भौतिक शरीर
यह मनुष्य के चार निचले शरीरों में से सबसे ज़्यादा घनत्व वाला शरीर है। यह पृथ्वी तत्व और पदार्थ के चौथे चतुर्थांश के अनुरूप है। यह शरीर पृथ्वी पर जीवात्मा के निवास के दौरान उसका वाहन बनता है और आकाशीय शरीर, मानसिक शरीर, और भावनात्मक शरीर की ऊर्जाओं का केंद्र है।
भौतिक शरीर विकसित होती हुई जीवात्मा के एकीकरण का केंद्र है। भौतिक सप्तक में स्वयं के ऊपर विजय प्राप्त कर के जीवात्मा को स्वतंत्र होना होता है। आकाशीय चक्र (सातों प्रमुख तथा आठवाँ), तीन निचले शरीरों से सलंग्न हैं। ये सभी चक्र आध्यात्मिक लौ के केंद्र हैं, तथा यहीं पर आध्यात्मिक उत्थान के वक्त उच्च और निम्न ऊर्जाओं की अदल-बदल, रूपांतरण, आत्मिक चेतना या यूँ कहिये प्रकाश का उत्सर्ग भी होता है। यही कार्य ह्रदय के गुप्त कक्ष में स्थित त्रिदेव ज्योत, मूलाधार चक्र में निहित कुण्डलिनी शक्ति (जीवन शक्ति) एवं शरीर के बीज अणु में भी होता है।
नबूकदनेस्सर के अनुसार चार निचले शरीरों में से प्रत्येक में जागरूकता के कई स्तर (चेतन, अवचेतन और अतिचेतन) होते हैं, परन्तु "चौथे का रूप ईश्वर के पुत्र जैसा है,"[1] स्व चेतना की तरह आकाशीय शरीर भी भौतिक रूप में प्रतिबिम्बित होता है। लेकिन यह छवि हमेशा पूरी तरह स्पष्ट नहीं होती क्योंकि यह मनुष्य के कर्मों तथा मानसिक और भावनात्मक स्तर के अभिलेखों के कारण धुंधली हो जाती है। मनुष्य के कर्म तथा मानसिक और भावनात्मक स्तर के अभिलेख आकाशीय रूपरेखा और भौतिक स्वरुप के मध्य स्वाभाविक रूप से स्थित अग्नि और पृथ्वी तत्वों की शुद्धता को धूमिल करते हैं।
See also
Sources
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Lost Teachings on Your Higher Self.
- ↑ डैन. ३:२५