Body elemental/hi: Difference between revisions

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== शिशु के जन्म में शारीरिक तत्व की भूमिका ==
== शिशु के जन्म में शारीरिक तत्व की भूमिका ==


[[Special:MyLanguage/Christ Self|आत्मा]] एवं [[Special:MyLanguage/I AM Presence|मनुष्य में उपस्थित ईश्वर के अंश]] के निर्देशन पर कार्य करता हुआ, शरीर का मौलिक तत्व इलेक्ट्रॉनिक पैटर्न और जीवनधारा की सूक्ष्म रूपरेखा को भौतिक अभिव्यक्ति में प्रदर्शित करता है।[[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के स्वामी]] द्वारा पुनर्जन्म की घोषणा के समय से लेकर गर्भधारण तक, आनेवाली जीवात्मा के शरीर का मौलिक तत्व, पिता एवं माता के मौलिक शारीरिक तत्वों के साथ मिलकर त्रिमूर्ति का निर्माण करता है। ईश्वर की आज्ञानुसार किया गया यह कार्य माता के गर्भ में पल रहे जीव के शरीर के प्रत्येक अणु में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की ऊर्जा का संचार करता है। अगर पिताजी पास नहीं होते तो उनकी आत्मा बच्चे के विकास में सहायता के लिए प्रकाश किरणों को मां की ओर भेजती है।</ref>
[[Special:MyLanguage/Christ Self|आत्मा]] एवं [[Special:MyLanguage/I AM Presence|मनुष्य में उपस्थित ईश्वर के अंश]] के निर्देशन पर कार्य करता हुआ, शरीर का मौलिक तत्व इलेक्ट्रॉनिक पैटर्न और जीवनधारा की सूक्ष्म रूपरेखा को भौतिक रूप में अभिव्यक्ति करता है।[[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के स्वामी]] द्वारा पुनर्जन्म की घोषणा के समय से लेकर गर्भधारण तक, आनेवाली जीवात्मा के शरीर का मौलिक तत्व, पिता एवं माता के मौलिक शारीरिक तत्वों के साथ मिलकर त्रिमूर्ति का निर्माण करता है। ईश्वर की आज्ञानुसार किया गया यह कार्य माता के गर्भ में पल रहे जीव के प्रत्येक अणु में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की ऊर्जा का संचार करता है। अगर पिताजी पास नहीं होते तो उनकी आत्मा बच्चे के विकास में सहायता के लिए प्रकाश किरणों को मां की ओर भेजती है।</ref>


From the moment the umbilical cord is cut and the [[threefold flame]] is lit by the [[Maha Chohan|Holy Spirit]]—who breathes into his nostrils the breath of life—until it is extinguished at the close of the earthly cycle, the body elemental serves the needs of the evolving soul on the physical plane even as the angelic hosts minister to his needs on the emotional and mental planes.
शिशु के जन्म (जिस क्षण शिशु की गर्भनाल काटी जाती है तथा [[Special:MyLanguage/Holy Spirit|महाचौहान]] उसकी [[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिदेव ज्योत]] को जलाते है) से लेकर उसकी मृत्यु तक (जिस क्षण त्रिदेव ज्योत बुझ जाती जाती है), मौलिक शारीरक तत्व भौतिक स्तर पर हर पल जीवात्मा के सेवा में लीन रहता है। इस पूरे समय के दौरान देवदूत जीव की मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करते है।


== The work of the body elemental ==
<span id="The_work_of_the_body_elemental"></span>
== शरीर के मौलिक तत्व का कार्य ==


The body elemental is always a mimic of the individual’s moods and mandates. Whether man decrees “I am well” or “I am sick,” “I feel good” or “I feel bad,” the body elemental is the genie that appears to carry out his wish—man’s karma his only limitation.  
शरीर का मौलिक तत्व सदा व्यक्ति की मनोदशा और स्वभाव का अनुकरण करता है। मनुष्य जो कहेगा उसका मौलिक तत्त्व उसी की नक़ल करेगा - मैं स्वस्थ हूँ, मैं बीमार हूँ , मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ या फिर मैं बुरा महसूस कर रहा हूँ - यूँ समझिये की मौलिक शारीरिक तत्व एक जिन्न है जो व्यक्ति की आज्ञा का पालन करता है, वह मनुष्य के कर्म के अलावा कुछ नहीं कर सकता।  


