Lord of the World/hi: Difference between revisions
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Revision as of 09:12, 5 November 2025
किसी भी ग्रह पर विश्व के स्वामी के पदानुक्रम के कार्यालय में वहां के ईश्वरत्व का सर्वोच्च अधिकार निहित होता है। कर्मों के स्वामी (Lords of Karma) की अनुशंसा पर, इस पद को धारण करने वाले व्यक्ति का चुनाव सौर प्राणियों (Solar Logoi) द्वारा उन लोगों में से किया जाता है जिन्होंने बौद्ध दीक्षाएँ प्राप्त की हैं और पदानुक्रम के नियमों के अनुसार किसी विशेष लोक में सबसे उन्नत दीक्षा प्राप्त की है।
विश्व के स्वामी ग्रह के साइलेंट वॉचर से संसार की दिव्य रूपरेखा प्राप्त करते हैं, और वे मानवजाति, देवदूतों एवं सृष्टिदेवो की ओर से त्रिगुणात्मक लौ की रक्षा करते हैं। इस प्रकार वे चैतन्य लौ को पदार्थ और आत्मा के स्तर पर मूर्त रूप में प्रकट होने में सहायता करते हैं। वे पांच गुप्त किरणों समेत ईश्वरीय चेतना के सभी स्तरों पर अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं। आतंरिक (पांच गुप्त किरणें) और बाह्य (कारण शरीर की सात किरणें) दोनों स्तरों में प्रवीण होने के कारण वे ग्रह के चार निचले शरीरों में शान्ति का संतुलन बनाये रखते हैं।
विश्व के वर्तमान स्वामी गौतम बुद्ध
वर्तमान समय में गौतम बुद्ध विश्व के स्वामी का पदभार संभाल रहे हैं। Rev. ११:४ में इन्हें "पृथ्वी के भगवान" के रूप में संदर्भित किया गया है। गौतम बुद्ध से पहले सनत कुमार ने हज़ारों सालों तक इस पद पर कार्य किया था। सनत कुमार आध्यात्मिक पदक्रम में सर्वोच्च हैं जबकि गौतम बुद्ध सबसे अधिक विनम्र दिव्यगुरु हैं।
आंतरिक स्तर पर ये उन जीवों की त्रिदेव ज्योत को बनाए रखते हैं जिनका उनके ईश्वरीय स्वरुप के साथ संपर्क समाप्त हो गया है; जिनके नकारात्मक कर्म इतने अधिक हैं कि वे पृथ्वी पर अपनी आत्माओं के भौतिक स्वरुप को बनाए रखने के लिए ईश्वर से पर्याप्त प्रकाश ले पाने में भी असमर्थ हैं। गौतम बुद्ध प्रकाश की एक महीन, चमकीली, चांदी की धारा के माध्यम से अपने हृदय को भगवान के सभी बच्चों के हृदयों के साथ जोड़ते हैं। ऐसा करके वे इन सभी जीवों की त्रिदेव ज्योत का पोषण करते हैं - वह त्रिदेव ज्योत जिसे वास्तव में उनकी स्वयं की आत्मिक चेतना से पोषित हो प्रेम, ज्ञान और शक्ति के सागर के रूप में प्रज्वलित होना चाहिए।
विश्व के पूर्व स्वामी सनत कुमार
गौतम बुद्ध को विश्व के स्वामी का पद १ जनवरी १९५६ में मिला - यह पद उनको शुक्र ग्रह के स्वामी सनत कुमार से मिला था। सनत कुमार ने इस पद को एक लम्बे समय तक संभाला था, और उस समय संभाला था जब पृथ्वी अपनी सबसे ज़्यादा अंधकारमय घड़ी से गुज़र रही थी। समय से भी प्राचीन माने जानेवाले, सनत कुमार हज़ारों वर्ष पूर्व स्वेच्छा से पृथ्वी पर आये थे - यह वह समय था जब ब्रह्मांडीय परिषदने पृथ्वी का विलय करने की घोषणा की थी। उस समय मनुष्य ब्रह्मांडीय कानून से पूर्णतया: विमुख हो गया था, उनसे जानबूझ कर स्वयं के ईश्वरीय स्वरूप को नकार दिया था जिसके फलस्वरूप ब्रह्मांडीय परिषद् ने यह निर्णय किया था कि मानवजाति को अब कोई और मौका नहीं देना चाहिए। पृथ्वी को बचाने के लिए कानूनन एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो अत्यंत निर्मल हो और भौतिक स्तर पर न सिर्फ रहे बल्कि सभी पृथ्वीवासियों की त्रिगुणांत्मक लौ को भी संतुलित रख सके। सनत कुमार ने स्वयं को इस कार्य के लिए प्रस्तुत किया था।
