Kuthumi/hi: Difference between revisions

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दिव्यगुरु कुथुमी पहले दूसरी किरण के [[Special:MyLanguage/chohan|चौहान]] थे। अब ये [[Special:MyLanguage/World Teacher|विश्व शिक्षक]] [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] के कार्यालय में कार्यरत हैं।  
दिव्यगुरु कुथुमी पहले ज्ञान की दूसरी किरण के [[Special:MyLanguage/chohan|चौहान]] (chohan) थे। अब वह [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] के साथ मिल कर [[Special:MyLanguage/World Teacher|विश्व शिक्षक]] (World Teacher) के रुप में  
लोगों की सेवा करते हैं।  


ये [[Special:MyLanguage/Brothers of the Golden Robe|ब्रदर्स ऑफ द गोल्डन रोब]] के प्रधानाध्यापक हैं और ज्ञान की किरण पर मौजूद छात्रों को [[Special:MyLanguage/meditation|ध्यान]] की कला और शब्द के विज्ञान में प्रशिक्षित करते हैं ताकि वे अपने चित्त, [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] के मनोवैज्ञानिक बन सकें।
वह [[Special:MyLanguage/Brothers of the Golden Robe|सुनहरे वस्त्र वाले भाई]] (Brothers of the Golden Robe) के प्रधानाध्यापक हैं और ज्ञान की किरण के छात्रों को [[Special:MyLanguage/meditation|ध्यान]] (meditation) की कला और शब्द के विज्ञान में प्रशिक्षित करते हैं ताकि वे अपने चित्त, [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] के मनोवैज्ञानिक बन सकें।


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== अवतार ==
== पूर्व शारीरिक जन्म ==


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=== थुटमोस III ===
=== थटमोस III (Thutmose III) ===


फैरो थुटमोस III (१५६७ सी.बी) को सबसे महान ईश्वरदूत और पुजारी माना जाता है। ये कला के पारखी एवं संरक्षक थे और मिस्र साम्राज्य के निर्माण का श्रेय भी इनको ही जाता है। इन्होनें मध्य पूर्व के अधिकांश हिस्से को मिस्र साम्राज्य में शामिल कर इसका विस्तार किया था। माउंट कार्मेल के पास के मैदान पर हुए युद्ध में इनकी जीत सबसे निर्णायक जीत थी। यहां ये लगभग ३३० विद्रोही एशियाई राजकुमारों के गठबंधन को हराने के लिए ये अपनी पूरी सेना को मेगिद्दो दर्रे के संकीर्ण मार्ग से लेकर गए थे। यह एक साहसिक कदम था जिसका सभी उच्चाधिकारियों ने विरोध किया था। परन्तु अपनी योजना के प्रति पूर्णतया आश्वस्त थुटमोस सूर्य देवता अमोन-रा के चित्र को लिए आगे बढ़ते रहे, और विजयश्री प्राप्त की।
फैरो थटमोस III (१५६७ सी.बी) को सबसे महान मिस्त्र के राजा (Pharaoh) और पुजारी माना जाता है। वह कला के संरक्षक थे और मिस्र साम्राज्य के निर्माण का श्रेय भी इनको ही जाता है। उन्होंने मध्य पूर्व (Middle East) के अधिकांश हिस्से को मिस्र साम्राज्य में शामिल कर उसका विस्तार किया था। माउंट कार्मेल (Mt. Carmel) के नजदीक के मैदान पर हुए युद्ध में उनकी जीत सबसे निर्णायक जीत थी। यहां वह लगभग ३३० विद्रोही एशियाई राजकुमारों के गठबंधन को हराने के लिए वह अपनी पूरी सेना को मेगिद्दो दर्रे (narrow Megiddo) के संकीर्ण मार्ग से लेकर गए थे। यह एक साहसिक कदम था जिसका सभी उच्चाधिकारियों ने विरोध किया था। परन्तु अपनी योजना के प्रति पूर्णतया आश्वस्त थटमोस (Thutmose) सूर्य देवता अमोन-रा (Amon-Ra) का चित्र लिए आगे बढ़ते रहे, और विजयश्री प्राप्त की।


[[File:Pythagoras with tablet of ratios.jpg|thumb|upright|alt=Seated figure wearing a robe, writing in a book|''द स्कूल ऑफ एथेंस'' से लिया गया पाइथागोरस का चित्र, राफेल (१५०९)]]
[[File:Pythagoras with tablet of ratios.jpg|thumb|upright|alt=Seated figure wearing a robe, writing in a book|''द स्कूल ऑफ एथेंस'' से लिया गया पायथागोरस का चित्र, राफेल (१५०९)
(Pythagoras, from ''The School of Athens'', Raphael (1509))]]


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=== पाइथागोरस ===
=== पायथागोरस (Pythagoras) ===


छठी शताब्दी बी.सी में ये यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस थे। सेमोस द्वीप के निवासी पाइथागोरस को "गोरे बालों वाला सैमियन" भी कहा जाता था। इन्हें [[Special:MyLanguage/Apollo|अपोलो]] का पुत्र माना जाता था। युवावस्था में एक बार जब ये ध्यान में थे तो डेमेटर (यूनान में कृषि की देवी जिन्हें धरती की माँ भी कहते हैं) ने इन्हें आतंरिक न्याय के बारे में ज्ञान दिया। इसके बाद से इस ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाण जानने के लिए ये अक्सर पुजारियों और विद्वानों के साथ निर्भीक रूप से चर्चा करते लगे। सत्य की खोज में ये कई स्थानों, जैसे फिलिस्तीन, अरब, और भारत गए। अंततः ये मिस्र के मंदिरों में पहुंचे जहां उन्होंने मेम्फिस के पुजारियों का विश्वास जीता तथा थेब्स नामक शहर में [[Special:MyLanguage/Isis|आइसिस]] (मिस्र की देवी जिन्हें दिव्य माँ भी कहते हैं) के रहस्यों को जानने शिष्यता प्राप्त की।
छठी शताब्दी बी.सी में वह यूनानी दार्शनिक पायथागोरस थे जिन्हें "हलके रंग के बालों वाला सैमियन" (fair-haired Samian) भी कहा जाता था। इन्हें [[Special:MyLanguage/Apollo|अपोलो]] (Apollo) का पुत्र माना जाता था। युवावस्था में डेमेटर (Demeter) (यूनान में कृषि की देवी जिन्हें धरती की माँ भी कहते हैं) ने उन्हें आतंरिक न्याय के बारे में ज्ञान दिया। इसके बाद से इस ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाण जानने के लिए पायथागोरस पुजारियों और विद्वानों के साथ निर्भीक रूप से चर्चा करते थे। सत्य की खोज में वह कई स्थानों, जैसे फिलिस्तीन, अरब, और भारत गए। अंततः ये मिस्र के मंदिरों में पहुंचे जहां उन्होंने मेम्फिस (Memphis) के पुजारियों का विश्वास जीता तथा थेब्स (Thebes) नामक शहर में [[Special:MyLanguage/Isis|आइसिस]] (Isis) (मिस्र की देवी जिन्हें दिव्य माँ भी कहते हैं) के रहस्यों को जानने शिष्यता प्राप्त की।


लगभग ५२९ बीसी के दौरान जब एशिया के एक विजेता कमबाईसिस ने मिस्र पर आक्रमण किया तो पाइथागोरस को बेबीलोन भेज दिया गया। धर्मदूत डैनियल यहाँ पर राजा के मंत्री के पद पर कार्यरत थे। यहां पर धर्मगुरुओं ने उन्हें [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरूप]] के बारे में शिक्षा दी - यह शिक्षा पहले [[Special:MyLanguage/Moses|मूसा]] को दी गई थी। पारसी पुजारियों [[Special:MyLanguage/magi|मैगी]] ने उन्हें संगीत, खगोल विज्ञान और आह्वान करने के विज्ञान के बारे में शिक्षा दी। पाइथागोरस यहाँ पर १२ साल रहे जिसके उपरान्त उन्होंने बेबीलोन छोड़ दिया और [[Special:MyLanguage/Crotona|क्रोटोना]] में चेलों के एक ब्रदरहुड की स्थापना की। क्रोटना दक्षिणी इटली में स्थित डोरियन का एक व्यस्त बंदरगाह है। यह स्थान [[Special:MyLanguage/Great White Brotherhood|श्वेत महासंघ]] (ग्रेट वाइट ब्रदरहुड) का एक [[Special:MyLanguage/mystery school|रहस्यवादी विद्यालय]] (मिस्ट्री स्कूल) है।
लगभग ५२९ बीसी के दौरान जब एशिया के एक विजेता कमबाईसिस (Cambyses) ने मिस्र पर आक्रमण किया तो पायथागोरस को बेबीलोन भेज दिया गया। पैग़ंबर डैनियल (Prophet Daniel) यहाँ पर राजा के मंत्री के पद पर कार्यरत थे। यहां पर रब्बी (rabbis) समूह ने उन्हें [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM THAT I AM) के बारे में शिक्षा दी - यह शिक्षा पहले [[Special:MyLanguage/Moses|मूसा]] (Moses) को दी गई थी। पारसी पुजारियों और
[[Special:MyLanguage/magi|मेजाई]] [(magi)ज्योतिष विद्या के ज्ञानी] पुरषों ने उन्हें संगीत, खगोल विज्ञान (astronomy) और दिव्य आह्वान करने के विज्ञान के बारे में शिक्षा दी। पायथागोरस यहाँ पर १२ साल रहे जिसके उपरान्त उन्होंने बेबीलोन (Babylon) छोड़ दिया और [[Special:MyLanguage/Crotona|क्रोटोना]] (Crotona) में चेलों के एक महासंघ (brotherhood) की स्थापना की। क्रोटना दक्षिणी इटली में स्थित डोरियन (Dorian) का एक व्यस्त बंदरगाह है। उनका “निर्वाचित मनुष्यों का शहर” [[Special:MyLanguage/Great White Brotherhood|श्वेत महासंघ]] (Great White Brotherhood) का एक [[Special:MyLanguage/mystery school|रहस्यवादी विद्यालय]] (mystery school) है।


