Antahkarana/hi: Difference between revisions

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अंत:करण संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है भीतरी इंद्रि। यह प्रकाश का ऐसा तंत्र है जो [[Special:MyLanguage/spirit|आत्मा]] और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] को न सिर्फ बांधता है वरन सम्पूर्ण सृष्टि को एक दूसरे के प्रति तथा ईश्वर के प्रति संवेदनशील बनाता है।
अंत:करण संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है भीतरी इंद्रि। [[Special:MyLanguage/spirit|आत्मा]] और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] में फैला हुआ प्रकाश का जाल जो सम्पूर्ण सृष्टि को एक दूसरे के साथ और ईश्वर के हृदय से जोड़ता और संवेदनशील बनाता है।


अंतःकरण ज़रदोज़ी के धागों के सामान है - ऐसे धागे जो इस [[Special:MyLanguage/Macrocosm|विराट् विश्‍व]] के सारे के सारे इंसानो के अंदर के [[Special:MyLanguage/Silent Watcher|शांत चित्त]] को एक दुसरे के साथ बांधते है। अंतःकरण [[Special:MyLanguage/Great Central Sun Magnet|ग्रेट सेंट्रल सन मैगनेट]] की ऊर्जा का संवाहक है। [[Special:MyLanguage/crystal cord|मणि का वह तार]] जो हर एक [[Special:MyLanguage/Christ Self|इंसान के चित्त]] और उसके [[Special:MyLanguage/God Self|अंदर स्थित ईश्वर]] को ग्रेट सेंट्रल सन मैगनेट के साथ जोड़ता है, अंतःकरण का ही हिस्सा है।  
अंतःकरण महीन धागों से किया हुआ जाली के काम की तरह है - ऐसे धागे जिसके द्वारा [[Special:MyLanguage/Silent Watcher|मौन दिव्य गुरु]] (Silent Watcher) [[Special:MyLanguage/Macrocosm|संपूर्ण विश्‍व]] (Macrocosm) को एक दुसरे से जोड़ते हैं । अंतःकरण [[Special:MyLanguage/Great Central Sun Magnet|महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र]] (Great Central Sun Magnet) की ऊर्जा का सुचालक है। [[Special:MyLanguage/crystal cord|पवित्र प्रकाश की डोर]] (crystal cord) जो हर एक मनुष्य को उसकी [[Special:MyLanguage/Christ Self|आत्मिक चेतना]] और [[Special:MyLanguage/God Self|परमत्मा की चेतना]] (God Self) के द्वारा उसे महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के साथ जोड़ती है, अंतःकरण का ही हिस्सा है।  


अन्तःकरण के बारे में [[Special:MyLanguage/Gautama Buddha|गौतम बुध]] ने कुछ यूँ कहा है:
अन्तःकरण के बारे में [[Special:MyLanguage/Gautama Buddha|गौतम बुद्ध]] ने कुछ यूँ कहा है:


<blockquote>मैं गौतम, बहुतों का पिता हूँ। मैं माँ की ऊर्जा/ प्रकाश को नमन करता हूँ, इस अवतारी ज्वाला की मैं पूजा करता हूँ। मैं पुत्र की ऊर्जा को भी नमन करता हूँ। </blockquote>
<blockquote>
मैं गौतम, बहुतों का पिता हूँ। मैं ईश्वरीय माँ की ऊर्जा और उसके साक्षात् प्रकाश नमन करता हूँ, जिसकी मैं आराधना करता हूँ। मैं ईश्वरीय पुत्र की आत्मिक चेतना को नमन करता हूँ।


<blockquote>मैं जीवन के ''अंतःकरण'' को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। अपनी जीवात्मा के विकास के लिए आप अपने अंतःकरण के मदद ले सकते हैं। आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है, मैं आपको अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। और आप में से कुछ, माँ  के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंग के धागे से उस अंतःकरण को चेतना की सुरक्षा का केंद्र बना देते हैं। और इस केंद्र की सूक्ष्म चेतना के स्तरों को [[Special:MyLanguage/golden chain mail|सुनहरी ज़ंज़ीर]] से मुद्रण करके शारीरिक मलिनता से बचा सकते हैं।</blockquote>
मैं जीवन के ''अंतःकरण'' को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप अपनी जीवात्मा के विकास के लिए अंतःकरण की मदद ले सकते हैं। जैसे आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है,वैसे मैं आपको महीन धागों वाले अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। जिस प्रकार से आप में से कुछ, माँ  के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंगों के धागों से उस अंतःकरण की सुरक्षा अपनी उच्च चेतना के केंद्र से करते हैं और इस केंद्र के द्वारा [[Special:MyLanguage/golden chain mail|सुनहरी ज़ंज़ीर वाला कवच]] (golden chain mail) पहन कर हम स्वयं को सील (seal) करके भौतिक स्तर पर भावुक (astral) नकरात्मकता से बच सकते हैं।


