के जीवों और उनके कर्मों के बीच मध्यस्तता का काम करते हैं।
प्रत्येक जीवात्मा को पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले और पृथ्वी से पलायन (मृत्यु) के बाद कार्मिक बोर्ड के सामने प्रस्तुत होने होता है। यहाँ उनके पूर्व जीवन का अवलोकन और आगामी जीवन के कर्मों का आवंटन होता है। मनुष्यों के जीवन का लेखा-जोखा रखने वाले तथा उनकी सूचीपत्र के रखवाले कर्म के स्वामी को हर एक मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के कर्मों के अभिलेख दिखाते हैं। फिर इस बात का निर्णय होता है कि कौन सी जीवात्मा पृथ्वी पर पुनः जन्म लेगी और उसका जन्म कब और कहाँ होगा। वे जीवात्मा के कर्मों का अवलोकन कर इस बात का भी निर्णय लेते हैं हैं कि उसे कैसा परिवार और समुदाय मिलेगा। जीवात्मा के ईश्वरीय स्वरुप और उसकी स्व चेतना के साथ विचार विमर्श कर के कार्मिक बोर्ड के सदस्य इस बात का भी निर्णय लेते हैं कि वह समय कब आएगा जब जीवात्मा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो ईश्वर के श्री चरणों में विलीन हो जायेगी।
सदस्य
कार्मिक बोर्ड के सदस्य निम्नलिखित हैं: महान दिव्य निर्देशक (ये पहली किरण का प्रतिनिधित्व करते हैं , स्वतंत्रता की देवी (दूसरी किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं), दिव्यगुरु लेडी मास्टर नाडा (तीसरी किरण के प्रतिनिधित्व करती हैं), एलोहिम साइक्लोपीया (ये चौथी किरण का प्रतिनिधित्व करते हैं), सत्य की देवी पालस एथेना (ये पांचवीं किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं), न्याय की देवी पोर्शिया (ये छठी किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं) और दया की देवी कुआन यिन (ये सातवीं) किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं)। थोड़ा समय पहले पांच ध्यानी बुद्धों में से एक वैरोचन कार्मिक बोर्ड के आठवें सदस्य बनाये गए हैं।
अपनी अपरिमित दया दिखाते हुए भगवान ने कार्मिक बोर्ड के सदस्यों को मनुष्यों और ईश्वर के बीच मध्यस्तता करने के लिए नियुक्त किया है। कार्मिक बोर्ड मानव जाति की स्व-चेतना के स्तर पर कार्य करता है और प्रतिदिन मानव जाति द्वारा ऊर्जा के उपयोग के संतुलन को नापता है।
कार्य
कर्म के स्वामी व्यक्तिगत कर्म, समूह कर्म, राष्ट्रीय कर्म और विश्व कर्म के चक्रों का निर्णय करते हैं। इन कर्म चक्रों को निर्धारित करते समय उनका मंतव्य केवल लोगों की आध्यात्मिक उन्नति होता है। जब कर्म के स्वामी पृथ्वी के लिए कर्म का एक चक्र जारी करते हैं, तो वे प्रकृति साम्राज्य को भी विशेष कार्य देते हैं - ये कार्य चक्र के नियम के अनुसार ही होते हैं।
मनुष्यों के आपसी मतभेदों और प्रकृति की अवमानना का सबसे ज़्यादा असर सृष्टि देवो पर पड़ता है। हज़ारों वर्ष पहले लेमूरिया महाद्वीप का प्रशांत महासागर में डूबना इस बात की पुष्टि करता है। यह उस समय के पुजारियों द्वारा पवित्र अग्नि का अत्याधिक दुरुपयोग करने के कारण हुआ था।
जलवायु में परिवर्तन, तूफान, बाढ़, आग, बवंडर और प्रलय - सब मनुष्य द्वारा पवित्र आत्मा की रचनात्मक शक्ति के दुरुपयोग का परिणाम है। समय समय पर होनेवाली ये प्राकृतिक गड़बड़ियां सृष्टि के मौलिक तत्वों का संतुलन बहाल करती हैं और पृथ्वी के चार निचले शरीर पुनः व्यवस्थित हो जाते हैं।
मानव जाति की याचिकाएँ
► मुख्य लेख: कार्मिक बोर्ड को दी जानेवाली याचिकाएँ
साल में दो बार, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन संक्रांति पर, कर्म के देवता मनुष्यों की याचिकाओं की समीक्षा करने के लिए रॉयल टेटन रिट्रीट में मिलते हैं। इन याचिकाओं में दिव्यगुरूओं के शिष्य सकारात्मक कार्यों को करने के लिए उनसे ऊर्जा, प्रकाश-रुपी उपहार और अनुदान का अनुरोध करते हैं। इस सभी पत्रों को पवित्र करने के बाद जला दिया जाता है जिसके बाद देवदूत इन्हें आकाशीय स्तर पर रॉयल टेटन रिट्रीट में ले जाते हैं, जहां कर्म के स्वामी सबकी याचिकाएं पढ़ते हैं।
जो शिष्य ईश्वर की सहायता माँगते है, वे बदले में किसी विशेष कार्य या सेवा करने का प्रण कर सकते हैं, या फिर वे नियमित रूप से ईश्वर की प्रार्थना और डिक्री करने की प्रतिज्ञा ले सकते हैं। मनुष्यों द्वारा की गयी डिक्रीस दिव्यगुरूओं के लिए एक निधि समान होती हैं जिसका उपयोग वे विश्व के लिए कल्याणकारी कार्यों में कर सकते हैं। शिष्य अपने कारण शरीर का एक भाग ऊर्जा के रूप में भी दिव्यगुरूओं दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कर्म के स्वामी की अनुमति लेनी होती है। कारण शरीर का कितना भाग दिया जा सकता है यह उस व्यक्ति के ईश्वरीय स्वरुप और पवित्र आत्मिक स्व पर निर्भर करता है।
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, एस.वी. “कार्मिक बोर्ड”