द ओपनिंग ऑफ़ द सेवेंथ सील में सनत कुमार बताते हैं कि कैसे वीनस के भक्तों ने स्वेच्छा से उनका साथ दिया और लौ को बनाए रखने में सहायता करने के लिए पृथ्वी पर आने का निश्चय किया:
अगर पृथ्वी के लिए कुछ करने में आनंद था तो मुझे अपने ग्रह शुक्र से अलग होने का दुःख भी था। मैंने एक अंधेरे ग्रह पर जाना स्वयं चुना था। और यद्यपि पृथ्वी का स्वतंत्र होना तय था, हम सब यह भी जानते थे कि यह समय मेरी आत्मा के लिए एक लंबी अंधेरी रात होगी। तभी अचानक घाटियों और पहाड़ों से मेरे बच्चों का एक बहुत बड़ा समूह निकल के सामने आया - मैंने देखा एक लाख चवालीस हजार जीवात्माएं हमारे प्रकाश के महल की ओर आ रही थीं। बारह टोलियों में बटें वे लोग स्वतंत्रता, प्रेम और विजय के गीत गाते हुए मेरे पास आ रहे थे। बालकनी में खड़े मैं और वीनस उन्हें देख रहे थे। तभी हमने एक तेरहवें गुट को देखा, जिसमें सभी ने श्वेत कपड़े पहने हुए थे। यह मेल्कीसेदेक वर्ग के शाही पुरोहित थे।
वे सभी लोग हमारे घर के आस पास इकट्ठे हो गए और पहले उन्होंने मेरी प्रशंसा और मेरे प्रति उनके असीम प्यार के गीत गाये। इसके बाद उनके प्रवक्ता ने बोलना शुरू किया। ये प्रवक्ता वही थे जिन्हे आज आप विश्व के स्वामी गौतम बुद्ध के नाम से जानते हैं। उन्होंने हमसे कहा, "हमने पृथ्वी पर जाने के आपके संकल्प के बारे में सुना है। हम जानते हैं कि आप पृथ्वीवासियों की त्रिदेव ज्योत को बनाये रखना चाहते हैं। आप हमारे गुरु हैं, हमारे भगवान् हैं तथा हमारा जीवन भी हैं। हम आपको अकेले नहीं जाने देंगे, हम भी आपके साथ पृथ्वी पर चलेंगे।"[1]
और इस प्रकार वे सब सनत कुमार और देवदूतों के समूह के साथ पृथ्वी पर आ गए। परन्तु उनसे भी पहले प्रकाशवाहकों के एक दल ने पृथ्वी पर आकर उनके लिए रास्ता तैयार किया और गोबी सागर (आज यह एक मरू भूमि है ) पर स्थित एक द्वीप पर श्वेत शहर शंबाल्ला की स्थापना की थी। यहाँ पर सनत कुमार ने त्रिदेव ज्योत को केंद्रित किया था, और यहीं से उन्होंने अपने ह्रदय से निकलने वाली प्रकाश की किरणों द्वारा पृथ्वी से संपर्क स्थापित किया था। और फिर शुक्र ग्रह से आये सभी स्वयंसेवकों ने अपनी प्रतिज्ञानुसार पृथ्वी पर जन्म लिया।
भौतिक सप्तक से विश्व के स्वामी की पुकार का जवाब देने वाले इन अलौकिक प्रकाशवाहकों में से सबसे पहले गौतम थे और दूसरे मैत्रेय। दोनों ने ही बोधिसत्व का मार्ग अपनाया और बुद्धत्व प्राप्त किया - पहले गौतम ने और फिर मैत्रेय ने। और इस प्रकार वे दोनों सनत कुमार के मुख्य शिष्य बन गए - एक ने अंततः विश्व के स्वामी का पद ग्रहण किया और दूसरे ने ब्रह्मांडीय आत्मा और ग्रहिय बुद्ध (Cosmic Christ and Planetary Buddha) का।
Sri Magra
Sri Magra was Lord of the World before Sanat Kumara.