क्रोटोना में कुछ चुने गए पुरुषों और स्त्रियों ने सार्वभौमिक कानून की गणितीय अभिव्यक्ति पर आधारित एक दर्शन का अनुसरण किया। यह उनके अनुशासित तरीके के जीवन की  लय और सद्भाव एवं संगीत में चित्रित है। पांच साल की कठिन मौन के बाद, पाइथागोरस के "गणितज्ञों" ने अमर होने के लिए नाना प्रकार की दीक्षाओं के माध्यम से अपने हृदय की अंतर्ज्ञानी क्षमताओं का विकास किया। पाइथागोरस के ''गो”ल्डन वर्सेज'' में इन्हें “अमरता प्राप्त किये हुए दिव्य ईश्वर, जो अंनश्वर हैं”, कहा गया है।
क्रोटोना (Crotona) में सावधानीपूर्वक चुने गए कुछ पुरुषों और स्त्रियों ने सार्वभौमिक नियमों की गणितीय अभिव्यक्ति (mathematical expression) पर आधारित एक मार्ग का अनुसरण किया जो उनके अनुशासित तरीके के जीवन की  लय (rhythm) और समन्वय (harmony) एवं संगीत में चित्रित है। पांच साल की कठिन मौन की परिवीक्षा के बाद, पायथागोरस के "गणितज्ञों" ने दीक्षाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से प्रगति की, हृदय की सहज क्षमताओं को विकसित किया जिससे ईश्वर के  पुत्र या पुत्री, जैसा कि पायथागोरस के "गोल्डन वर्सेज" (''Golden Verses'') में कहा गया है, "एक अमर ईश्वर दिव्य, अब नश्वर नहीं।"
(“a deathless God divine, mortal no more.”)


पाइथागोरस परोक्ष रूप से गुप्त भाषा में व्याख्यान देते थे - उनके शब्दों का सार केवल उच्च श्रेणी के शिष्य ही समझ सकते थे। उनका मानना था कि संख्या ही सृष्टि का रूप है और सार भी। उन्होंने यूक्लिड ज्यामिति के मुख्य भागों की रचना की और कई खगोलीय सिद्धांतो पर काम किया जिन पर बाद में कोपरनिकस ने भी काम किया और कई अवधारणाएं प्रतिपादित कीं। पाइथागोरस से प्रभावित होकर क्रोटोना के लगधग दो हजार नागरिकों ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली छोड़ काउंसिल ऑफ़ थ्रीहंड्रेड (Council of Three Hundred) के तहत पायथागॉरियन समुदाय का निर्माण किया। इस काउंसिल ने एक सरकारी, वैज्ञानिक और धार्मिक संस्थान के तरीके से कार्य किया जिसने बाद में मैग्ना ग्रीसिया को काफी प्रभावित किया।
पायथागोरस एक परदे के पीछे से गुप्त भाषा में व्याख्यान देते थे - उनके शब्दों का सार केवल उच्च श्रेणी के शिष्य ही समझ सकते थे। उनका मानना था कि संख्या ही सृष्टि का रूप (form) है और सार (essence) भी। उन्होंने यूक्लिड ज्यामिति (Euclid’s geometry) के मुख्य भागों की रचना की और कई खगोलीय विचारों (astronomical ideas) पर काम किया जिन पर बाद में कोपरनिकस (Copernicus) की परिकल्पनाएँ सामने आईं। पायथागोरस से प्रभावित होकर क्रोटोना के लगभग दो हजार नागरिकों ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली छोड़ कर तीन सौ लोगों की समिति (Council of Three Hundred) के द्वारा पायथागॉरियन समुदाय का निर्माण किया। इस समिति ने सरकारी, वैज्ञानिक और धार्मिक संस्थान के मार्ग दर्शन से कार्य किया जिसने बाद में मैग्ना ग्रीसिया (Magna Grecia) को बहुत  प्रभावित किया।


पाइथागोरस बहुत “परिश्रमी पुरुष” थे। वे नब्बे वर्ष के थे जब साईलोन (जिनका दाख़िला रहस्यवादी विद्यालय ने अस्वीकार किया था) ने लोगों को हिंसक अत्याचार को उकसाया। क्रोटोना के प्रांगण में खड़े होकर पढ़ा साईलोन ने पाइथागोरस की एक गुप्त पुस्तक, ''हिरोस लोगो'' (पवित्र शब्द), को जोर से पढ़ा, और उनकी लिखी बातों का मज़ाक उड़ाया। जब पाइथागोरस और काउंसिल के चालीस मुख्य सदस्य वहाँ एकत्रित हुए तो साईलोन ने उस इमारत में आग लगा दी। इस आग में दो को छोड़कर सभी सदस्य मारे गए। परिणामस्वरूप पूरा पायथागॉरियन समुदाय तथा उनकी अधिकांश मूल शिक्षाएँ नष्ट हो गईं। फिर भी, "मास्टर" (पाइथागोरस) ने कई दार्शनिकों जैसे प्लेटो, एरिस्टोटल, ऑगस्टीन, थॉमस एक्विनास और [[Special:MyLanguage/Francis Bacon|फ्रांसिस बेकन]] को प्रभावित किया है।
पायथागोरस बहुत “परिश्रमी विशेषज्ञ” थे। वह नब्बे वर्ष के थे जब साईलोन (Cylon) (जिनका दाख़िला रहस्यवादी विद्यालय ने अस्वीकार किया था) ने लोगों को हिंसक अत्याचार करने को उकसाया। क्रोटोना के प्रांगण (courtyard) में खड़े होकर पढ़ा। साईलोन ने पायथागोरस की एक गुप्त पुस्तक, ''हिरोस लोगोस'' (Hieros Logos) (पवित्र शब्द), को जोर से पढ़ा, और उनकी लिखी बातों का मज़ाक उड़ाया। जब पायथागोरस और समिति के चालीस मुख्य सदस्य वहाँ एकत्रित हुए तो साईलोन ने उस इमारत में आग लगा दी। इस आग में दो को छोड़कर सभी सदस्य मारे गए। परिणामस्वरूप पूरा पायथागॉरियन समुदाय तथा उनकी अधिकांश मूल शिक्षाएँ नष्ट हो गईं। फिर भी, "मास्टर" (पायथागोरस) ने कई दार्शनिकों जैसे प्लेटो (Plato), एरिस्टोटल (Aristotle), ऑगस्टीन (Augustine), थॉमस एक्विनास (Thomas Aquinas) और [[Special:MyLanguage/Francis Bacon|फ्रांसिस बेकन]] (Francis Bacon) को प्रभावित किया है।


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=== बैल्थाज़ार ===
=== बैल्थाज़ार (Balthazar) ===


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{{main-hi|Three Wise Men|तीन बुद्धिमान पुरुष}} (Three Wise Men)


बल्थाजार [[Special:MyLanguage/Three Wise Men|तीन ज्योतिषियों]] (खगोल-विद्या विशारद/विशेषज्ञ) में से एक थे जिन्होनें बालक ईसा मसीह की उपस्थिति के तारे का अनुसरण किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कुथुमी एक समय में इथियोपिया के वही राजा थे जिन्होंने अपने क्षेत्र से खूब सारा खज़ाना लाकर ईसा मसीह को दिया था।
बल्थाजार [[Special:MyLanguage/Three Wise Men|तीन ज्योतिषियों]] (Three Wise Men) [खगोल-विद्या विशारद/विशेषज्ञ (astronomer/adepts)] में से एक थे जिन्होनें शिशु ईसा मसीह की उपस्थिति के तारे का अनुसरण किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कुथुमी एक समय में इथियोपिया (Ethiopia) के वही राजा थे जिन्होंने अपने राज्य से बहुत खज़ाना लाकर ईसा मसीह को दिया था।


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=== असीसी के फ्रांसिस ===
=== असीसी के फ्रांसिस (Francis of Assisi) ===


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{{Main-hi|Francis of Assisi|असीसी के फ्रांसिस}} (Francis of Assisi)


असीसी के दैवीय संरक्षक फ्रांसिस (सी. ११८१-१२२६) के रूप में उन्होंने अपने परिवार और धन को त्याग गरीबों और कोढ़ियों के बीच रह उनकी सेवा को अपना धर्म माना; ईसा मसीह के दिखाए मार्ग का अनुकरण करना उन्हें ज़्यादा आनंदमय लगा। १२०९ में सेंट मैथियास के पर्व पर पूजा करते करते समय उन्होंने पुजारी द्वारा पढ़ा गया यीशु का वह धर्मसिद्धांत सुना जिसमे उन्होंने अपने अनुयायियों को प्रचार करने को कहा था। इसके बाद फ्रांसिस ने उस छोटे गिरिजाघर से बाहर निकल ईसाई धर्म का प्रचार तथा लोगों का धर्म परिवर्तन कराना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने अपना धर्मं परिवर्तन किया उनमें एक सम्भ्रान्त महिला, लेडी क्लेयर, भी थीं, जिन्होंने अपना घर त्याग एक भिक्षुक का जीवन जीने का फैसला किया।
असीसी के दैवीय संरक्षक फ्रांसिस (सी. ११८१-१२२६) के रूप में उन्होंने अपने परिवार और धन को त्याग गरीबों और कोढ़ियों के बीच रह उनकी सेवा को अपना धर्म माना; ईसा मसीह के दिखाए मार्ग का अनुकरण करना उन्हें ज़्यादा आनंदमय लगा। १२०९ में सेंट मैथियास (St. Matthias) के पर्व पर पूजा करते समय उन्होंने पुजारी द्वारा पढ़ा गया ईसा मसीह का वह धर्मसिद्धांत सुना जिसमे उन्होंने अपने अनुयायियों को प्रचार करने को कहा था। इसके बाद फ्रांसिस ने उस छोटे गिरिजाघर से बाहर निकल कर ईसाई धर्म का प्रचार तथा लोगों का धर्म परिवर्तन कराना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने अपना धर्मं परिवर्तन किया उनमें एक सम्भ्रान्त महिला, लेडी क्लेयर (Lady Clare), भी थीं, जिन्होंने अपना घर त्याग एक भिक्षुक का जीवन जीने का फैसला किया।


