Translations:Ascension/8/hi: Difference between revisions
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<blockquote>हमारे इश्वरिये स्वरूप के हृदय में स्तिथ लौ भौतिक शरीर के हृदय की (in the heart of the Presence)[[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिज्योति लौ]] (threefold flame) को आकर्षित करती है और प्रकाशरूपी परिधान उस व्यक्ति को पवित्र प्रकाश की डोर के द्वारा अपने अंदर समेट लेता है जिस से उस व्यक्ति की आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। इसके बाद इंसान के शरीर में कुछ | <blockquote>हमारे इश्वरिये स्वरूप के हृदय में स्तिथ लौ भौतिक शरीर के हृदय की (in the heart of the Presence)[[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिज्योति लौ]] (threefold flame) को आकर्षित करती है और प्रकाशरूपी परिधान उस व्यक्ति को पवित्र प्रकाश की डोर के द्वारा अपने अंदर समेट लेता है जिस से उस व्यक्ति की आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। इसके बाद इंसान के शरीर में कुछ असाधारण (Tremendous) बदलाव होते हैं जिनके फ़लस्वरूप शरीर पूरी तरह से पवित्र हो जाता है। फिर भौतिक शरीर हल्का होना शुरू होता है, और हल्का होते होते पूर्णतः भारहीन होकर आसमान में ऊपर उठने लगता है, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उसपर असर नहीं होता। प्रकाश से आच्छादित ये शरीर ऐसा ही प्रतीत होता है जैसा परमपिता परमेश्वर के शरीर के बारे में हम जानते है। इसके बाद भौतिक शरीर गौरवशाली आध्यात्मिक शरीर में परिवर्तित हो जाता है।<ref>{{DOA}}, pp. 157–59, 175–77.</ref></blockquote> |
Revision as of 08:20, 7 November 2023
हमारे इश्वरिये स्वरूप के हृदय में स्तिथ लौ भौतिक शरीर के हृदय की (in the heart of the Presence)त्रिज्योति लौ (threefold flame) को आकर्षित करती है और प्रकाशरूपी परिधान उस व्यक्ति को पवित्र प्रकाश की डोर के द्वारा अपने अंदर समेट लेता है जिस से उस व्यक्ति की आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। इसके बाद इंसान के शरीर में कुछ असाधारण (Tremendous) बदलाव होते हैं जिनके फ़लस्वरूप शरीर पूरी तरह से पवित्र हो जाता है। फिर भौतिक शरीर हल्का होना शुरू होता है, और हल्का होते होते पूर्णतः भारहीन होकर आसमान में ऊपर उठने लगता है, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उसपर असर नहीं होता। प्रकाश से आच्छादित ये शरीर ऐसा ही प्रतीत होता है जैसा परमपिता परमेश्वर के शरीर के बारे में हम जानते है। इसके बाद भौतिक शरीर गौरवशाली आध्यात्मिक शरीर में परिवर्तित हो जाता है।[1]
- ↑ Serapis Bey, Dossier on the Ascension, pp. 157–59, 175–77.