कार्यालय का हस्तांतरण
१ जनवरी, १९५६ को जब गौतम बुद्ध ने विश्व के स्वामी का पद भार संभाला तब उन्होंने होने ह्रदय की लौ पृथ्वी के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन बनाये रखने की ज़िम्मेदारी भी ली। और तब सनत कुमार ने वापिस अपना 'विश्व के शासक भगवन' का पद भार लिया और वे अपने ग्रह शुक्र पर लौट गए। पृथ्वी से लौट जाने के बावजूद सनत कुमार आज भी यहां पर श्वेत महासंघ की सेवाओं पर अपनी नज़र बनाये हुए हैं।
गौतम के पुराने कार्यालय (कॉस्मिक क्राइस्ट एंड प्लेनेटरी बुद्ध) को मैत्रेय ने संभाल लिया तथा मैत्रेय के पुराने कार्यालय विश्व शिक्षक को जीसस और उनके प्रिय मित्र एवं शिष्य सेंट फ्रांसिस (कुथुमी) ने संभाल लिया। यह सारा समारोह रॉयल टेटन रिट्रीट में हुआ था। लॉर्ड लांटो ने दूसरी किरण के चौहान का पद १९५८ में ग्रहण किया; यह पद पहले कुथुमी के पास था। इसी समय नाडा ने छठी किरण के चौहान का पद ग्रहण किया, जो कि पहले के युग (मीन युग) में जीसस के पास था। जीसस मीन युग के अधिपति भी थे।
पोर्टिया और सेंट जर्मेन १ मई १९५४ को कुंभ युग के शासक बने। मैत्रेय ब्रह्मांडीय आत्मा और ग्रहिय बुद्ध (Cosmic Christ and Planetary Buddha) का प्रतिनिधित्व करते हैं, और जीसस प्रत्येक जीव की व्यक्तिगत आत्मा, उसके स्वयं के पवित्र आत्मिक स्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।
विश्व के विभिन्न प्रतिनिधि
गौतम आकाशीय स्तर पर स्थित शंबाल्ला के प्रधान हैं - शम्बाला पहले पृथ्वी पर था पर फिर विभिन्न कारणों से इसे भौतिक स्तर से उठा लिया गया। अनेकानेक युगों से श्वेत महासंघ के संवाहकों ने लौ और शंबाल्ला के बुद्ध के लिए भौतिक स्तर पर संतुलन बनाए रखा है। इस तरह ब्रह्मांडीय आत्मा मैत्रेय के चयनित दूत जीसस का पवित्र ह्रदय एक ऐसा द्वार है जिसके माध्यम से मैत्रेय, गौतम और सनत कुमार रुपी पिता के प्रकाश को पृथ्वी के असंख्य लोगों तक पहुँचाया जाता है।
ईसा मसीह ने ब्रह्मांडीय कानून के अनुसार भौतिक स्तर पर अपने पद को परिभाषित किया है। वे कहते हैं, "जब तक मैं दुनिया में हूँ, तब तक मेरे द्वारा कहा गया शब्द - ईश्वरीय स्वरुप - ही दुनिया का प्रकाश है।" [2] अपने अनाहत चक्र में ईश्वरीय स्वरुप के प्रकाश की उपस्थिति की वजह से ही जीसस पृथ्वी ग्रह के कर्मों, "दुनिया के पापों" को अपने ऊपर लेने में समर्थ हो पाए। उन्होंने ऐसा इसलिए लिया ताकि जीवात्माएं उनके मार्ग का अनुसरण तब तक करें जब तक कि वे भी अपने शरीर-रूपी मंदिर में ईश्वर के पुत्र के प्रकाश को धारण न कर लें।
इसे भी देखिये
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and the Spiritual Path, चौथा अध्याय (chapter 4)
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation
- ↑ Elizabeth Clare Prophet, The Opening of the Seventh Seal: Sanat Kumara on the Path of the Ruby Ray, दूसरा अध्याय
- ↑ जॉन ९:५।