आफरा

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महादेवदूत अफरा


श्याम वर्ण के लोगों में सर्व प्रथम जिनकाव्यक्ति का आरोहण हुआ था, उनका नाम अफरा था। सदियों पहले अफरा ने ईश्वर से कहा था की वे अपना नाम और प्रसिद्धि ईश्वर को समर्पित कर किसी एक महाद्वीप और वहां रहने वाले लोगों का संरक्षण करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा था की वे सिर्फ भाई के नाम से जाने जाना चाहते हैं। इसके बाद ही उनका नाम अफरा पड़ा। लैटिन में फ्रेटर का अर्थ भाई होता है। अफ्रीका महाद्वीप का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा है, और ये इस महाद्वीप के संरक्षक भी हैं।

अफ्रीका का प्राचीन इतिहास

प्राचीन समय में जब अफ्रीका लेमुरिया नमक महाद्वीप का हिस्सा था तब वहां पर सतयुग था। उस समय लोग ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर की कॉज़ल बॉडी (Casual Body) से उत्पन्न हुए थे। ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर आज भी अफ्रीका महाद्वीप और अमरीका में अफरा के वंश के संरक्षक हैं।

बहुत सारे लोग श्याम वर्ण के वंशज है, पर अगर हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो पाएंगे की वर्णों में कोई भेद नहीं होता - चाहे श्वेत हो या श्याम। स्वर्ग में जो गुरु हैं वे इस बात से नहीं जाने जाते की पृथ्वी पर उनका क्या वर्ण या धर्म था। पृथ्वी पर सभी वर्णों के प्राणी ईश्वर की ही उत्पत्ति हैं और प्रत्येक प्राणी सात किरणों में से किसी एक किरण के मार्ग पर चलता है।

श्वेत वर्ण के लोग पीली (समझदारी, विवेक), गुलाबी (प्रेम, स्नेह) और सफ़ेद (शुचिता, निर्मलता) ज्योति पर निपुणता प्राप्त करने पृथ्वी पर आते हैं। इसी वजह से इनकी त्वचा का रंग इन तीनो रंग का मिश्रण होता है। इन सब लोगों को ईश्वर के सामने इन्ही सब गुणों में अपनी निपुणता दिखानी होती है। पीली त्वचा के लोग - चीन के निवासी - समझदारी की ज्योति पर सेवारत होते हैं, वरन लाल रंग की त्वचा वालों को अपने अंदर के प्रेम को ईश्वरीय प्यार में बदलना होता है।

श्याम वर्ण के लोग नीली और वायलेट (बैंगनी) ज्योति से आते हैं। अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं में लोगों की त्वचा के रंग में नीला और बैंगनी रंग झलकता था। ये रंग परमात्मा के पिता और माता स्वरुप अल्फा और ओमेगा से आते है। नीला रंग प्रथम किरण का होता है तथा वायलेट सातवीं किरण का।

जिस प्रकार हर एक व्यक्ति का कार्यक्षेत्र एक विशिष्ट किरण पर होता है, उसी प्रकार प्रत्येक देश का भी एक विशिष्ट धर्म होता है। ईश्वर ने हर एक देश को एक अलग कार्य और उसे पूरा करने के लिए विशिष्ट गुण दिए हुए हैं। श्याम वर्ण के लोगों को ईश्वर ने पृथ्वी पर इश्वरिय शक्ति पर महारत हासिल करने भेजा था - ईश्वरीय इच्छा और विश्वास (नीली किरण) तथा ईश्वरीय स्वतंत्रता, न्याय और करुणा (वायलेट किरण)।

गार्डन ऑफ़ ईडन, से बाहर निकलने के बाद जैसे, जैसे समय बदलता गया, मनुष्य धीरे, धीरे अपने ईश्वरीय गुण खोता चला गया और इसके साथ ही उसके त्वचा के रंग में भी बदलाव आना शुरू हो गय। अब पहले जैसे शुद्ध रंग न ही मनुष्य की त्वचा में दीखते हैं, न ही उसके आभामंडल में। नकारात्मक शक्तियों (Fallen Ones) ने मनुष्यों को आपस में लड़ना सीखा दिया है। विभिन्न वर्णों के लोग अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं, एक दुसरे पर हुक्म चलाने की कोशिश में रहते हैं, एक दुसरे को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसके फलस्वरूप मनुष्यों की आपसी एकता टूट गयी है और उनके बीच बहने वाली प्रेम की धारा भी बाधित हो गई है।

अफरा के अफ़्रीकी अवतार

अफरा पांच लाख साल पहले अफ्रीका में रहते थे - ये वह समय था जब अफ़्रीकी सभ्यता एक दोराहे पर खड़ी थी, और नकारात्मक शकितयों नकारात्मक शकितयों ने मनुष्यों के बीच वैर भाव उतपन्न कर दिए थे। तमाम बुरी आत्माएं पूरी शक्ति से नीले और वायलेट कुल के मनुष्यों को नष्ट करने में लगीं थीं। इन लोगों ने सभी पवित्र कलाओं और संस्कारों का रूप बिगाड़ दिया था और बड़ी संख्या में लोग जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और काला जादू पर निर्भर करने लगे थे। फलस्वरूप लोग एक दुसरे से घृणा करने लगे, अंधविश्वास ने उनके मन में घर कर लिया और चारों तरफ सत्ता पाने के लिए होड़ मच गई।