<blockquote>इस पवित्र आवरण को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे जीवन का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार एक छोटे बालक को सर्दी से बचाने के लिए शाल से अच्छी तरह लपेटा जाता है उसी ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा की जानी चाहिए। ऐसा आप गौतम की याद में करिये, वो गौतम जो पृथ्वी पर अहम् की  [[Special:MyLanguage/sword|तलवार]] उठाने आये थे</blockquote>
इस पवित्र वस्त्र को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे अपने  जीवन में प्रकाश का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न हुई चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार से एक छोटे बच्चे को सर्दी से बचाने के लिए प्रेम से कपड़ो की परतों में लपेटा जाता है उसी प्रकार से ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा करनी चाहिए। अंतःकरण का ज्ञान और धर्म का मार्ग बताने गौतम बुद्ध पृथ्वी लोक पर आए थे।


<blockquote>और अब मैं इस तलवार का प्रयोग करते हुए [[Special:MyLanguage/witchcraft|दुष्टता]] के उस परदे को काटता हूँ जिससे हर एक इंसान ढका हुआ है। दुष्टता का यह पर्दा पूरे ग्रह पर भी छाया हुआ है जिसकी वजह से मानवता त्रस्त है। आप देखेंगे कि जब माँ के पुजारी [[Special:MyLanguage/Lord of the World|ईश्वर]] की चेतना का आह्वान करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान ईश्वर का प्रकाश ले लेता है....</blockquote>
अंतःकरण के ज्ञान से मैं उस परदे को अब हटाता हूँ जिसने पूरे पृथ्वी लोक को [[Special:MyLanguage/witchcraft|जादू-टोने]] और अज्ञानता से ढका हुआ है। आप देखेगें कि जब इश्वरिये रूप मैं माँ (devotees of the Mother) के भक्त उच्च चेतना से [[Special:MyLanguage/Lord of the World|पृथ्वी के स्वामी]] गौतम बुद्ध का दिव्य आदेशों द्वारा आवाहन करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान पृथ्वी के स्वामी का प्रकाश ले लेता है....


<blockquote>पदानुक्रम मानव की चेतना को ऊपर उठाने का एक तरीका है। यह मनुष्य को ईश्वर के नज़दीक ले जाने का तरीका है जिससे जीवन में प्रेम और सत्य के प्रवाह एवं शाश्वत यौवन के जीवंत झरने को खोज सकते हैं। पदानुक्रम सदा रहेगा। आप इस पदानुक्रम का हिस्सा हैं। ईश्वरीय लौ को अपने अंदर रखने की क्षमता वाले आप, ग्रेट वाइट ब्रदरहुड से जुड़ने की संभावना रखते हैं। आप ईश्वर की वाणी के जीवित गवाह हैं। आप ईश्वर का स्वरुप हैं। "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे'। आप ही अंतःकरण हैं। प्रकाश को बहने दीजिये।<ref>गौतम बुद्ध, “Nourish Love in the Heart of Humanity,” {{POWref|56|1|, १ जनवरी, २०१३}}</ref><blockquote>  
अनुक्रम (Hierarchy) मानव की चेतना को ऊपर उठाने का एक तरीका है जिसके द्वारा जीवन में प्रेम और सत्य के प्रवाह एवं शाश्वत यौवन के जीवंत स्रोत को प्राप्त करने के लिए अनुक्रम हमें ईश्वर के केंद्र तक ले जाता है। अनुक्रम सदा रहेगा। आप इस अनुक्रम का हिस्सा हैं। ईश्वरीय लौ को अपने अंदर रखने की क्षमता रखने वाले, श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) से जुड़ने की भी क्षमता रखते हैं। आप ईश्वर की वाणी के जीवित रूप हैं। आप ईश्वर का स्वरुप हैं। "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे'। आप ही अंतःकरण हैं। ईश्वर के प्रकाश को अपने अंदर से बहने दीजिये।<ref>गौतम बुद्ध, “Nourish Love in the Heart of Humanity,” {{POWref|56|1|, १ जनवरी, २०१३}}</ref>
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[[Ratnasambhava]] has said of the antahkarana:
[[Special:MyLanguage/Ratnasambhava|रत्नासंभावा]] (Ratnasambhava) ने अंतःकरण के बारे में निम्न बातें कही हैं:


<blockquote>
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There is an interconnection of all Life. And therefore, whenever those who are the immortal ones speak through an embodied soul at this level, there is the transmission of that word to all lifestreams who are similarly abiding in this band of energy, which is your time and space and your compartment to work out your reason for being—your dharma as well as your karma.
सभी प्रकार के जीव आपस में जुड़े हुए हैं। इसलिए जब कभी अनश्वर (immortal) को प्राप्त हुए व्यक्ति पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों से आत्मिक स्तर पर बात करते हैं, तो ये सब बातें उस व्यक्ति की समान ऊर्जा वाली सभी जीवन धाराओं तक पहुँच जाती हैं क्योंकि यही आपके जीवन जीने का कारण हैं, और आपका [[Special:MyLanguage/dharma|धर्म]] और [[Special:MyLanguage/karma|कर्म]] भी।


Know this, then—that another function of having a [[Messenger]] and dictations is the unification by the ''antahkarana'', the great web of light, of all souls of a similar evolution. And as the ''antahkarana'' quivers at the hand of the great Master Artist of life, there is a stepping up, a tuning of the sound that is heard from the quivering of the ''antahkarana''. And as you are able to transcend certain lower elements, you find yourself rising to new levels of that web of life and to attunement with the higher sound. This is the great mystery of being—that you also, though considering yourself finite, are with us “everywhere in the consciousness of God.”<ref>Ratnasambhava, “Elements of Being,” {{POWref|37|6|, February 6, 1994}}</ref>
तो आप इस बात को अच्छी तरह से समझ लीजिये कि [[Special:MyLanguage/Messenger|सन्देशवाहक]] (Messenger) और दिव्य वाणी (dictation) का लक्ष्य एक ही उद्देश्य वाली जीवात्माओं को प्रकाश के ''अंतःकरण'' के द्वारा महान जाल से एकीकरण करना है। इस प्रकार की क्रिया से ''अंतःकरण'' कम्पन के द्वारा जीवात्माएं एक कदम ऊपर उठ जाती हैं। तब आप निचले तत्वों को पार करने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वयं को जीवन के नए स्तरों की ओर बढ़ते हुए पाते हैं। अंतःकरण की यह कम्पन क्रिया एक उच्च ध्वनि को उत्प्पन करती है और आप उस उच्च ध्वनि के साथ तालमेल करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। यही जीवन का एक गूढ़ रहस्य है - हालाँकि मनुष्यता के स्तर पर आप इस क्रिया को समझने में असमर्थ हैं परन्तु सच यह है कि आप सदा हमारे साथ हैं, “हर जगह ईश्वरीय की चेतना  में हमारे साथ हैं”।<ref>रत्नासंभावा, “Elements of Being,” {{POWref|37|6|, ६ फरवरी १९९४}}</ref>
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== स्रोत ==
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Latest revision as of 04:44, 7 August 2024

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अंत:करण संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है भीतरी इंद्रि। आत्मा और पदार्थ में फैला हुआ प्रकाश का जाल जो सम्पूर्ण सृष्टि को एक दूसरे के साथ और ईश्वर के हृदय से जोड़ता और संवेदनशील बनाता है।

अंतःकरण महीन धागों से किया हुआ जाली के काम की तरह है - ऐसे धागे जिसके द्वारा मौन दिव्य गुरु (Silent Watcher) संपूर्ण विश्‍व (Macrocosm) को एक दुसरे से जोड़ते हैं । अंतःकरण महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र (Great Central Sun Magnet) की ऊर्जा का सुचालक है। पवित्र प्रकाश की डोर (crystal cord) जो हर एक मनुष्य को उसकी आत्मिक चेतना और परमत्मा की चेतना (God Self) के द्वारा उसे महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के साथ जोड़ती है, अंतःकरण का ही हिस्सा है।

अन्तःकरण के बारे में गौतम बुद्ध ने कुछ यूँ कहा है:

मैं गौतम, बहुतों का पिता हूँ। मैं ईश्वरीय माँ की ऊर्जा और उसके साक्षात् प्रकाश नमन करता हूँ, जिसकी मैं आराधना करता हूँ। मैं ईश्वरीय पुत्र की आत्मिक चेतना को नमन करता हूँ।