फ्रांसिस और क्लेयर के जीवन से जुड़ी कई किंवदंतियों में से एक सांता मारिया डेगली एंजेली में उनके भोजन के समय ईश्वर के बारे में दिए  गए व्याख्यान से समबंधित है। व्याख्यान इतना मधुर था की सभी सुननेवाले अपना आपा खो उसमें मंत्रमुग्ध हो गए। तभी अचानक गांव के लोगों ने देखा की कॉन्वेंट और जंगल दोनों जगह आग लगी हुई है। सभी लोग आग बुझाने के लिए तेजी से आगे दौड़े तब आग की उस तेज रोशनी में उन्हें लोगों का एक छोटा समूह दिखाई दिया; उन्होंने देखा कि समूह के लोगों की भुजाएँ स्वर्ग की ओर उठी हुई थीं।
फ्रांसिस (Francis) और क्लेयर (Clare) के जीवन से जुड़ी कई दन्तकथाओं (legends) में से एक सांता मारिया डेगली एंजेली (Santa Maria degli Angeli) में उनके भोजन के समय ईश्वर के बारे में दिए  गए व्याख्यान से समबंधित है। व्याख्यान इतना मधुर था कि सभी सुननेवाले उसमें मंत्रमुग्ध हो गए। तभी अचानक गांव के लोगों ने देखा की मठ (convent) और जंगल दोनों जगह आग लगी हुई है। सभी लोग आग बुझाने के लिए तेजी से दौड़े तब आग की उस तेज रोशनी में उन्हें लोगों का एक छोटा समूह दिखाई दिया; उन्होंने देखा कि समूह के लोगों की भुजाएँ स्वर्ग की ओर उठी हुई थीं।


भगवान ने फ्रांसिस को "सूर्य" और "चंद्रमा" में अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास दिलाया, और सूली पर चढ़ाए गए ईसा मसीह के [[Special:MyLanguage/stigmata|चिन्ह]] देकर उनकी भक्ति को पुरस्कृत भी किया। फ्रांसिस यह सम्मान पाने वाले पहले संत थे। सेंट फ्रांसिस की प्रार्थना दुनिया भर में सभी धर्मों के लोग करते हैं: "भगवान, मुझे अपनी शांति का साधन बनाइये!..."
भगवान ने फ्रांसिस को "सूर्य" और "चंद्रमा" में अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास दिलाया, और सूली पर चढ़ाए गए ईसा मसीह के [[Special:MyLanguage/stigmata|चिन्ह]] देकर उनकी भक्ति को पुरस्कृत भी किया। फ्रांसिस यह सम्मान पाने वाले पहले संत थे। सेंट फ्रांसिस की प्रार्थना दुनिया भर में सभी धर्मों के लोग करते हैं: "भगवान, मुझे अपनी शांति का साधन बनाइये!..."
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=== शाहजहाँ ===
=== शाहजहाँ ===


भारत के मुगल सम्राट शाहजहाँ (१५९२-१६६६) के रूप में, कुथुमी ने अपने पिता, जहाँगीर, की भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंका, और अपने दादा [[Special:MyLanguage/Akbar the Great|अकबर]] की महान नैतिकता को आंशिक रूप से बहाल किया। उनके प्रबुद्ध शासनकाल के दौरान मुगल दरबार का वैभव अपनी चरम सीमा पर था - तब कला और वास्तुकला काफी उन्नत थी। शाहजहाँ ने संगीत और चित्रकला के प्रचार और प्रसार तथा स्मारकों, मस्जिदों, सार्वजनिक भवनों और सिंहासनों के निर्माण पर अपना शाही खजाना लुटा दिया - इनमें से कुछ चीज़ें आज भी देखी जा सकती हैं।
भारत के मुगल सम्राट शाहजहाँ (१५९२-१६६६) के रूप में, कुथुमी ने अपने पिता, जहाँगीर, की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध निर्णय लिया, और अपने दादा [[Special:MyLanguage/Akbar the Great|अकबर]] की महान नैतिकता को आंशिक (partial) रूप से पुनःस्थापित किया। उनके प्रबुद्ध (enlightened) शासनकाल के समय मुगल दरबार का वैभव अपनी चरम सीमा पर था - तब कला और वास्तुकला काफी उन्नत थी। शाहजहाँ ने संगीत और चित्रकला के प्रचार और प्रसार तथा स्मारकों, मस्जिदों, सार्वजनिक भवनों और सिंहासनों के निर्माण पर अपना बहुत सारा शाही खजाना लगा  दिया - इनमें से कुछ चीज़ें आज भी देखी जा सकती हैं।


प्रसिद्ध स्मारक ताज महल, जिसे "चमत्कारों में चमत्कार और दुनिया का अप्रतिम आश्चर्य" कहा जाता है, शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की कब्र के रूप में बनवाया था। मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के साथ साथ शासन किया था और १६३१ में अपने चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय उनकी मृत्यु हो गई। शाहजहाँ ने स्मारक को "मुमताज़ जितना ही सुन्दर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ताज महल मातृ तत्व का प्रतीक है और मुमताज के प्रति उनके शाश्वत प्रेम को दर्शाता है।
प्रसिद्ध स्मारक ताज महल, जिसे "चमत्कारों में चमत्कार और दुनिया का अप्रतिम आश्चर्य" कहा जाता है, शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की कब्र के रूप में बनवाया था। मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के साथ मिलकर शासन किया था और १६३१ में अपने चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय उनकी मृत्यु हो गई। शाहजहाँ ने स्मारक को "मुमताज़ जितना ही सुन्दर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ताज महल मातृ तत्व का प्रतीक है और मुमताज के प्रति उनके अनन्त प्रेम को दर्शाता है।


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=== कूट हूमी लाल सिंह ===
=== कूट हूमी लाल सिंह (Koot Hoomi Lal Singh) ===


पृथ्वी पर अपने अंतिम जन्म में, कुथुमी एक कश्मीरी ब्राह्मण थे - कूट हूमी लाल सिंह (जिन्हें कूट हूमी और के.एच. के नाम से भी जाना जाता है)। अत्यंत एकाकी जीवन जीने के बावजूद वे समाज में काफी सम्मानित थे। कुछ खंडित अभिलेखों के अलावा उनके जीवन और  कार्यों का लेखा जोखा मौजूद नहीं है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जन्मे महात्मा कुथुमी एक पंजाबी थे जिनका परिवार कश्मीर में बस गया था। उन्होंने १८५० में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था और माना जाता है कि भारत लौटने से पहले, १८५० के दशक में उन्होंने ''द डबलिन यूनिवर्सिटी मैगज़ीन'' में "द ड्रीम ऑफ़ रावन" (रामायण के रावण पर आधारित आध्यात्मिक निबंध) लिखे थे।
पृथ्वी पर अपने अंतिम जन्म में, कुथुमी एक कश्मीरी ब्राह्मण थे - कूट हूमी लाल सिंह (जिन्हें कूट हूमी और के.एच. के नाम से भी जाना जाता है) के रूप में सम्मानित किया गया। कूट हूमी ने एक अत्यंत एकांत जीवन व्यतीत किया, लेकिन उनके शब्दों और कार्यों का एक खंडित रिकॉर्ड ही उपलब्ध है। कुछ खंडित अभिलेखों के अलावा उनके जीवन और  कार्यों का लेखा जोखा मौजूद नहीं है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जन्मे, महात्मा कुथुमी एक पंजाबी थे जिनका परिवार कश्मीर में बस गया था। उन्होंने 1850 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) में अध्ययन किया और माना जाता है कि उन्होंने भारत लौटने से पहले 1854 के आसपास "द डबलिन यूनिवर्सिटी मैगज़ीन" में "द ड्रीम ऑफ़ रावण"(“The Dream of Ravan” to ''The Dublin University Magazine'')
(रामायण के रावण पर आधारित आध्यात्मिक निबंध) का योगदान दिया था।


कश्मीरी ब्राह्मण ने ड्रेसडेन, वुर्जबर्ग, नूर्नबर्ग और लीपज़िग विश्वविद्यालय में काफी समय बिताया। १८७५ में उन्होंने आधुनिक मनोविज्ञान के संस्थापक डॉ. गुस्ताव फेचनर से मुलाकात की। उनका बाकी का जीवन तिब्बत के शिगात्से में बौद्ध भिक्षुओं के मठ में बीता, जहां बाहरी दुनिया के साथ उनके संपर्क में उनके कुछ समर्पित छात्रों को डाक द्वारा भेजे गए उपदेशात्मक लेख शामिल थे। ये पत्र अब ब्रिटिश संग्रहालय में संग्रहीत हैं।
कश्मीरी ब्राह्मण (Kuthumi) ने ड्रेसडेन (Dresden), वुर्जबर्ग (Würzburg), नूर्नबर्ग (Nürnberg) और लीपज़िग विश्वविद्यालय (University of Leipzig) में काफी समय बिताया। १८७५ में उन्होंने आधुनिक मनोविज्ञान के संस्थापक डॉ. गुस्ताव फेचनर (Dr. Gustav Fechner) से मुलाकात की। उनका बाकी का जीवन तिब्बत के शिगात्से (Shigatse, Tibet) में बौद्ध भिक्षुओं के मठ में बीता, जहां बाहरी दुनिया में उनके संपर्क में आए कुछ श्रद्धालु छात्रों को डाक (mail) द्वारा भेजे गए उपदेशात्मक लेख शामिल थे। ये पत्र अब ब्रिटिश संग्रहालय में संग्रहीत हैं।


