Translations:Discipleship/2/hi

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(1) शिष्य: इस चरण के अंतर्गत व्यक्ति गुरु के लेखन और शिक्षाओं का अध्ययन कर उसका छात्र तो बन जाता है, परन्तु अपने गुरु के प्रति कोई विशेष जिम्मेदारी ग्रहण नहीं करता। वह अपने समुदाय में आने-जाने, अपने अनुयायियों की संगति और उनके समर्पण के फल का आनंद लेने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उसने अपने गुरु के प्रति कोई प्रतिज्ञा या प्रतिबद्धता नहीं ली है। ऐसा भी हो सकता है कि शिष्य इस बात का प्रयत्न कर रहा हो कि गुरु स्वयं उसे एक सेवक या सह-सेवक (चेले) के रूप में स्वीकार कर लें [1]

  1. II Tim। २:१५.