The body elemental is the playmate that children often see and that parents have come to accept as part of their “make-believe” world. Dressing according to the mode of the individual’s consciousness, this unseen helper dons the garb that most resembles either the predominant quality currently being expressed by the lifestream or one that is outstanding from the past.  
बच्चों को अक्सर शरीर का मौलिक तत्त्व दिखाई देता है और वे उस से खेलते-बतियाते हैं, परन्तु व्यस्क लोग अक्सर इस बात को समझ नहीं पाते और इसे बच्चे की कल्पना की उपज मानते हैं। शरीर का मौलिक तत्व व्यक्ति की चेतना के अनुसार वस्त्र पहनता है; यह अदृश्य सहायक वही वेश लेता है जो या तो व्यक्ति के वर्तमान जीवन का मुख्य गुण है या फिर पिछले जन्मों का कोई प्रमुख गुण।  


Whether or not man acknowledges the existence of the body elemental and his responsibility to deal justly with this servant, the elemental takes his orders from him and acts according to his will. All of man’s thoughts and feelings are electronically transferred to him, and he immediately outpictures them within the cells of the body temple. Thus, man often makes himself ill by first making his body elemental ill. He trains his servant to think negatively and to feel negative, and his servant obeys. Whereas man’s doubts and fears completely paralyze the body elemental, a positive attitude toward life releases him to establish man’s health and well-being.  
चाहे मनुष्य शरीर के मौलिक तत्व की उपस्थिति को जाने या न जाने; माने या न माने, मौलिक तत्व सदैव मनुष्य की सेवा में लगा रहता है, वह मनुष्य की इच्छानुसार कार्य करता रहता है। मनुष्य के विचार और भावनाएं तरंगों के रूप में उसके मौलिक तत्व तक पहुंचती रहती हैं, तथा मौलिक तत्व उन सभी भावनाओं और विचारों को मनुष्य के भौतिक शरीर के प्रत्येक अणु प्रदर्शित करता रहता है। मनुष्य अपने नकारात्मक विचारों से अपने मौलिक तत्व को नकारात्मक बना देता और यही नकारात्मकता शरीर में बीमारी के रूप में प्रकट होती है। अतः हम ये कह सकते हैं कि मनुष्य के प्रत्यक्ष रूप में बीमार होने से पहले उसके शरीर का मौलिक तत्व बीमार होता है। जहाँ भय और संशय शरीर के मौलिक तत्व को पूरी तरह से पंगु बना देते हैं वहीँ जीवन के प्रति सकारात्मक विचार उसे मुक्त कर मनुष्य को अच्छा स्वास्थय प्रदान करते हैं।  


Just as [[sylph]]s and [[salamander]]s, [[gnome]]s and [[undine]]s are bowed down by the planetary effluvia, so mankind’s body elementals are severely handicapped by the [[mass consciousness]]. If the individual is possessed by demons or is under a negative influence, the body elemental cannot help but be affected. Thus an ailing physical body can be symptomatic of the contamination of the [[aura]] and the control of the consciousness by forces untethered to the Christ. Unless challenged in the name of the Christ, these intruders can prevent the body elemental from effectively performing his service. Prevention being the best and safest cure, it behooves man to make daily invocations to the Christ Self for the freedom and protection of the body elemental from all foreign interference and from all that is not of the light.  
जिस प्रकार हवा के मौलिक तत्व [[Special:MyLanguage/sylph|सिल्फ्स]] (slyphs), अग्नि के मौलिक तत्व [[Special:MyLanguage/salamander|सैलामैंडर]] (Salamanders), पृथ्वी के मौलिक तत्व [[Special:MyLanguage/gnome|नोम्स]] (Gnomes) और जल के मौलिक तत्व [[Special:MyLanguage/undine|अनडाइंस]] (Undines) इस ग्रह के प्रदूषण से संक्रमित हो जाते हैं उसी प्रकार मानवता की [[Special:MyLanguage/mass consciousness|सामूहिक चेतना]] से इंसान के शरीर के मौलिक तत्व कमज़ोर हो जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति नकारात्मकता में जीता है तो उसके शरीर का मौलिक तत्व इस नकारात्मकता से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता। अतः अस्वस्थ शरीर व्यक्ति के दूषित [[Special:MyLanguage/aura|आभामंडल]] तथा ईश्वर से उसकी दूरी की ओर इशारा करता है। अपनी आत्मिक चेतना से हमें सभी प्रकार की नकारात्मकता को स्वयं से दूर करना पड़ता है ताकि शरीर के मौलिक तत्व स्वतंत्रता से अपना काम कर पाएं। रोकथाम ही सबसे अच्छा और सबसे सुरक्षित इलाज है इसलिए मनुष्य को चाहिए की वह प्रतिदिन अपनी आत्मिक चेतना का आह्वाहन करे ताकि उसके शरीर का मौलिक तत्व बाह्य अतिक्रमण से सुरक्षित रहे।  