१८७५ में कुथुमी ने [[Special:MyLanguage/Helena P. Blavatsky|हेलेना पी. ब्लावात्स्की]] और [[Special:MyLanguage/El Morya|एल मोर्या]], जिन्हें मास्टर एम. के नाम से जाना जाता है, के साथ मिलकर [[Special:MyLanguage/Theosophical Society|थियोसोफिकल सोसाइटी]] की स्थापना की। उन्होंने हेलेना पी. ब्लावात्स्की को ''आइसिस अनवील्ड'' और ''द सीक्रेट डॉक्ट्रिन'' लिखने का काम सौंपा। इन किताबों के माध्यम से कुथुमी मानव जाति को प्राचीन युग के उस ज्ञान से पुनः परिचित करवाना चाहते थे जो दुनिया के सभी धर्मों का आधार है - यह ज्ञान लेमुरिया और अटलांटिस के रहस्यवादी विद्यालयों में संरक्षित है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर को पाना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, वह लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए जाने-अनजाने ईश्वर का प्रत्येक पुत्र और पुत्री काम कर रहा है। इनमें पुनर्जन्म का सिद्धांत भी शामिल है, जिसका प्रचार संत फ्रांसिस ने गाँव-गाँव जाकर किया था।  
१८७५ में कुथुमी ने [[Special:MyLanguage/Helena P. Blavatsky|हेलेना पी. ब्लावात्स्की]] (Helena P. Blavatsky) और [[Special:MyLanguage/El Morya|एल मोर्या]] (El Morya), जिन्हें मास्टर एम. (Master M.) के नाम से जाना जाता है, के साथ मिलकर [[Special:MyLanguage/Theosophical Society|थियोसोफिकल सोसाइटी]] (Theosophical Society) की स्थापना की। उन्होंने हेलेना पी. ब्लावात्स्की को ''आइसिस अनवील्ड'' और ''द सीक्रेट डॉक्ट्रिन'' (Isis Unveiled and The Secret Doctrine) लिखने का काम सौंपा। इन किताबों के माध्यम से कुथुमी मानव जाति को प्राचीन युग के उस ज्ञान से पुनः परिचित करवाना चाहते थे जो दुनिया के सभी धर्मों का आधार है - यह ज्ञान लेमुरिया (Lemuria) और अटलांटिस (Atlantis) के रहस्यवादी विद्यालयों में संरक्षित है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर को पाना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, वह लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए जाने-अनजाने ईश्वर का प्रत्येक पुत्र और पुत्री काम कर रहा है। इनमें पुनर्जन्म का सिद्धांत भी शामिल है, जिसका प्रचार संत फ्रांसिस ने गाँव-गाँव जाकर किया था।  


थियोसोफिकल सोसाइटी ने अपने छात्रों के लिए कुथुमी और एल मोर्या के पत्रों को ''द महात्मा लेटर्स'' और अन्य कार्यों में प्रकाशित किया है। उन्नीसवीं सदी के अंत में कुथुमी ने अपना शरीर छोड़ दिया था।
थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) ने अपने छात्रों के लिए कुथुमी और एल मोर्या के पत्रों को ''द महात्मा लेटर्स''(The Mahatma Letters) और अन्य कार्यों में प्रकाशित किया है। उन्नीसवीं सदी के अंत में कुथुमी ने अपना शरीर छोड़ दिया था।


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<span id="World_Teacher"></span>
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== विश्व गुरु ==
=== विश्व गुरु ===


{{Main-hi|World Teacher|विश्व गुरु}}
{{Main-hi|World Teacher|विश्व गुरु}}


ईसा मसीह ने दिव्यगुरु कुथुमी को विश्व शिक्षक का पद प्रदान किया - यह पद ईसा मसीह और कुथुमी दोनों संयुक्त रूप से संभालते हैं। ये दोनों ईश्वर के साथ पुनर्मिलन की चाह रखने वाली प्रत्येक जीवात्मा को प्रायोजित करते हैं - ये उन्हें कर्म के कारण/ प्रभाव अनुक्रमों को नियंत्रित करने वाले मौलिक कानूनों की शिक्षा देते हैं और दैनिक चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सिखाते हैं। [[Special:MyLanguage/dharma|धर्म]] एवं [[Special:MyLanguage/sacred labor|पवित्र श्रम]] के माध्यम से अपने ईश्वरीय स्वरुप की क्षमता को पूरा करना हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है।
ईसा मसीह ने दिव्यगुरु कुथुमी को विश्व शिक्षक का पद प्रदान किया - यह पद ईसा मसीह और कुथुमी दोनों संयुक्त रूप से संभालते हैं। ये दोनों ईश्वर के साथ पुनर्मिलन की चाह रखने वाली प्रत्येक जीवात्मा को प्रायोजित करते हैं - ये उन्हें कर्म के कारण/ प्रभाव अनुक्रमों को नियंत्रित करने वाले बुनियादी नियमों (fundamental laws) की शिक्षा देते हैं और दैनिक चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सिखाते हैं। [[Special:MyLanguage/dharma|धर्म]] एवं [[Special:MyLanguage/sacred labor|पवित्र श्रम]] के माध्यम से अपने ईश्वरीय स्वरुप की क्षमता को पूरा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।


<span id="Master_psychologist"></span>
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=== निपुण मनोवैज्ञानिक ===
=== निपुण मनोवैज्ञानिक ===


कुथुमी एक निपुण मनोवैज्ञानिक माने जाते हैं, और उनका काम सभी शिष्यों को उनके मनोवैज्ञानिक मसलों को सुलझाने में सहायता करना है।  २७ जनवरी १९८५ को उन्होंने [[Special:MyLanguage/Lord Maitreya|मैत्रेय]] द्वारा दिए गए [[Special:MyLanguage/dispensation|प्रकाश रुपी उपहार]] की घोषणा की:  
कुथुमी एक निपुण मनोवैज्ञानिक माने जाते हैं, और उनका काम सभी शिष्यों को उनके मनोवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने में सहायता करना है।  २७ जनवरी १९८५ को उन्होंने [[Special:MyLanguage/Lord Maitreya|गुरु मैत्रेय]] (Lord Maitreya) द्वारा दिए गए [[Special:MyLanguage/dispensation|प्रकाश रुपी उपहार]] (dispensation) की घोषणा की:  


<blockquote>यह उपहार मेरा एक काम है जो मुझे आप में से प्रत्येक व्यक्ति के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उपचार के लिए करना है ताकि हम शीघ्रातिशीघ्र शारीरिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थितियों के मूल कारण तक पहुंच सकें। ताकि ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में अब कोई बाधाएं ना आएं। अब आप लोग अपने कदमों को डगमगाने ना दें।<ref>कुथुमी, "रेमेम्बेर द एंशिएंट एनकाउंटर (Remember the Ancient Encounter)," {{POWref|२८|९|, ३ मार्च, १९८५}}</ref></blockquote>
<blockquote>यह उपहार मेरा एक निर्धारित कार्य  है जो मुझे आप में से प्रत्येक व्यक्ति के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उपचार के लिए करना है ताकि हम शीघ्रातिशीघ्र शारीरिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थितियों के मूल कारण तक पहुंच सके ताकि ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में कोई बाधा या भोग-विलास (indulgences) न हो और निश्चित रूप से दो कदम आगे और एक कदम पीछे न हो।<ref>कुथुमी, "रेमेम्बेर द एंशिएंट एनकाउंटर (Remember the Ancient Encounter)," {{POWref|२८|९|, ३ मार्च, १९८५}}</ref></blockquote>


अपनी शिक्षाओं में कुथुमी ने हमें अपनी [[Special:MyLanguage/dweller-on-the-threshold|दहलीज पर रहनेवाले दुष्ट]] और इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट को समझने का मार्ग दिखाया है। मनुष्य के सारे नकारात्मक कर्म उसके [[Special:MyLanguage/Synthetic image|कृत्रिम स्व]] या [[Special:MyLanguage/carnal mind|दैहिक मन]] में नाभि के निचले हिस्से में एकत्रित हो एक पेटी के सामान उससे लिपटे रहते हैं। इसे ही [[Special:MyLanguage/electronic belt|इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट]] कहते हैं।  
अपनी शिक्षाओं में कुथुमी ने हमें अपनी [[Special:MyLanguage/dweller-on-the-threshold|अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप]] (dweller-on-the-threshold) और इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट (electronic belt) को समझने का मार्ग दिखाया है। मनुष्य के सारे नकारात्मक कर्म उसके [[Special:MyLanguage/Synthetic image|कृत्रिम रूप]] (Synthetic image) या [[Special:MyLanguage/carnal mind|दैहिक मन]] (carnal mind) में नाभि के निचले हिस्से में एकत्रित हो एक पेटी के सामान उससे लिपटे रहते हैं। इसे ही [[Special:MyLanguage/electronic belt|इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट]] कहते हैं।  


[[Special:MyLanguage/Solar-plexus chakra|मणिपुर चक्र]] के बिंदु पर आरेखित, शरीर के निचले भाग की ओर सर्पिल गति से जाते हुए मनुष्य के सब नकारात्मक कर्म पैरों के नीचे जाकर इकट्ठे होते हैं, जहाँ यह एक केतली का आकार ले लेते हैं। अवचेतन और अचेतन मन का यह क्षेत्र सभी पूर्व जन्मों के सभी अपरिवर्तित कर्मों का अभिलेख रखता है। इस अपरिवर्तित ऊर्जा के भंवर के मध्य में मनुष्य की स्वयं-विरोधी चेतना स्थित होती है, जिसका समाप्त होना ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए ज़रूरी है।
[[Special:MyLanguage/Solar-plexus chakra|मणिपुर चक्र]] (Solar-plexus ) के बिंदु पर आरेखित, शरीर के निचले भाग की ओर सर्पिल गति से जाते हुए मनुष्य के सब नकारात्मक कर्म पैरों के नीचे जाकर इकट्ठे होते हैं, जहाँ यह एक नगाड़ा (kettledrum) का आकार ले लेते हैं। अवचेतन और अचेतन मन का यह क्षेत्र सभी पूर्व जन्मों के सभी अपरिवर्तित कर्मों का अभिलेख रखता है। इस अपरिवर्तित ऊर्जा के भंवर के मध्य में मनुष्य की स्वयं-विरोधी अवचेतन मन की दहलीज़ पर कृत्रिम रूप की चेतना स्थित होती है, जिसका समाप्त होना ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए ज़रूरी है।


अगर हम दिव्यगुरु का [[Special:MyLanguage/mantra|मंत्र]] "आई ऍम लाइट" बोलते हैं तो वे अच्छी तरह से हमारी सहायता कर सकते हैं। यह मंत्र ईश्वर के ज्ञान के विकास तथा उनके श्वेत प्रकाश की बढ़ोतरी के लिए है। ये हमें यह बताने के लिए है कि ईश्वर हमारे अंदर ही बसता है। जब हम ईश्वर के करीब जाते हैं तो ईश्वर भी हमारे पास आते हैं, और फिर देवदूत भी एकत्र होकर हमारे [[Special:MyLanguage/aura|आभा]] को और प्रभावी बनाते हैं। कुथुमी ने अपनी पुस्तक "स्टडीज ऑफ़ ह्यूमन ऑरा" में "आई एम लाइट" मंत्र का उपयोग करते हुए एक त्रिगुणी अभ्यास के बारे में बताते हैं, जिसे छात्र अपनी आभा के आवरण को मजबूत करने के उद्देश्य से कर सकते हैं ताकि वे ईश्वरत्व की चेतना को बनाए रख सकें।
अगर हम इन दिव्यगुरु का [[Special:MyLanguage/mantra|मंत्र]] "आई ऍम लाइट" (I AM Light) का उच्चारण करते हैं तो वह अच्छी तरह से हमारी सहायता कर सकते हैं। यह मंत्र ईश्वर के ज्ञान के विकास तथा उनके श्वेत प्रकाश की बढ़ोतरी के लिए है। इससे हमे यह अनुभव होता है कि ईश्वर हमारे अंदर ही हैं। जब हम ईश्वर के करीब जाते हैं तो ईश्वर भी हमारे पास आते हैं, और फिर देवदूत भी एकत्र होकर हमारे [[Special:MyLanguage/aura|आभामंडल]] को और प्रभावी बनाते हैं। कुथुमी ने अपनी पुस्तक "स्टडीज ऑफ़ ह्यूमन ऑरा" (Studies of the Human Aura) में "आई एम लाइट" (I AM Light) मंत्र का उपयोग करते हुए एक त्रिगुणी अभ्यास के बारे में बताते हैं, जिसे छात्र अपनी आभामंडल  के आवरण को मजबूत करने के उद्देश्य से कर सकते हैं ताकि वे ईश्वर की चेतना को बनाए रख सकें।


<div align=center>'''आई ऍम लाइट'''<br />
<div align=center>'''आई ऍम लाइट'''<br />
कुथुमी का मंत्र</div>
कुथुमी का मंत्र</div>


<div style="margin-left: 20%;">
 
<div style="margin-left: 20%;">
आई ऍम लाइट, ग्लोइंग लाइट,<br />  
आई ऍम लाइट, ग्लोइंग लाइट,<br />  
रेडिएटिंग लाइट, इन्टैंसिफ़िएड लाइट।<br />  
रेडिएटिंग लाइट, इन्टैंसिफ़िएड लाइट।<br />  
गॉड कंस्यूमस माय डार्कनेस,<br />  
गॉड कंस्यूमस माय डार्कनेस,<br />  
ट्रांसम्यूटिंग ईट ईंटू लाइट।
ट्रांसम्यूटिंग ईट ईंटू लाइट।
<div style="margin-left: 20%;">
I AM light, glowing light,<br />
Radiating light, intensified light.<br />
God consumes my darkness,<br />
Transmuting it into light.


दिस डे आई ऍम ए फोकस ऑफ़ द सेंट्रल सन।<br />
दिस डे आई ऍम ए फोकस ऑफ़ द सेंट्रल सन।<br />
Line 110: Line 121:
बाय द माइटी रिवर ऑफ़ लाइट विच आई ऍम।
बाय द माइटी रिवर ऑफ़ लाइट विच आई ऍम।


आई ऍम, आई ऍम, आई ऍम light;<br />
This day I AM a focus of the Central Sun.<br />
Flowing through me is a crystal river,<br />
A living fountain of light<br />
That can never be qualified<br />
By human thought and feeling.<br />
I AM an outpost of the Divine.<br />
Such darkness as has used me is swallowed up<br />
By the mighty river of light which I AM.
 
आई ऍम, आई ऍम, आई ऍम लाइट;<br />
आई लिव, आई लिव, आई लिव इन लाइट।<br />  
आई लिव, आई लिव, आई लिव इन लाइट।<br />  
आई ऍम लाइटस फुल्लेस्ट डायमेंशन;<br />  
आई ऍम लाइटस फुल्लेस्ट डायमेंशन;<br />  
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</div>
</div>


कुथुमी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका भी बताते हैं
I AM, I AM, I AM light;<br />
I live, I live, I live in light.<br />
I AM light’s fullest dimension;<br />
I AM light’s purest intention.<br />
I AM light, light, light<br />
Flooding the world everywhere I move,<br />
Blessing, strengthening and conveying<br />
The purpose of the kingdom of heaven.
</div>
 
कुथुमी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका भी बताते हैं।


<blockquote>
<blockquote>
... आपके जीवन के किसी भी प्रसंग का महत्वपूर्ण हिस्सा वह नहीं है जो आपने अनुभव किया है बल्कि ''उस प्रसंग पर आपकी प्रतिक्रिया'' है। आपकी प्रतिक्रिया ही आपके आगे का स्थान का निर्णय करती है। आपकी प्रतिक्रिया ही हमें यह बताती है कि आप कितने परिपक्व हैं, आपने कितना ज्ञान और विवेक अर्जित किया है, और इसी बात पर हमारे आगे के निर्णय भी निर्भर होते हैं...
... आपके जीवन के किसी भी प्रसंग का महत्वपूर्ण हिस्सा वह नहीं है जो आपने अनुभव किया है बल्कि ''उस प्रसंग पर आपकी क्या प्रतिक्रिया'' है। आपकी प्रतिक्रिया ही आपके आगे बढ़ने की आध्यात्मिक सीढ़ी का स्थान निर्धारित करती है। आपकी प्रतिक्रिया ही हमें यह बताती है कि आप अपने पूर्व शिक्षण, प्रेम और समर्थन के ज्ञान से कितने तैयार (ripened) हैं।


अगर आप तत्क्षण ये संकल्प करते हैं कि आप स्वयं में सुधार लाकर श्रेष्ठता को ओर बढ़ेंगे तो न सिर्फ मैं आपकी मदद करूँगा वरन आपकी सहायतार्थ अपने दूत भी भेजूंगा। इसलिए अपने आस पास की ध्वनियों तथा सूक्ष्म और भौतिक दोनों तलों पर होने वाली घटनाओं पर ध्यान दीजिये - मैं किसी भी रूप में आपसे मिल सकता हूँ।<ref>Ibid.</ref>
इस प्रकार, इस समय से, यदि आप मुझे पुकारोगे और अपने हृदय में अतीत से ऊपर उठने का दृढ़ संकल्प करोगे तो मैं आपके अपने हृदय के द्वारा और किसी भी संदेशवाहक के माध्यम से आपको  शिक्षा दूंगा। इसलिए अपने आस पास की ध्वनियों तथा भावनात्मक और भौतिक दोनों तलों पर होने वाली घटनाओं पर ध्यान दीजिये - मैं किसी भी रूप में आपसे मिल सकता हूँ।<ref>Ibid.</ref>
</blockquote>
</blockquote>


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=== कैथेड्रल ऑफ़ नेचर ===
=== कैथेड्रल ऑफ़ नेचर ===


{{main-hi|Cathedral of Nature|कैथेड्रल ऑफ़ नेचर}}
{{main-hi|Cathedral of Nature|कुदरत का मंदिर}} (Cathedral of Nature)


कुथुमी कश्मीर में टेम्पल ऑफ़ इल्लुमिनाशन के अध्यक्ष हैं, इसे प्रकृति के मुख्य गिरजाघर के रूप में भी जाना जाता है।  
कुथुमी कश्मीर में ज्ञान के प्रकाश का मंदिर (Temple of Illumination) के अध्यक्ष हैं, इसे प्रकृति के मुख्य मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।  


<span id="Kuthumi’s_Retreat_at_Shigatse,_Tibet"></span>
<span id="Kuthumi’s_Retreat_at_Shigatse,_Tibet"></span>
=== शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल ===
=== शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल (Kuthumi’s Retreat at Shigatse, Tibet) ===


{{main-hi|Kuthumi's Retreat at Shigatse, Tibet|शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल}}
{{main-hi|Kuthumi's Retreat at Shigatse, Tibet|शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल}} (Kuthumi's Retreat at Shigatse, Tibet)


शिगात्से, तिब्बत में अपने आकाशीय आश्रय स्थल से कुथुमी उन लोगों के लिए दिव्य संगीत बजाते हैं जो भौतिक स्तर (पृथ्वी) से उच्च सप्तक की ओर [[Special:MyLanguage/transition|प्रस्थान]] कर रहे होते हैं अर्थात जब पृथ्वी पर उनकी "मृत्यु" हो रही होती है। उनके वाद्य यन्त्र से इतनी अद्भुत ब्रह्मांडीय ज्योति निकलती है कि जीवात्माएं [[Special:MyLanguage/astral plane|सूक्ष्म स्तर]] से निकल इस प्रकाश को ओर खींची चली आती हैं। वाद्य यन्त्र से निकलता हुआ यह दिव्य संगीत और प्रकाश इतना प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] से जुड़ा हुआ है।  
शिगात्से, तिब्बत में अपने आकाशीय आश्रय स्थल से कुथुमी उन लोगों के लिए दिव्य संगीत बजाते हैं जो भौतिक स्तर (पृथ्वी) से उच्च सप्तक (higher octaves) की ओर [[Special:MyLanguage/transition|प्रस्थान]] (transition) कर रहे होते हैं अर्थात जब पृथ्वी पर उनकी "मृत्यु" हो रही होती है। उनके वाद्य यन्त्र से इतनी अद्भुत ब्रह्मांडीय ज्योति निकलती है कि जीवात्माएं [[Special:MyLanguage/astral plane|सूक्ष्म स्तर]] से निकल इस प्रकाश को ओर खींची चली आती हैं। वाद्य यन्त्र से निकलता हुआ यह दिव्य संगीत और प्रकाश इतना प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] (City Foursquare) से जुड़ा हुआ है।  


इस प्रकार, सुनहरी पोशाक में लिपटे इस गुरु की वहज से हज़ारों लोग दिव्यगुरूओं के आश्रय स्थलों की ओर आकर्षित होते हैं। कुथुमी और ईसा मसीह की शक्लों में काफी समानता है इसलिए जो लोग मृत्यु के समय कुथुमी को देख पाते हैं उन्हें लगता है कि उन्होंने ईसा मसीह के दर्शन कर लिए हैं।
इस प्रकार, सुनहरी पोशाक में लिपटे इस भाई के महान प्रेम से हज़ारों लोग दिव्यगुरूओं के आश्रय स्थलों की ओर आकर्षित होते हैं। कुथुमी और ईसा मसीह की शक्लों में काफी समानता है इसलिए जो लोग मृत्यु के समय कुथुमी को देख पाते हैं उन्हें लगता है कि उन्होंने ईसा मसीह के दर्शन कर लिए हैं।


<span id="See_also"></span>
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== इसे भी देखिये ==
== इसे भी देखिये ==


[[Special:MyLanguage/World Teacher|विश्व गुरु]]
[[Special:MyLanguage/World Teacher|विश्व गुरु]] (World Teacher)


[[Special:MyLanguage/Brothers and Sisters of the Golden Robe|सुनहरे वस्त्र वाले भाई बहन]]
[[Special:MyLanguage/Brothers and Sisters of the Golden Robe|सुनहरे वस्त्र वाले भाई बहन]] (Brothers and Sisters of the Golden Robe)


[[Special:MyLanguage/Order of Francis and Clare|फ्रांसिस और क्लेयर का वर्ग]]
[[Special:MyLanguage/Order of Francis and Clare|फ्रांसिस और क्लेयर का वर्ग]] (Order of Francis and Clare)


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== स्रोत ==
== स्रोत ==


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{MTR}}, s.v. “कुथुमी”
{{MTR}}, s.v. “Kuthumi.”
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{THA}}
{{THA}}.
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<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
[[Category:Heavenly beings]]
[[Category:Heavenly beings]]
</div>


<references />
<references />

Latest revision as of 09:59, 11 May 2025

Other languages:
Portrait of Kuthumi, wearing a brown robe and a fur hat
कुथुमी

दिव्यगुरु कुथुमी पहले ज्ञान की दूसरी किरण के चौहान (chohan) थे। अब वह ईसा मसीह के साथ मिल कर विश्व शिक्षक (World Teacher) के रुप में लोगों की सेवा करते हैं।

वह सुनहरे वस्त्र वाले भाई (Brothers of the Golden Robe) के प्रधानाध्यापक हैं और ज्ञान की किरण के छात्रों को ध्यान (meditation) की कला और शब्द के विज्ञान में प्रशिक्षित करते हैं ताकि वे अपने चित्त, जीवात्मा के मनोवैज्ञानिक बन सकें।

पूर्व शारीरिक जन्म

थटमोस III (Thutmose III)

फैरो थटमोस III (१५६७ सी.बी) को सबसे महान मिस्त्र के राजा (Pharaoh) और पुजारी माना जाता है। वह कला के संरक्षक थे और मिस्र साम्राज्य के निर्माण का श्रेय भी इनको ही जाता है। उन्होंने मध्य पूर्व (Middle East) के अधिकांश हिस्से को मिस्र साम्राज्य में शामिल कर उसका विस्तार किया था। माउंट कार्मेल (Mt. Carmel) के नजदीक के मैदान पर हुए युद्ध में उनकी जीत सबसे निर्णायक जीत थी। यहां वह लगभग ३३० विद्रोही एशियाई राजकुमारों के गठबंधन को हराने के लिए वह अपनी पूरी सेना को मेगिद्दो दर्रे (narrow Megiddo) के संकीर्ण मार्ग से लेकर गए थे। यह एक साहसिक कदम था जिसका सभी उच्चाधिकारियों ने विरोध किया था। परन्तु अपनी योजना के प्रति पूर्णतया आश्वस्त थटमोस (Thutmose) सूर्य देवता अमोन-रा (Amon-Ra) का चित्र लिए आगे बढ़ते रहे, और विजयश्री प्राप्त की।

Seated figure wearing a robe, writing in a book
द स्कूल ऑफ एथेंस से लिया गया पायथागोरस का चित्र, राफेल (१५०९) (Pythagoras, from The School of Athens, Raphael (1509))

पायथागोरस (Pythagoras)

छठी शताब्दी बी.सी में वह यूनानी दार्शनिक पायथागोरस थे जिन्हें "हलके रंग के बालों वाला सैमियन" (fair-haired Samian) भी कहा जाता था। इन्हें अपोलो (Apollo) का पुत्र माना जाता था। युवावस्था में डेमेटर (Demeter) (यूनान में कृषि की देवी जिन्हें धरती की माँ भी कहते हैं) ने उन्हें आतंरिक न्याय के बारे में ज्ञान दिया। इसके बाद से इस ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाण जानने के लिए पायथागोरस पुजारियों और विद्वानों के साथ निर्भीक रूप से चर्चा करते थे। सत्य की खोज में वह कई स्थानों, जैसे फिलिस्तीन, अरब, और भारत गए। अंततः ये मिस्र के मंदिरों में पहुंचे जहां उन्होंने मेम्फिस (Memphis) के पुजारियों का विश्वास जीता तथा थेब्स (Thebes) नामक शहर में आइसिस (Isis) (मिस्र की देवी जिन्हें दिव्य माँ भी कहते हैं) के रहस्यों को जानने शिष्यता प्राप्त की।

लगभग ५२९ बीसी के दौरान जब एशिया के एक विजेता कमबाईसिस (Cambyses) ने मिस्र पर आक्रमण किया तो पायथागोरस को बेबीलोन भेज दिया गया। पैग़ंबर डैनियल (Prophet Daniel) यहाँ पर राजा के मंत्री के पद पर कार्यरत थे। यहां पर रब्बी (rabbis) समूह ने उन्हें ईश्वरीय स्वरूप (I AM THAT I AM) के बारे में शिक्षा दी - यह शिक्षा पहले मूसा (Moses) को दी गई थी। पारसी पुजारियों और मेजाई [(magi)ज्योतिष विद्या के ज्ञानी] पुरषों ने उन्हें संगीत, खगोल विज्ञान (astronomy) और दिव्य आह्वान करने के विज्ञान के बारे में शिक्षा दी। पायथागोरस यहाँ पर १२ साल रहे जिसके उपरान्त उन्होंने बेबीलोन (Babylon) छोड़ दिया और क्रोटोना (Crotona) में चेलों के एक महासंघ (brotherhood) की स्थापना की। क्रोटना दक्षिणी इटली में स्थित डोरियन (Dorian) का एक व्यस्त बंदरगाह है। उनका “निर्वाचित मनुष्यों का शहर” श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) का एक रहस्यवादी विद्यालय (mystery school) है।

क्रोटोना (Crotona) में सावधानीपूर्वक चुने गए कुछ पुरुषों और स्त्रियों ने सार्वभौमिक नियमों की गणितीय अभिव्यक्ति (mathematical expression) पर आधारित एक मार्ग का अनुसरण किया जो उनके अनुशासित तरीके के जीवन की लय (rhythm) और समन्वय (harmony) एवं संगीत में चित्रित है। पांच साल की कठिन मौन की परिवीक्षा के बाद, पायथागोरस के "गणितज्ञों" ने दीक्षाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से प्रगति की, हृदय की सहज क्षमताओं को विकसित किया जिससे ईश्वर के पुत्र या पुत्री, जैसा कि पायथागोरस के "गोल्डन वर्सेज" (Golden Verses) में कहा गया है, "एक अमर ईश्वर दिव्य, अब नश्वर नहीं।" (“a deathless God divine, mortal no more.”)

पायथागोरस एक परदे के पीछे से गुप्त भाषा में व्याख्यान देते थे - उनके शब्दों का सार केवल उच्च श्रेणी के शिष्य ही समझ सकते थे। उनका मानना था कि संख्या ही सृष्टि का रूप (form) है और सार (essence) भी। उन्होंने यूक्लिड ज्यामिति (Euclid’s geometry) के मुख्य भागों की रचना की और कई खगोलीय विचारों (astronomical ideas) पर काम किया जिन पर बाद में कोपरनिकस (Copernicus) की परिकल्पनाएँ सामने आईं। पायथागोरस से प्रभावित होकर क्रोटोना के लगभग दो हजार नागरिकों ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली छोड़ कर तीन सौ लोगों की समिति (Council of Three Hundred) के द्वारा पायथागॉरियन समुदाय का निर्माण किया। इस समिति ने सरकारी, वैज्ञानिक और धार्मिक संस्थान के मार्ग दर्शन से कार्य किया जिसने बाद में मैग्ना ग्रीसिया (Magna Grecia) को बहुत प्रभावित किया।

पायथागोरस बहुत “परिश्रमी विशेषज्ञ” थे। वह नब्बे वर्ष के थे जब साईलोन (Cylon) (जिनका दाख़िला रहस्यवादी विद्यालय ने अस्वीकार किया था) ने लोगों को हिंसक अत्याचार करने को उकसाया। क्रोटोना के प्रांगण (courtyard) में खड़े होकर पढ़ा। साईलोन ने पायथागोरस की एक गुप्त पुस्तक, हिरोस लोगोस (Hieros Logos) (पवित्र शब्द), को जोर से पढ़ा, और उनकी लिखी बातों का मज़ाक उड़ाया। जब पायथागोरस और समिति के चालीस मुख्य सदस्य वहाँ एकत्रित हुए तो साईलोन ने उस इमारत में आग लगा दी। इस आग में दो को छोड़कर सभी सदस्य मारे गए। परिणामस्वरूप पूरा पायथागॉरियन समुदाय तथा उनकी अधिकांश मूल शिक्षाएँ नष्ट हो गईं। फिर भी, "मास्टर" (पायथागोरस) ने कई दार्शनिकों जैसे प्लेटो (Plato), एरिस्टोटल (Aristotle), ऑगस्टीन (Augustine), थॉमस एक्विनास (Thomas Aquinas) और फ्रांसिस बेकन (Francis Bacon) को प्रभावित किया है।

बैल्थाज़ार (Balthazar)

मुख्य लेख: तीन बुद्धिमान पुरुष (Three Wise Men)

बल्थाजार तीन ज्योतिषियों (Three Wise Men) [खगोल-विद्या विशारद/विशेषज्ञ (astronomer/adepts)] में से एक थे जिन्होनें शिशु ईसा मसीह की उपस्थिति के तारे का अनुसरण किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कुथुमी एक समय में इथियोपिया (Ethiopia) के वही राजा थे जिन्होंने अपने राज्य से बहुत खज़ाना लाकर ईसा मसीह को दिया था।

असीसी के फ्रांसिस (Francis of Assisi)

मुख्य लेख: असीसी के फ्रांसिस (Francis of Assisi)

असीसी के दैवीय संरक्षक फ्रांसिस (सी. ११८१-१२२६) के रूप में उन्होंने अपने परिवार और धन को त्याग गरीबों और कोढ़ियों के बीच रह उनकी सेवा को अपना धर्म माना; ईसा मसीह के दिखाए मार्ग का अनुकरण करना उन्हें ज़्यादा आनंदमय लगा। १२०९ में सेंट मैथियास (St. Matthias) के पर्व पर पूजा करते समय उन्होंने पुजारी द्वारा पढ़ा गया ईसा मसीह का वह धर्मसिद्धांत सुना जिसमे उन्होंने अपने अनुयायियों को प्रचार करने को कहा था। इसके बाद फ्रांसिस ने उस छोटे गिरिजाघर से बाहर निकल कर ईसाई धर्म का प्रचार तथा लोगों का धर्म परिवर्तन कराना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने अपना धर्मं परिवर्तन किया उनमें एक सम्भ्रान्त महिला, लेडी क्लेयर (Lady Clare), भी थीं, जिन्होंने अपना घर त्याग एक भिक्षुक का जीवन जीने का फैसला किया।

फ्रांसिस (Francis) और क्लेयर (Clare) के जीवन से जुड़ी कई दन्तकथाओं (legends) में से एक सांता मारिया डेगली एंजेली (Santa Maria degli Angeli) में उनके भोजन के समय ईश्वर के बारे में दिए गए व्याख्यान से समबंधित है। व्याख्यान इतना मधुर था कि सभी सुननेवाले उसमें मंत्रमुग्ध हो गए। तभी अचानक गांव के लोगों ने देखा की मठ (convent) और जंगल दोनों जगह आग लगी हुई है। सभी लोग आग बुझाने के लिए तेजी से दौड़े तब आग की उस तेज रोशनी में उन्हें लोगों का एक छोटा समूह दिखाई दिया; उन्होंने देखा कि समूह के लोगों की भुजाएँ स्वर्ग की ओर उठी हुई थीं।

भगवान ने फ्रांसिस को "सूर्य" और "चंद्रमा" में अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास दिलाया, और सूली पर चढ़ाए गए ईसा मसीह के चिन्ह देकर उनकी भक्ति को पुरस्कृत भी किया। फ्रांसिस यह सम्मान पाने वाले पहले संत थे। सेंट फ्रांसिस की प्रार्थना दुनिया भर में सभी धर्मों के लोग करते हैं: "भगवान, मुझे अपनी शांति का साधन बनाइये!..."

शाहजहाँ
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ताज महल

शाहजहाँ

भारत के मुगल सम्राट शाहजहाँ (१५९२-१६६६) के रूप में, कुथुमी ने अपने पिता, जहाँगीर, की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध निर्णय लिया, और अपने दादा अकबर की महान नैतिकता को आंशिक (partial) रूप से पुनःस्थापित किया। उनके प्रबुद्ध (enlightened) शासनकाल के समय मुगल दरबार का वैभव अपनी चरम सीमा पर था - तब कला और वास्तुकला काफी उन्नत थी। शाहजहाँ ने संगीत और चित्रकला के प्रचार और प्रसार तथा स्मारकों, मस्जिदों, सार्वजनिक भवनों और सिंहासनों के निर्माण पर अपना बहुत सारा शाही खजाना लगा दिया - इनमें से कुछ चीज़ें आज भी देखी जा सकती हैं।

प्रसिद्ध स्मारक ताज महल, जिसे "चमत्कारों में चमत्कार और दुनिया का अप्रतिम आश्चर्य" कहा जाता है, शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की कब्र के रूप में बनवाया था। मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के साथ मिलकर शासन किया था और १६३१ में अपने चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय उनकी मृत्यु हो गई। शाहजहाँ ने स्मारक को "मुमताज़ जितना ही सुन्दर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ताज महल मातृ तत्व का प्रतीक है और मुमताज के प्रति उनके अनन्त प्रेम को दर्शाता है।

कूट हूमी लाल सिंह (Koot Hoomi Lal Singh)

पृथ्वी पर अपने अंतिम जन्म में, कुथुमी एक कश्मीरी ब्राह्मण थे - कूट हूमी लाल सिंह (जिन्हें कूट हूमी और के.एच. के नाम से भी जाना जाता है) के रूप में सम्मानित किया गया। कूट हूमी ने एक अत्यंत एकांत जीवन व्यतीत किया, लेकिन उनके शब्दों और कार्यों का एक खंडित रिकॉर्ड ही उपलब्ध है। कुछ खंडित अभिलेखों के अलावा उनके जीवन और कार्यों का लेखा जोखा मौजूद नहीं है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जन्मे, महात्मा कुथुमी एक पंजाबी थे जिनका परिवार कश्मीर में बस गया था। उन्होंने 1850 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) में अध्ययन किया और माना जाता है कि उन्होंने भारत लौटने से पहले 1854 के आसपास "द डबलिन यूनिवर्सिटी मैगज़ीन" में "द ड्रीम ऑफ़ रावण"(“The Dream of Ravan” to The Dublin University Magazine) (रामायण के रावण पर आधारित आध्यात्मिक निबंध) का योगदान दिया था।

कश्मीरी ब्राह्मण (Kuthumi) ने ड्रेसडेन (Dresden), वुर्जबर्ग (Würzburg), नूर्नबर्ग (Nürnberg) और लीपज़िग विश्वविद्यालय (University of Leipzig) में काफी समय बिताया। १८७५ में उन्होंने आधुनिक मनोविज्ञान के संस्थापक डॉ. गुस्ताव फेचनर (Dr. Gustav Fechner) से मुलाकात की। उनका बाकी का जीवन तिब्बत के शिगात्से (Shigatse, Tibet) में बौद्ध भिक्षुओं के मठ में बीता, जहां बाहरी दुनिया में उनके संपर्क में आए कुछ श्रद्धालु छात्रों को डाक (mail) द्वारा भेजे गए उपदेशात्मक लेख शामिल थे। ये पत्र अब ब्रिटिश संग्रहालय में संग्रहीत हैं।

१८७५ में कुथुमी ने हेलेना पी. ब्लावात्स्की (Helena P. Blavatsky) और एल मोर्या (El Morya), जिन्हें मास्टर एम. (Master M.) के नाम से जाना जाता है, के साथ मिलकर थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) की स्थापना की। उन्होंने हेलेना पी. ब्लावात्स्की को आइसिस अनवील्ड और द सीक्रेट डॉक्ट्रिन (Isis Unveiled and The Secret Doctrine) लिखने का काम सौंपा। इन किताबों के माध्यम से कुथुमी मानव जाति को प्राचीन युग के उस ज्ञान से पुनः परिचित करवाना चाहते थे जो दुनिया के सभी धर्मों का आधार है - यह ज्ञान लेमुरिया (Lemuria) और अटलांटिस (Atlantis) के रहस्यवादी विद्यालयों में संरक्षित है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर को पाना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, वह लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए जाने-अनजाने ईश्वर का प्रत्येक पुत्र और पुत्री काम कर रहा है। इनमें पुनर्जन्म का सिद्धांत भी शामिल है, जिसका प्रचार संत फ्रांसिस ने गाँव-गाँव जाकर किया था।

थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) ने अपने छात्रों के लिए कुथुमी और एल मोर्या के पत्रों को द महात्मा लेटर्स(The Mahatma Letters) और अन्य कार्यों में प्रकाशित किया है। उन्नीसवीं सदी के अंत में कुथुमी ने अपना शरीर छोड़ दिया था।

उनका आज का लक्ष्य

विश्व गुरु

मुख्य लेख: विश्व गुरु

ईसा मसीह ने दिव्यगुरु कुथुमी को विश्व शिक्षक का पद प्रदान किया - यह पद ईसा मसीह और कुथुमी दोनों संयुक्त रूप से संभालते हैं। ये दोनों ईश्वर के साथ पुनर्मिलन की चाह रखने वाली प्रत्येक जीवात्मा को प्रायोजित करते हैं - ये उन्हें कर्म के कारण/ प्रभाव अनुक्रमों को नियंत्रित करने वाले बुनियादी नियमों (fundamental laws) की शिक्षा देते हैं और दैनिक चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सिखाते हैं। धर्म एवं पवित्र श्रम के माध्यम से अपने ईश्वरीय स्वरुप की क्षमता को पूरा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

निपुण मनोवैज्ञानिक

कुथुमी एक निपुण मनोवैज्ञानिक माने जाते हैं, और उनका काम सभी शिष्यों को उनके मनोवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने में सहायता करना है। २७ जनवरी १९८५ को उन्होंने गुरु मैत्रेय (Lord Maitreya) द्वारा दिए गए प्रकाश रुपी उपहार (dispensation) की घोषणा की:

यह उपहार मेरा एक निर्धारित कार्य है जो मुझे आप में से प्रत्येक व्यक्ति के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उपचार के लिए करना है ताकि हम शीघ्रातिशीघ्र शारीरिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थितियों के मूल कारण तक पहुंच सके ताकि ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में कोई बाधा या भोग-विलास (indulgences) न हो और निश्चित रूप से दो कदम आगे और एक कदम पीछे न हो।[1]

अपनी शिक्षाओं में कुथुमी ने हमें अपनी अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप (dweller-on-the-threshold) और इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट (electronic belt) को समझने का मार्ग दिखाया है। मनुष्य के सारे नकारात्मक कर्म उसके कृत्रिम रूप (Synthetic image) या दैहिक मन (carnal mind) में नाभि के निचले हिस्से में एकत्रित हो एक पेटी के सामान उससे लिपटे रहते हैं। इसे ही इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट कहते हैं।

मणिपुर चक्र (Solar-plexus ) के बिंदु पर आरेखित, शरीर के निचले भाग की ओर सर्पिल गति से जाते हुए मनुष्य के सब नकारात्मक कर्म पैरों के नीचे जाकर इकट्ठे होते हैं, जहाँ यह एक नगाड़ा (kettledrum) का आकार ले लेते हैं। अवचेतन और अचेतन मन का यह क्षेत्र सभी पूर्व जन्मों के सभी अपरिवर्तित कर्मों का अभिलेख रखता है। इस अपरिवर्तित ऊर्जा के भंवर के मध्य में मनुष्य की स्वयं-विरोधी अवचेतन मन की दहलीज़ पर कृत्रिम रूप की चेतना स्थित होती है, जिसका समाप्त होना ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए ज़रूरी है।

अगर हम इन दिव्यगुरु का मंत्र "आई ऍम लाइट" (I AM Light) का उच्चारण करते हैं तो वह अच्छी तरह से हमारी सहायता कर सकते हैं। यह मंत्र ईश्वर के ज्ञान के विकास तथा उनके श्वेत प्रकाश की बढ़ोतरी के लिए है। इससे हमे यह अनुभव होता है कि ईश्वर हमारे अंदर ही हैं। जब हम ईश्वर के करीब जाते हैं तो ईश्वर भी हमारे पास आते हैं, और फिर देवदूत भी एकत्र होकर हमारे आभामंडल को और प्रभावी बनाते हैं। कुथुमी ने अपनी पुस्तक "स्टडीज ऑफ़ ह्यूमन ऑरा" (Studies of the Human Aura) में "आई एम लाइट" (I AM Light) मंत्र का उपयोग करते हुए एक त्रिगुणी अभ्यास के बारे में बताते हैं, जिसे छात्र अपनी आभामंडल के आवरण को मजबूत करने के उद्देश्य से कर सकते हैं ताकि वे ईश्वर की चेतना को बनाए रख सकें।

आई ऍम लाइट
कुथुमी का मंत्र


आई ऍम लाइट, ग्लोइंग लाइट,
रेडिएटिंग लाइट, इन्टैंसिफ़िएड लाइट।
गॉड कंस्यूमस माय डार्कनेस,
ट्रांसम्यूटिंग ईट ईंटू लाइट।

I AM light, glowing light,
Radiating light, intensified light.
God consumes my darkness,
Transmuting it into light.

दिस डे आई ऍम ए फोकस ऑफ़ द सेंट्रल सन।
फ्लोइंग थरु मी इस ए क्रिस्टल रिवर,
ए लिविंग फाउंटेन ऑफ़ लाइफ
देट कैन नेवर बे बी क्वालिफाइड
बाय ह्यूमन थॉट और फीलिंग।
आई ऍम ऍन आउटपोस्ट ऑफ़ द डीवाइन।
सच डार्कनेस एस हैस युसड मी इस स्वालोवड उप
बाय द माइटी रिवर ऑफ़ लाइट विच आई ऍम।

This day I AM a focus of the Central Sun.
Flowing through me is a crystal river,
A living fountain of light
That can never be qualified
By human thought and feeling.
I AM an outpost of the Divine.
Such darkness as has used me is swallowed up
By the mighty river of light which I AM.

आई ऍम, आई ऍम, आई ऍम लाइट;
आई लिव, आई लिव, आई लिव इन लाइट।
आई ऍम लाइटस फुल्लेस्ट डायमेंशन;
आई ऍम लाइटस प्यूरेस्ट इंटेंशन।
आई ऍम लाइट, लाइट, लाइट
फ्लडिंग द वर्ल्ड एवरीवेयर आई मूव,
ब्लेसिंग, स्ट्रेंग्थेनिंग एंड कन्वेयिंग
द पर्पस ऑफ़ द किंगडम ऑफ़ हेवन।

I AM, I AM, I AM light;
I live, I live, I live in light.
I AM light’s fullest dimension;
I AM light’s purest intention.
I AM light, light, light
Flooding the world everywhere I move,
Blessing, strengthening and conveying
The purpose of the kingdom of heaven.

कुथुमी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका भी बताते हैं।

... आपके जीवन के किसी भी प्रसंग का महत्वपूर्ण हिस्सा वह नहीं है जो आपने अनुभव किया है बल्कि उस प्रसंग पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है। आपकी प्रतिक्रिया ही आपके आगे बढ़ने की आध्यात्मिक सीढ़ी का स्थान निर्धारित करती है। आपकी प्रतिक्रिया ही हमें यह बताती है कि आप अपने पूर्व शिक्षण, प्रेम और समर्थन के ज्ञान से कितने तैयार (ripened) हैं।

इस प्रकार, इस समय से, यदि आप मुझे पुकारोगे और अपने हृदय में अतीत से ऊपर उठने का दृढ़ संकल्प करोगे तो मैं आपके अपने हृदय के द्वारा और किसी भी संदेशवाहक के माध्यम से आपको शिक्षा दूंगा। इसलिए अपने आस पास की ध्वनियों तथा भावनात्मक और भौतिक दोनों तलों पर होने वाली घटनाओं पर ध्यान दीजिये - मैं किसी भी रूप में आपसे मिल सकता हूँ।[2]

आश्रय स्थल

कैथेड्रल ऑफ़ नेचर

मुख्य लेख: कुदरत का मंदिर (Cathedral of Nature)

कुथुमी कश्मीर में ज्ञान के प्रकाश का मंदिर (Temple of Illumination) के अध्यक्ष हैं, इसे प्रकृति के मुख्य मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल (Kuthumi’s Retreat at Shigatse, Tibet)

मुख्य लेख: शिगात्से, तिब्बत में कुथुमी का आश्रय स्थल (Kuthumi's Retreat at Shigatse, Tibet)

शिगात्से, तिब्बत में अपने आकाशीय आश्रय स्थल से कुथुमी उन लोगों के लिए दिव्य संगीत बजाते हैं जो भौतिक स्तर (पृथ्वी) से उच्च सप्तक (higher octaves) की ओर प्रस्थान (transition) कर रहे होते हैं अर्थात जब पृथ्वी पर उनकी "मृत्यु" हो रही होती है। उनके वाद्य यन्त्र से इतनी अद्भुत ब्रह्मांडीय ज्योति निकलती है कि जीवात्माएं सूक्ष्म स्तर से निकल इस प्रकाश को ओर खींची चली आती हैं। वाद्य यन्त्र से निकलता हुआ यह दिव्य संगीत और प्रकाश इतना प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह मन मंदिर (City Foursquare) से जुड़ा हुआ है।

इस प्रकार, सुनहरी पोशाक में लिपटे इस भाई के महान प्रेम से हज़ारों लोग दिव्यगुरूओं के आश्रय स्थलों की ओर आकर्षित होते हैं। कुथुमी और ईसा मसीह की शक्लों में काफी समानता है इसलिए जो लोग मृत्यु के समय कुथुमी को देख पाते हैं उन्हें लगता है कि उन्होंने ईसा मसीह के दर्शन कर लिए हैं।

इसे भी देखिये

विश्व गुरु (World Teacher)

सुनहरे वस्त्र वाले भाई बहन (Brothers and Sisters of the Golden Robe)

फ्रांसिस और क्लेयर का वर्ग (Order of Francis and Clare)

अधिक जानकारी के लिए

Kuthumi and Djwal Kul, The Human Aura: How to Activate and Energize Your Aura and Chakras

Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation

Jesus and Kuthumi, Corona Class Lessons: For Those Who Would Teach Men the Way

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “कुथुमी”

Kuthumi and Djwal Kul, The Human Aura: How to Activate and Energize Your Aura and Chakras

Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation

  1. कुथुमी, "रेमेम्बेर द एंशिएंट एनकाउंटर (Remember the Ancient Encounter)," Pearls of Wisdom, vol. २८, no. ९, ३ मार्च, १९८५.
  2. Ibid.