पवित्र श्रम
पवित्र श्रम वह विशिष्ट कार्य, आजीविका का साधन या व्यवसाय है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने लिए तथा अपने साथियों के लिए अपनी जीवात्मा का महत्व स्थापित करता है। व्यक्ति ईश्वर द्वारा दी गयी प्रतिभाओं को विकसित करने के साथ साथ आत्मा के वरदानों को भी विकसित करता है और उन्हें मानवता की सेवा के प्रति अर्पित करता है।
पवित्र श्रम न केवल व्यक्ति विशेष का समाज को एक योगदान है, बल्कि यह वह साधन है जिसके द्वारा जीवात्मा अपनी त्रिदेव ज्योत को संतुलित कर सकती है और सात किरणों की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो सकती है। व्यावहारिक जीवन में स्वयं को ईश्वर को समर्पित करने का यही एक मार्ग है।

पवित्र श्रम और समाज
पवित्र श्रम में कार्यरत सभी जीवात्माओं को मिलाकर आत्मा का समाज बनता हैं। जब हम ईसा मसीह के जीवन पर नज़र डालते हैं, तो हम देखते हैं कि उनका ईसाई धर्म का अनुपालन तथा मनुष्य में ईश्वर के कार्यों को क्रियान्वित करने का उनका मार्ग एक साधारण घर में शुरू हुआ, उस घर में जहाँ उनकी माँ ने उन्हें आध्यात्मिक विषयों की शिक्षा दी थी। बहुत ही कम उम्र में ही ईसा मसीह को अपने पिता के पास बढ़ईगीरी का काम सीखने के लिए प्रशिक्षु के रूप में भेज दिया गया था।
कुमरान स्थित एस्सेन समाज पवित्र आत्मा के समाज का एक उदाहरण है। इस समाज में प्रत्येक व्यक्ति के पवित्र श्रम का सम्मान किया जाता था। प्रत्येक व्यक्ति (चाहे वह पुरुष हो या स्त्री) को ईसा मसीह का चेला माना जाता था और इस नाते प्रत्येक जन को किसी न किसी व्यवसाय में निपुणता प्राप्त करना आवश्यक था। इस तरह उनका व्यवसाय ने केवल समुदाय प्रति उनका योगदान हुआ, बल्कि उनकी जीवात्मा की पूर्णता का साधन भी बन गया। तो हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक युग में पवित्र श्रम वह साधन प्रदान करता है जिसके द्वारा जीवात्मा अपनी त्रिदेव ज्योत को संतुलित कर सकती है, और व्यवहारिक तथा सैद्धांतिक रूप से सात किरणों की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर सकती है।
समिट यूनिवर्सिटी के छात्रों को जीवन के प्रत्येक पहलु में उत्कृष्टता हासिल करने की शिक्षा दी जाती है क्योंकि इसी से रचनात्मक पूर्णता का एहसास होता है और ऐसा करने से ही जीवात्मा अपनी विभिन्न ऊर्जाओं पर नियंत्रण भी प्राप्त कर सकती है। सभी छात्रों को ऐसे काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे वे ईश्वर द्वारा दी गई अपनी विशिष्ट प्रतिभा को खोज पाएं। उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य ढूंढ़ना होता है और यह भी पता लगाना होता है कि कैसे वे अपनी जीवात्मा में निहित रूपरेखा के अनुसार काम कर सकते हैं, और कैसे उन प्रतिज्ञाओं का पालन कर सकते हैं जो उन्होंने इस जन्म से पहले कर्म के स्वामी के सामने लीं थीं।
जैसे-जैसे वे अपने अध्ययन में आगे बढ़ते हैं, विद्यार्थी इस बारे में विचार करते हैं कि उनका पवित्र श्रम क्या होगा; एवं व्यक्ति, जाति और समस्त समाज के विकास के लिए उन्हें क्या करना है। चाहे वह व्यापार हो या कोई अन्य व्यवसाय, वह उसकी कमाई का साधन हो या न हो, पवित्र श्रम एक ऐसी प्रतिभा है जिसे बढ़ाया और परिष्कृत किया जाता है; जिसके द्वारा विद्यार्थी स्वयं को और अपने साथियों को अपनी जीवात्मा का महत्व समझा पाता है। पवित्र श्रम जीवात्मा की आंतरिक पुकार है और इसे व्यावहारिक रूप में सुधारना चाहिए जिससे समाज की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए इसका इस्तेमाल हो सके हो। पवित्र श्रम स्वयं को पहचानने के मार्ग का एक अनिवार्य अंग है। यह पवित्र आत्मा की ज्योति का हथियार है।
पवित्र श्रम के माध्यम से सभी (पुरुष और महिलाएं) अपने मन और वचन से चैतन्य होने की क्षमता का एहसास करते हैं। पवित्र श्रम के माध्यम से ही छात्र जीवन के किसी एक पहलू पर महारत हासिल करने के लिए आवश्यक विधाओं में निपुणता हासिल करते हैं जिससे कि वे अंततः स्वयं पर विजय प्राप्त कर पाते हैं। आत्मिक ज्ञान में प्रशिक्षित समिट विश्वविद्यालय के छात्र एक संतुलित जीवन जी पाते हैं (चाहे वे विवाह करें और परिवार बढ़ाएँ या फिर आजीवन ब्रह्मचारी रहें) और विश्व समुदाय के ज़िम्मेदार सदस्य बनते हैं। वे अपने आध्यात्मिक उत्थान की ज़रूरतों को जानते है और उनके प्रति कार्यरत रहते हैं, पर साथ ही वे अपनी व् अपने परिवार की, पड़ोसियों की और दोस्तों के सांसारिक जीवन की ज़रूरतों को भी समझते हैं, और उनके प्रति भी समर्पित रहते हैं। साथ ही वे अन्य लोगों को दिव्य गुरूओं द्वारा दिखाए गए ईश्वर के मार्ग पर चलने में भी सहायता करते हैं।
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation
Clara Louise Kieninger, Ich Dien.