Human consciousness/hi: Difference between revisions
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary Tags: Mobile edit Mobile web edit |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
| Line 1: | Line 1: | ||
<languages /> | <languages /> | ||
वह चेतना जो स्वयं को मानव के रूप में जानती है - यह सीमित ज्ञान है जो मनुष्य को नश्वर, पतित, पापी, त्रुटिओं | वह चेतना जो स्वयं को मानव के रूप में जानती है - यह सीमित ज्ञान है जो मनुष्य को नश्वर, पतित, पापी, त्रुटिओं से भरा हुआ और इंद्रियों के अधीनस्थ | ||
कर देता है। और इसी कारण आत्मिक चेतना [[Special:MyLanguage/Son of man|मनुष्य के पुत्र]] के साथ घोषणा करती है: "मैं एक तुच्छ मानव हूं" और स्वयं से कुछ नहीं कर सकता। मुझ में निहित पिता का रूप ([[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]]) ही भगवान् के सारे कार्य करता है।''<ref>जॉन ५:३०; १४:१०.</ref> | |||
<span id="See_also"></span> | <span id="See_also"></span> | ||
Revision as of 08:53, 1 February 2025
वह चेतना जो स्वयं को मानव के रूप में जानती है - यह सीमित ज्ञान है जो मनुष्य को नश्वर, पतित, पापी, त्रुटिओं से भरा हुआ और इंद्रियों के अधीनस्थ कर देता है। और इसी कारण आत्मिक चेतना मनुष्य के पुत्र के साथ घोषणा करती है: "मैं एक तुच्छ मानव हूं" और स्वयं से कुछ नहीं कर सकता। मुझ में निहित पिता का रूप (ईश्वरीय स्वरूप) ही भगवान् के सारे कार्य करता है।[1]
इसे भी देखिये
दहलीज़ पर रहने वाला हमारा नकरात्मक रूप
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation
- ↑ जॉन ५:३०; १४:१०.