Translations:Discipleship/4/hi
(3) मित्र: जो लोग गुरु के मित्र के रूप में जाने जाते हैं उन्हें दिव्यगुरूओं द्वारा आमंत्रित किया जाता है - "अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं बल्कि मित्र कहूंगा"[1]-अब से तुम एक साथी और सहकर्मी के रूप में मेरे साथ सभी जिम्मेदारियों को वहन (bear) करोगे। मित्र गुरु के प्रकाश का भागीदार होने के साथ साथ गुरु का बोझ भी बांटता है। वह अब्राहम की तरह, जिन्हें ईश्वर का मित्र कहा जाता था, और अन्य चेलों की तरह ही मित्रता के गुणों को प्रदर्शित करता है। वह पूर्ण वफादारी से गुरु तथा उसके उद्देश्यों को आश्वासन, सांत्वना, सलाह और समर्थन प्रदान करता है।
- ↑ जॉन १५.