Translations:Dweller-on-the-threshold/5/hi: Difference between revisions
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप सर्प के सामान है और जब आत्मा की उपस्थिति से मनुष्य के अंदर सोया हुआ सर्प जाग जाता है, तो जीवात्मा को अपंने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम ऊर्जा का हनन (slay) करने का निर्णय | अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप सर्प के सामान है और जब आत्मा की उपस्थिति से मनुष्य के अंदर सोया हुआ सर्प जाग जाता है, तो जीवात्मा को अपंने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम ऊर्जा का हनन (slay) करने का निर्णय और अपने वास्तविक स्वरुप का पक्ष लेना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक जीवात्मा पूरी तरह से आत्मा में विलीन नहीं हो जाती। आत्मा ही वास्तव में ईश्वर है, [[Special:MyLanguage/THE LORD OF OUR RIGHTEOUSNESS|न्याय-परायण ईश्वर]] जो [[Special:MyLanguage/initiation|दीक्षा]] के मार्ग पर अग्रसर हर जीव का सच्चा स्वरुप है। |
Revision as of 10:23, 3 April 2024
अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप सर्प के सामान है और जब आत्मा की उपस्थिति से मनुष्य के अंदर सोया हुआ सर्प जाग जाता है, तो जीवात्मा को अपंने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम ऊर्जा का हनन (slay) करने का निर्णय और अपने वास्तविक स्वरुप का पक्ष लेना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक जीवात्मा पूरी तरह से आत्मा में विलीन नहीं हो जाती। आत्मा ही वास्तव में ईश्वर है, न्याय-परायण ईश्वर जो दीक्षा के मार्ग पर अग्रसर हर जीव का सच्चा स्वरुप है।