मैं जीवन के अंतःकरण को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप अपनी जीवात्मा के विकास के लिए अंतःकरण की मदद ले सकते हैं। जैसे आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है,वैसे मैं आपको महीन धागों वाले अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। जिस प्रकार से आप में से कुछ, माँ के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंगों के धागों से उस अंतःकरण की सुरक्षा अपनी उच्च चेतना के केंद्र से करते हैं और इस केंद्र के द्वारा सुनहरी ज़ंज़ीर वाला कवच (golden chain mail) पहन कर हम स्वयं को सील (seal) करके भौतिक स्तर पर भावुक (astral) नकरात्मकता से बच सकते हैं।

इस पवित्र वस्त्र को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे अपने जीवन में प्रकाश का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न हुई चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार से एक छोटे बच्चे को सर्दी से बचाने के लिए प्रेम से कपड़ो की परतों में लपेटा जाता है उसी प्रकार से ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा करनी चाहिए। अंतःकरण का ज्ञान और धर्म का मार्ग बताने गौतम बुद्ध पृथ्वी लोक पर आए थे।

अंतःकरण के ज्ञान से मैं उस परदे को अब हटाता हूँ जिसने पूरे पृथ्वी लोक को जादू-टोने और अज्ञानता से ढका हुआ है। आप देखेगें कि जब इश्वरिये रूप मैं माँ (devotees of the Mother) के भक्त उच्च चेतना से पृथ्वी के स्वामी गौतम बुद्ध का दिव्य आदेशों द्वारा आवाहन करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान पृथ्वी के स्वामी का प्रकाश ले लेता है....

अनुक्रम (Hierarchy) मानव की चेतना को ऊपर उठाने का एक तरीका है जिसके द्वारा जीवन में प्रेम और सत्य के प्रवाह एवं शाश्वत यौवन के जीवंत स्रोत को प्राप्त करने के लिए अनुक्रम हमें ईश्वर के केंद्र तक ले जाता है। अनुक्रम सदा रहेगा। आप इस अनुक्रम का हिस्सा हैं। ईश्वरीय लौ को अपने अंदर रखने की क्षमता रखने वाले, श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) से जुड़ने की भी क्षमता रखते हैं। आप ईश्वर की वाणी के जीवित रूप हैं। आप ईश्वर का स्वरुप हैं। "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे'। आप ही अंतःकरण हैं। ईश्वर के प्रकाश को अपने अंदर से बहने दीजिये।[1]

रत्नासंभावा (Ratnasambhava) ने अंतःकरण के बारे में निम्न बातें कही हैं:

सभी प्रकार के जीव आपस में जुड़े हुए हैं। इसलिए जब कभी अनश्वर (immortal) को प्राप्त हुए व्यक्ति पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों से आत्मिक स्तर पर बात करते हैं, तो ये सब बातें उस व्यक्ति की समान ऊर्जा वाली सभी जीवन धाराओं तक पहुँच जाती हैं क्योंकि यही आपके जीवन जीने का कारण हैं, और आपका धर्म और कर्म भी।

तो आप इस बात को अच्छी तरह से समझ लीजिये कि सन्देशवाहक (Messenger) और दिव्य वाणी (dictation) का लक्ष्य एक ही उद्देश्य वाली जीवात्माओं को प्रकाश के अंतःकरण के द्वारा महान जाल से एकीकरण करना है। इस प्रकार की क्रिया से अंतःकरण कम्पन के द्वारा जीवात्माएं एक कदम ऊपर उठ जाती हैं। तब आप निचले तत्वों को पार करने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वयं को जीवन के नए स्तरों की ओर बढ़ते हुए पाते हैं। अंतःकरण की यह कम्पन क्रिया एक उच्च ध्वनि को उत्प्पन करती है और आप उस उच्च ध्वनि के साथ तालमेल करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। यही जीवन का एक गूढ़ रहस्य है - हालाँकि मनुष्यता के स्तर पर आप इस क्रिया को समझने में असमर्थ हैं परन्तु सच यह है कि आप सदा हमारे साथ हैं, “हर जगह ईश्वरीय की चेतना में हमारे साथ हैं”।[2]

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of Brotherhood.

  1. गौतम बुद्ध, “Nourish Love in the Heart of Humanity,” Pearls of Wisdom, vol. 56, no. 1, १ जनवरी, २०१३.
  2. रत्नासंभावा, “Elements of Being,” Pearls of Wisdom, vol. 37, no. 6, ६ फरवरी १९९४.