The source of the energy the body elemental uses in servicing the physical body is man’s own [[Threefold flame|heart flame]] and the light emanations of the [[chakra]]s. If these centers, which are for the distribution of energy from the heart to the [[four lower bodies]], are covered with astral effluvia, the body elemental is hindered in his attempts to bring forth perfection on the physical plane. The more light the individual has lowered into the forcefield of his being, the more light the body elemental has to work with as he tends the flame upon the altar of the body temple.
इंसान को स्वस्थ रखने के लिये मौलिक तत्व उसके ह्रदय में स्थित [[Special:MyLanguage/Threefold flame|त्रिदेव ज्योत]] और शरीर के सातों [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] से प्रवहित होते हुए प्रकाश का इस्तेमाल करता है। ये चक्र ह्रदय की ऊर्जा को [[Special:MyLanguage/four lower bodies|चारों निचले शरीरों]] में वितरित करते हैं, परन्तु अगर ये चक्र सूक्ष्म स्तर के प्रदुषण से प्रभावित होते हैं तो मौलिक तत्व भौतिक स्तर पर अपना काम करने में बाधित होता है। इंसान जितना अधिक प्रकाश अपने शारीरिक प्रभावक्षेत्र में संचारित करता है, मौलिक तत्व उतना ही प्रकाश उसकी सेवा में अर्पित करता है।


You are the master of your body elemental. As you give him positive input instead of those complaining negatives, you will be much happier, more healthy and more holy—and so will your body elemental. And, of course, body elementals cannot do the best job, even though they would like to, when you don’t give them the best food and exercise, spiritual teaching and practices.
आप अपने शरीर के मौलिक तत्त्व के अधिकारी हैं। अगर आप उसे सकारात्मक विचार देंगे, आप बेहद प्रसन्न, स्वस्थ और पवित्र रहेंगे। साथ ही यह भी ज़रूरी है की आप नियमित व्यायाम तथा सात्विक भोजन करें और आध्यात्मिक उन्नति के लिए ज्ञान अर्जन करें क्योंकि ऐसा न करने पर शरीर का मौलिक तत्व चाह कर भी अच्छा कार्य नहीं कर सकता।


== The immortality of the body elemental ==
<span id="The_immortality_of_the_body_elemental"></span>
== शरीर का मौलिक तत्व अनश्वर है ==


Unlike other [[elemental]]s, the body elemental enjoys a type of immortality. Created simultaneously with the physical body of man, he becomes a part of the evolving soul consciousness as it gains experience in the plane of [[Matter]]. Between the soul’s embodiments, the body elemental identifies with the etheric counterpart and is prepared with the soul for the next incarnation. Recharged by the Christ Self for the service ahead, the body elemental assumes the form of the sometimes changing polarity—masculine or feminine—of the body that the soul will inhabit.  
अन्य [[Special:MyLanguage/elemental|मौलिक तत्वों]] की अपेक्षा शरीर का मौलिक तत्त्व अनश्वर है। हालांकि इसका निर्माण भौतिक शरीर के साथ होता है, परन्तु [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] के स्तर पर अनुभव प्राप्त करते हुए यह विकसित हो रही आत्मिक चेतना का हिस्सा बन जाता है। विभिन्न जन्मों के अंतराल में , यह अपने सूक्ष्म तत्व में सम्मिलित हो जाता है और जीवात्मा के साथ अगले जन्म की तैयारी करता है। आत्मिक चेतना इसे अगले जन्म में सेवा के लिए प्रज्वलित करती है। कभी कभी मौलिक तत्व अपनी वृत्ति (polarity) बदल लेता - ऐसा तब होता है जब जीवात्मा यह विचार कर रही होती है कि वह स्त्री शरीर धारण करे या पुरुष।  