जैसे जैसे लोगों ने अपने अंदर के ईश्वर (God Presence) पर से अपना ध्यान हटाना शुरू किया, वे और अधिक मात्रा में बुरी शक्तियों के प्रभाव में आ गए। विभिन्न जनजातियों के लोग लड़-झगड़ कर एक दुसरे से अलग हो गए। नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक शक्ति भी खोने लगा तथा उसका मन अंधेरों में घिर गया। इस तरह सभी मनुष्य बुरी ताकतों के गुलाम बनकर रह गए।

लोगों की ऐसी हालत से दुखी होकर, उनका उद्धार करने के उद्देश्य से, अफरा ने मनुष्य के रूप में अवतरित होने का निश्चय किया। सबसे पहले उन्होंने मनुष्यों के सबसे कमज़ोर पक्ष पता लगाया - यह कमज़ोर पक्ष था भाईचारे की भावना का ख़त्म होना। रूपकात्मक ढंग से कहें तो उस वक्त के अधिकतर लोग एबल के बजाय केन के अनुयायी थे। जब भगवान ने लोगों से पूछा कि क्या वे अपने दोस्तों, अपने समाज के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं, तो उनका उत्तर वही था जो केन का था: "क्या में अपने भाई का रखवाला हूँ? ”[1] जो भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर 'ना' में देता है वह अपने अहम् का शिकार है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाई का रखवाला नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के अंदर दिव्य ज्योति बुझ जाती है।

अफरा जानते थे कि अधिकाँश लोगों ने अपने अंदर की दिव्य ज्योति (Threefold Flame) को खो दिया है। उसी तरह जिस तरह आज भी बहुत सारे लोग क्रोध करने की वजह से अपनी इस दिव्य ज्योति को खो रहे हैं। अफरा जानते थे की इस दिव्य ज्योति को वापिस पाने के लिए मनुष्यों को भाईचारे के रास्ते पर चलना होगा, उन्हें एक दुसरे का ख्याल रखना होगा, देखभाल करनी होगी। और ये बात स्वयं सबका भाई बनकर ही सिखाई जा सकती है। दुःख की बात ये है, केवल इसी बात के लिए बाकी सभी लोगों ने उनको सूली पर चढ़ा दिय। अफरा उन लोगों के बीच जीसस क्राइस्ट के समकक्ष थे, पर वो लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। लोग सत्ता के लालच में अंधे हो गए थे।

His service today

The ascended master Afra spoke on “The Powers and Perils of Nationhood” in Accra, Ghana, in 1976, stressing the theme of unity and of dissolving our differences in the fire of the Holy Spirit. He said:

We are brethren because we are of the same Mother. I am your brother, not your lord, not your master. I am your brother on the Path. I have shared your passion for freedom. I have shared with you the hours of crisis when you beheld injustice, when you prayed to the Lord for justice and the Lord gave to you the divine plan for this nation and for this continent.

I have lived in your hearts for hundreds of years as you have toiled under the burden of oppression self-imposed from within and put upon from without.

The people of Afra have the supreme opportunity to learn from every civilization and every history. When materialization reaches its peak, there are only two courses open to a civilization: either material decline and decay because of indulgence, or spiritual transcendence through the alchemy of the Holy Spirit.[2]

In a later message, Saint Germain asked Afra to convey the following message to the descendants of Afra in America:

In this moment, those who call themselves the blacks of America can rise to new dimensions of freedom and liberty. But this can only come to pass through the mighty heart flame, through the understanding of the path of initiation under the Holy Spirit, through submitting yourself, your soul, to the altar of God and calling upon the Lord for an acceleration of light, a purging of inner darkness.

Though there were successes through the civil rights movement, there have been setbacks. For those successes in many instances were outer. Having gained them, the people did not understand that they must go within to the inner light in order to sustain them. We would seek the equality of all souls whatever their outer ‘color.’ We would teach you a spiritual path of true advancement on the path of initiation.

Though they know it not, the black people of America today are at the eternal Y. They must choose this day whom they will serve—whether gains in the line of material comfort and increased well-being and higher-paying jobs, or the real gain of the eternal light of Sonship and the path of immortality with all of its challenges. In this land of abundance, it is natural for all people to expect and to live according to a higher standard of living. It is when this higher standard obliterates the inner longing for the higher light and the higher way that it becomes dangerous. I would tell you that God has chosen this people as those who have become rich in Spirit.[3]

You can call to Afra for unity and for the dissolving of racial tensions through the true understanding of universal brotherhood.

Afra, our brother of light, like all ascended masters, has true humility. Kuthumi spoke of Afra’s humility:

This giant soul with his tremendous devotion was one of the unknown brothers. So long as individuals feel the need to expound upon their own personal achievements, they may well find that they are not truly a part of us.[4]

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “अफरा”

  1. Gen. 4:9.
  2. Elizabeth Clare Prophet, Afra: Brother of Light, pp. 25–26.
  3. Ibid., pp. 29–30.
  4. Ibid., p. 35.