गॉडफ्रे
दिव्यगुरु गॉडफ्रे का जन्म सेंट जर्मेन के दूत गाइ डब्लू. बैलार्ड के रूप में हुआ था। उन्होंने श्वेत महासंघ और ईश्वरीय स्वरुप के कानून की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया। १९३९ में अपना शरीर छोड़ने तक उन्होंने ग्रह के लिए आत्मिक चेतना का ध्यान केंद्रित रखा। उनकी पत्नी और समरूप जोड़ी एडना बैलार्ड थी, जो अब महिला दिव्यदूरु लोटस के नाम से जानी जाती हैं। गाइ बैलार्ड का उपनाम गॉडफ्रे रे किंग था। अब उन्हें दिव्यगुरु मास्टर गॉडफ्रे, गॉड ओबिडिएंस के नाम से जाना जाता है, लेकिन उनके शिष्य आज भी उन्हें प्यार से “डैडी” कहते हैं।
अवतार
सहारा मरुस्थल में स्वर्ण युग
► मुख्य लेख: सहारा मरुस्थल में स्वर्ण युग
गॉडफ्रे महान राजा (सेंट जर्मेन) के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे, जिन्होंने 50,000 साल पहले उस स्थान पर राज किया था जहाँ आज सहारा मरुस्थल स्थित है। गाइ, उनकी पत्नी, एडना बैलार्ड और उनके बेटे, डोनाल्ड, ने वहां सेंट जर्मेन के बच्चों के रूप में जन्म लिया था।
बाद के अवतार
गोलमेज के शूरवीरों में से एक और इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द लायनहार्ट (११५७-११९९) उनके अन्य अवतार थे।
जॉर्ज वाशिंगटन
► मुख्य लेख: जॉर्ज वाशिंगटन
गॉडफ्रे को संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन (१७३२-१७९९) के रूप में भी जाना जाता है।
गाइ डब्लू. बैलार्ड
गॉडफ्रे के मिशन में निर्णायक मोड़ उस समय आया जब वे अपने अंतिम अवतार में थे तथा ब्रॉडवे, लॉस एंजिल्स में चल रहे थे। उस समय, जब ऐसा लग रहा था कि सभी उनके विरुद्ध हैं, वे चलते-चलते अचानक रुके और उन्होंने दहलीज पर रहने वाले दुष्ट को एक आदेश दिया। यह आदेश उनकी उस बची हुई मानव रचना का अवशेष था जिसका रूपांतरण नहीं हुआ था "ये अंतिम बार है जब तुमने मुझे डराया है। अब तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है।”
इसके कुछ समय बाद ही माउंट शास्ता पर उनकी मुलाकात मास्टर सेंट जर्मेन से हुई, जो उन्हें महासंघ के आश्रयस्थल में ले गए और उन्हें विश्व मिशन के लिए प्रशिक्षण दिया। इन सभी अनुभवों को तीन पुस्तकों में दर्ज किया गया है - अनवील्ड मिस्ट्रीज़ (पीला), द मैजिक प्रेजेंस (गुलाबी) और द “आई ऍम” डिस्कोर्स (नीला)।
Although the requirements for his ascension had been completed several years before he actually ascended, he volunteered to continue in the service of the Brotherhood as their point of contact in the world of form. Through the assistance given him by the Great Divine Director in the Cave of Light, his four lower bodies were aligned and his threefold flame balanced, enabling him to be the channel for many miracles and healings before his ascension. As part of his final service while in embodiment, Godfre took on world karma and expiated it through his physical form, thus sparing humanity great suffering that he himself chose to bear, even as Jesus bore the crucifixion for the sins of mankind.
Lessons from his life
From Godfre, we learn that unfailing obedience to one’s ascended guru and to the Great Law of Life is essential to individual victory and to the completion of the cosmic timetable for the golden age. Each act of disobedience sets back the plans of the Brotherhood for the victory of the planet, a victory for which each person is individually and collectively responsible.
The second great lesson we learn from Godfre is that it is not until we cast down the idol of the human consciousness that we begin the trek up the mountain of our initiations. The rejection of the human ego and consciousness should be made each time it attempts to assert itself. One need only say, “In the name of my mighty I AM Presence, I refuse to accept the tyranny of my human consciousness!” Of other individuals one may say, “In the name of my mighty I AM Presence, I refuse to accept (his or her) human consciousness. Beloved Holy Christ Self, you step forth in your blazing Reality and be the only Presence acting here!”
Godfre won his freedom through obedience to the law of Being. He teaches us to ascend moment by moment by raising our thoughts and feelings, our energies and actions. The ascension is the goal of life not only for the few, but for the many.
See also
Sources
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “Godfre.”