The body elemental gains immortality only when the soul earns his [[ascension]]. Having no further need for a physical body, the soul no longer requires the services of the body elemental, who likewise is freed from the rounds of [[reembodiment]] and the burdens of human density. Having attained through service, the body elemental may be retained by the ascended master as an immortal aid. Ascended [[twin flame]]s, each possessing such a friend, make a spiritual foursome. The immortal bond between the Master and his aid is one without parallel in the human scene except, perhaps, in the loyalty of a Damon and Pythias.  
जब जीवात्मा का [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] हो जाता है तब शरीर का मौलिक तत्व अमरत्व प्राप्त कर लेता है। जीवात्मा को जब भौतिक शरीर की आवश्यकता नहीं रहती, तब उसे मौलिक तत्व के सेवा की भी ज़रुरत नहीं होती।  इस तरह शरीर का मौलिक तत्व भी [[Special:MyLanguage/reembodiment|पुनर्जन्म]] के चक्कर से बच जाता है। चूँकि यह सेवा के माध्यम से मिला होता है, दिव्यगुरु इसे अपने साथ सहायता के लिए रख सकते हैं। जो [[Special:MyLanguage/twin flame|समरूप जोड़ियां]] आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो जाती हैं, अपने मौलिक तत्व के साथ वे एक आध्यात्मिक चौकड़ी बनाती हैं। डेमन और पिथियस के अलावा, ऐसा अमर बंधन  सिर्फ दिव्यगुरु और उसके मौलिक तत्व में ही देखा गया है।  


== Laying aside the body ==
<span id="Laying_aside_the_body"></span>
== शरीर का त्याग करना ==


Even the highest yogis have had moments of great burden and sorrow in leaving their body in their final [[samadhi]], when the soul passes on and does not return. This is called the [[mahasamadhi]]. Almost everyone (with the exception of those who suffer severe psychological detachment from self and body) forms an emotional attachment to the body. After all, this is the body we have worn and worked through, the body that has provided the temple for our soul and the means by which we experience pleasure and pain on this plane, balance our karma and do good deeds.
बड़े से बड़े योगियों के जीवन में भी भीषण कष्ट के क्षण आते हैं, तथा वे भी [[Special:MyLanguage/samadhi|समाधी]] लेते वक्त शरीर का त्याग करने में अथाह दुःख महसूस करते हैं - इस समय जीवात्मा कभी वापिस न आने के लिए ऊपर निकल जाती है। इसे ही [[Special:MyLanguage/mahasamadhi|महासमाधि]] कहा जाता है। गंभीर मनोवैज्ञानिक अलगाव से पीड़ित लोगों के अलावा लगभग हर इंसान अपने शरीर के प्रति भावनात्मक लगाव रखता है। और क्यों ना हो? आखिर यह शरीर ही तो है जो हमने पहना हुआ है और जिसकी सहायता से हम अच्छे कार्य कर सकते हैं, दुःख और सुख का अनुभव कर सकते हैं, और अपने कर्मों को संतुलित कर सकते हैं। यह शरीर हो तो वह मंदिर है जहाँ जीवात्मा रहती है।


So we say, “Blest be the tie that binds us to earth when we need to be earthbound to fulfill our reason for being and blest be the liberating power of [[Shiva]]! when it’s time ‘to shuffle off this mortal coil.’” Emotions connected with our attachment to the body are natural, and you should be aware that your body elemental has a consciousness and its consciousness permeates the physical body.  
इसीलिए हम कहते हैं, "धन्य है  वह बंधन जो हमें पृथ्वी से तब बांधता है जब हमें स्वयं को सिद्ध करने के लिए पृथ्वी पर जाने की आवश्यकता होती है, और धन्य है [[Special:MyLanguage/Shiva|शिव]] की वह मुक्ति-प्रदायिनी शक्ति जो इस नश्वर बंधन से छुटकारा पाने के समय हमें मिलती है।"  शरीर के प्रति लगाव स्वाभाविक हैं, पर आपको पता होना चाहिए कि आपके शरीर के मौलिक तत्व में एक चेतना है और यही चेतना भौतिक शरीर में भी व्याप्त होती है।  


Don’t mistake your body elemental’s fears for your own. Your body elemental is also attached to the body, because that’s his job. He takes care of the body. No more body, no more job! So he’s wondering where he’s going and what he’s going to do when you lay that body aside in your final embodiment. You have to comfort your body elemental as you would a little child and promise him that you are taking him with you to the next octave because he has been a very faithful servant. Tell him he can still be your aide-de-camp after you’ve ascended and he’ll have plenty of assignments.
अपने शरीर के मौलिक तत्व के भय को अपना डर मत मानिये। यह आपके शरीर से जुड़ा हुआ है, उसका कार्य शरीर की देखभाल करना है। शरीर नहीं होगा तो उसका काम भी नहीं होगा। इसलिए आध्यात्मिक उत्थान के वक्त जब जीवात्मा शरीर का त्याग करती है, शरीर का मौलिक तत्व घबराया हुआ होता है, वह समझ नहीं पाता की अब उसे क्या करना है। ऐसे समय में आपको अपने शरीर के मौलिक तत्व को दिलासा देना है - ठीक उसी तरह जिस तरह आप एक छोटे बच्चे को सांत्वना देते हैं, और उस से ये विश्वास दिलाना होता है कि चूँकि वह एक अच्छा सहायक रहा है, आप उसे अपने साथ अगले स्तर पर ले जाएंगे। उसको यह बताइये की अगले स्तर पर भी वह आपका साथी हो सकता है, वहां भी उसके करने के लिए अनेक काम होंगे।


== See also ==  
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== इसे भी देखिये ==  


[[Elementals]]
[[Special:MyLanguage/Elementals|मौलिक तत्त्व]]


== For more information ==
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== अधिक जानकारी के लिए ==


{{CHM}}, pp. 380–87.
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== Sources ==
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== स्रोत ==


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{{CHM}}, chapter 7.
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Latest revision as of 11:15, 9 November 2023

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प्रकृति का तत्व (साधारणतया ये भौतिक स्तर अदृश्य हालत में रहते हुए कार्य करते हैं, इसलिए अक्सर इन पर ध्यान नहीं जाता) जो जीवात्मा की उसके पदार्थ रूप में पर प्रथम बार जन्म लेने के समय से भौतिक शरीर की सेवा में लगा रहता है।

इसकी ऊंचाई लगभग तीन फुट की होती है तथा रूप उस व्यक्ति से मिलता-जुलता है जिसकी यह सेवा करता है। यह व्यक्ति के अभिभावक देवदूत के साथ आत्मा के तहत, मनुष्य का अदृश्य मित्र एवं सहायक है।

मनुष्य का यह निष्ठावान सहायक अनेकानेक अवतारों में उसका स्थायी सहयोगी रहता है।

शिशु के जन्म में शारीरिक तत्व की भूमिका

आत्मा एवं मनुष्य में उपस्थित ईश्वर के अंश के निर्देशन पर कार्य करता हुआ, शरीर का मौलिक तत्व इलेक्ट्रॉनिक पैटर्न और जीवनधारा की सूक्ष्म रूपरेखा को भौतिक रूप में अभिव्यक्ति करता है।कर्म के स्वामी द्वारा पुनर्जन्म की घोषणा के समय से लेकर गर्भधारण तक, आनेवाली जीवात्मा के शरीर का मौलिक तत्व, पिता एवं माता के मौलिक शारीरिक तत्वों के साथ मिलकर त्रिमूर्ति का निर्माण करता है। ईश्वर की आज्ञानुसार किया गया यह कार्य माता के गर्भ में पल रहे जीव के प्रत्येक अणु में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की ऊर्जा का संचार करता है। अगर पिताजी पास नहीं होते तो उनकी आत्मा बच्चे के विकास में सहायता के लिए प्रकाश किरणों को मां की ओर भेजती है।</ref>

शिशु के जन्म (जिस क्षण शिशु की गर्भनाल काटी जाती है तथा महाचौहान उसकी त्रिदेव ज्योत को जलाते है) से लेकर उसकी मृत्यु तक (जिस क्षण त्रिदेव ज्योत बुझ जाती जाती है), मौलिक शारीरक तत्व भौतिक स्तर पर हर पल जीवात्मा के सेवा में लीन रहता है। इस पूरे समय के दौरान देवदूत जीव की मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करते है।

शरीर के मौलिक तत्व का कार्य

शरीर का मौलिक तत्व सदा व्यक्ति की मनोदशा और स्वभाव का अनुकरण करता है। मनुष्य जो कहेगा उसका मौलिक तत्त्व उसी की नक़ल करेगा - मैं स्वस्थ हूँ, मैं बीमार हूँ , मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ या फिर मैं बुरा महसूस कर रहा हूँ - यूँ समझिये की मौलिक शारीरिक तत्व एक जिन्न है जो व्यक्ति की आज्ञा का पालन करता है, वह मनुष्य के कर्म के अलावा कुछ नहीं कर सकता।

