ईश्वरीय लौ
भगवान की लौ; पवित्र अग्नि; अस्तित्व के श्वेत-अग्नि मूल में और उसके रूप में ईश्वर की पहचान, अस्तित्व और चेतना।
मूसा (Moses) ने घोषणा की थी, “भगवान एक पूर्ण भस्म करने वाली अग्नि है।”[1] जहां कहीं भी ईश्वर की लौ है या ईश्वर की संतानों द्वारा इस लौ का आह्वान किया जाता है, पवित्र अग्नि, अपनी सातवीं किरण वायलेट लौ (violet flame) द्वारा सभी निचले स्पंदन वाली वस्तुओं का रूपांतरण करने के लिए वहां आती है।
जरथुस्त्र (Zarathustra) द्वारा प्रगट की गई अहुरा मज़्दा (Ahura Mazda) की पवित्र अग्नि से लेकर, [[ Special:MyLanguage/Holy Ghost| पवित्र आत्मा]] (Holy Ghost) के द्वारा ईसा मसीह के अग्नि से दीक्षा-स्नान (ईसाई होने के समय प्रथम जल-संस्कार) तक "[2] धर्मदूत के अग्नि-परीक्षण (trial by fire) की अनुभूति से [3] सात गुना रोशनी की अनन्त लौ तक,[4] ईश्वर की जो भी संतानें लौ में प्रवेश करती हैं वे ईश्वर की ज्वलंत उपस्थिति का सम्मान करती हैं और उन्हें शेकिनाह (Shekinah) की महिमा के मध्य देखती हैं। और अपने दिल में वो सभी जीवात्माएं आत्मा से मिलन का इंतज़ार ऐसे करती हैं मानों कोई दुल्हन अपने दूल्हे की प्रतीक्षा कर रही हो। “प्रभु कहते हैं, मैं उन जीवात्माओं की रक्षा के लिए उनके चारों तरफ आग की दीवार बनूंगा”[5]
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation