दिव्य आदेश (Decree)
संज्ञा एक पूर्व-निर्धारित इच्छा, एक फरमान या आदेश, आधिकारिक निर्णय, घोषणा, एक कानून, व्यवस्था या धार्मिक नियम, एक आज्ञा या धर्मादेश
क्रिया निर्णय लेना, घोषणा करना, निश्चित करना या आज्ञा देना, निश्चय करना, आदेश देना या निषेध करना, ईश्वर की उपस्थिति का आह्वान करना, ईश्वर के प्रकाश/ऊर्जा/चेतना, उसकी शक्ति और संरक्षण, पवित्रता और उत्तमता का आह्वाहन करना
परिभाषा
बुक ऑफ जॉब (Book of Job) में लिखा है, "जब तुम किसी बात के लिए डिक्री करोगे तो वह तुम्हारे लिए स्थापित कर दी जायेगी; और तुम्हारा मार्ग प्रकाशित हो जाएगा।" [1] ईश्वरत्व की सभी प्रार्थनाओं में डिक्री सबसे शक्तिशाली है। इसके बारे में आईज़ेयाह ने "कमांड ये मी (Command ye me)" (४५:११) में लिखा है, यही प्रकाश का वास्तविक आदेश है जो, "लक्स फिएट" के रूप में, भगवान के बेटों और बेटियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह परमेश्वर का आधिकारिक शब्द है जो मनुष्य के ईश्वरीय स्वरुप और आत्मा के नाम से बोला गया है ताकि परमेश्वर की इच्छा और चेतना के माध्यम से पृथ्वी पर रचनात्मक परिवर्तन लाया जा सके और पृथ्वी पर सब कुछ वैसा हो जाए जैसा कि स्वर्ग में है।
ऊर्जस्वी डिक्री न्याय परायण लोगों की एक अमोघ एवं जोशीली प्रार्थना है जो वे ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। यह उच्चारित शब्द के विज्ञान पर आधारित है और बहुत कुछ उपलब्ध करा सकती है।[2] ऊर्जस्वी डिक्री वह साधन है जिसके द्वारा प्रार्थनाकर्ता ईश्वर के वचन को पहचानता है - तब वह सृष्टिकर्ता की मूल आज्ञा "अब यहाँ प्रकाश हो: और वह जगह प्रकाशित हो गई” को भी समझ पाता है।[3]
मन में विश्वास और आशा रखकर, प्रेम और आनंद के साथ बोली गई ऊर्जस्वी डिक्री से प्रार्थनाकर्ता ईश्वर के वचनो को रोपित करता है और साथ ही पवित्र आत्मा की पवित्र अग्नि के द्वारा कर्मो के रूपांतरण का अनुभव करता है।[4] इससे उसके सारे दुष्कर्म, रोग और मृत्यु पवित्र अग्नि में भस्म हो जाते हैं और न्याय परायण जीवात्मा संरक्षित रहती है।
डिक्री व्यक्तिगत रूपांतरण, आत्म-पारगमन और ग्रहों के परिवर्तन के लिए रसायन शास्त्रियों का उपकरण भी है और तकनीक भी।
डिक्री के भाग
डिक्री छोटी या लंबी हो सकती है और आमतौर पर प्रत्येक डिक्री में एक औपचारिक प्रस्तावना और समापन दोनों चीज़ें होती है। सेंट जर्मेन इन भागों के उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए कहते हैं:
साधारणतया डिक्री के तीन भाग होते हैं, हर एक भाग को ईश्वर को लिखे हुए पत्र के समान समझिये:
(१) डिक्री का अभिवादन आह्वानात्मक है। यह ईश्वर के प्रत्येक पुत्र और पुत्री की व्यक्तिगत ईश्वरीय स्वरूप और यह ईश्वर के उन सेवकों को संबोधित करता है जो आध्यात्मिक पदक्रम में शामिल हैं। यह अभिवादन (डिक्री की प्रस्तावना), जब आदरपूर्वक दिया जाता है, तो एक आह्वान होता है जो दिव्यगुरूओं को उत्तर देने के लिए बाध्य करता है। जिस तरह आपके अग्निशमन अधिकारी आपकी पुकार को अनसुना नहीं कर सकते उसी तरह हम भी आपकी पुकार का उत्तर देने से इंकार नहीं कर सकते। जब आप बहुत प्रेम के साथ, अकेले में या फिर अपने साथियों सहित, ईश्वर का अभिवादन करते है तो आपकी डिक्री का उत्तर देने के लिए दिव्यगुरु अपनी ऊर्जा संलग्न करने को बाध्य हो जाते हैं।
(2) The body of your letter is composed of statements phrasing your desires, the qualifications you would invoke for self or others, and the supplications that would be involved even in ordinary prayer. Having released the power of the spoken Word through your outer consciousness, your subconscious mind, and your superconscious or Higher Self, you can rest assured that the supreme consciousness of the Ascended Masters whom you have invoked is also concerned with the manifestation of that which you have called forth.
(3) Now you come to the close of your decree, the acceptance, the sealing of the letter in the heart of God, released with a sense of commitment into the realm of the Spirit whence manifestation must return to the world of material form according to the unerring laws of alchemy (the all-chemistry of God) and precipitation.
Those who understand the power of the square in mathematics will realize that when groups of individuals are engaged in invoking the energies of God, they are not merely adding power by the number of people in the group on a one-plus-one basis, but they are entering into a very old covenant of the square which squares the release of power to accomplish the spoken Word by the number of individuals who are decreeing and by the number of times that each decree is given.[5]
इसे भी देखिये
अधिक जानकारी के लिए
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Science of the Spoken Word.
Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation.
Prayers, Meditations and Dynamic Decrees for Personal and World Transformation.
मार्क एल. प्रोफेट और एलिजाबेथ क्लेयर प्रोफेट की किताब द साइंस ऑफ द स्पोकन वर्ड: व्हाई एंड हाउ टू डिक्री इफेक्टिवली (The Science of the Spoken Word: Why and How to Decree Effectively) (ऑडियो एल्बम)
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Science of the Spoken Word, पांचवा अध्याय.