बच्चों को अक्सर शरीर का मौलिक तत्त्व दिखाई देता है और वे उस से खेलते-बतियाते हैं, परन्तु व्यस्क लोग अक्सर इस बात को समझ नहीं पाते और इसे बच्चे की कल्पना की उपज मानते हैं। शरीर का मौलिक तत्व व्यक्ति की चेतना के अनुसार वस्त्र पहनता है; यह अदृश्य सहायक वही वेश लेता है जो या तो व्यक्ति के वर्तमान जीवन का मुख्य गुण है या फिर पिछले जन्मों का कोई प्रमुख गुण।

चाहे मनुष्य शरीर के मौलिक तत्व की उपस्थिति को जाने या न जाने; माने या न माने, मौलिक तत्व सदैव मनुष्य की सेवा में लगा रहता है, वह मनुष्य की इच्छानुसार कार्य करता रहता है। मनुष्य के विचार और भावनाएं तरंगों के रूप में उसके मौलिक तत्व तक पहुंचती रहती हैं, तथा मौलिक तत्व उन सभी भावनाओं और विचारों को मनुष्य के भौतिक शरीर के प्रत्येक अणु प्रदर्शित करता रहता है। मनुष्य अपने नकारात्मक विचारों से अपने मौलिक तत्व को नकारात्मक बना देता और यही नकारात्मकता शरीर में बीमारी के रूप में प्रकट होती है। अतः हम ये कह सकते हैं कि मनुष्य के प्रत्यक्ष रूप में बीमार होने से पहले उसके शरीर का मौलिक तत्व बीमार होता है। जहाँ भय और संशय शरीर के मौलिक तत्व को पूरी तरह से पंगु बना देते हैं वहीँ जीवन के प्रति सकारात्मक विचार उसे मुक्त कर मनुष्य को अच्छा स्वास्थय प्रदान करते हैं।

जिस प्रकार हवा के मौलिक तत्व सिल्फ्स (slyphs), अग्नि के मौलिक तत्व सैलामैंडर (Salamanders), पृथ्वी के मौलिक तत्व नोम्स (Gnomes) और जल के मौलिक तत्व अनडाइंस (Undines) इस ग्रह के प्रदूषण से संक्रमित हो जाते हैं उसी प्रकार मानवता की सामूहिक चेतना से इंसान के शरीर के मौलिक तत्व कमज़ोर हो जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति नकारात्मकता में जीता है तो उसके शरीर का मौलिक तत्व इस नकारात्मकता से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता। अतः अस्वस्थ शरीर व्यक्ति के दूषित आभामंडल तथा ईश्वर से उसकी दूरी की ओर इशारा करता है। अपनी आत्मिक चेतना से हमें सभी प्रकार की नकारात्मकता को स्वयं से दूर करना पड़ता है ताकि शरीर के मौलिक तत्व स्वतंत्रता से अपना काम कर पाएं। रोकथाम ही सबसे अच्छा और सबसे सुरक्षित इलाज है इसलिए मनुष्य को चाहिए की वह प्रतिदिन अपनी आत्मिक चेतना का आह्वाहन करे ताकि उसके शरीर का मौलिक तत्व बाह्य अतिक्रमण से सुरक्षित रहे।

इंसान को स्वस्थ रखने के लिये मौलिक तत्व उसके ह्रदय में स्थित त्रिदेव ज्योत और शरीर के सातों चक्रों से प्रवहित होते हुए प्रकाश का इस्तेमाल करता है। ये चक्र ह्रदय की ऊर्जा को चारों निचले शरीरों में वितरित करते हैं, परन्तु अगर ये चक्र सूक्ष्म स्तर के प्रदुषण से प्रभावित होते हैं तो मौलिक तत्व भौतिक स्तर पर अपना काम करने में बाधित होता है। इंसान जितना अधिक प्रकाश अपने शारीरिक प्रभावक्षेत्र में संचारित करता है, मौलिक तत्व उतना ही प्रकाश उसकी सेवा में अर्पित करता है।

आप अपने शरीर के मौलिक तत्त्व के अधिकारी हैं। अगर आप उसे सकारात्मक विचार देंगे, आप बेहद प्रसन्न, स्वस्थ और पवित्र रहेंगे। साथ ही यह भी ज़रूरी है की आप नियमित व्यायाम तथा सात्विक भोजन करें और आध्यात्मिक उन्नति के लिए ज्ञान अर्जन करें क्योंकि ऐसा न करने पर शरीर का मौलिक तत्व चाह कर भी अच्छा कार्य नहीं कर सकता।

शरीर का मौलिक तत्व अनश्वर है

अन्य मौलिक तत्वों की अपेक्षा शरीर का मौलिक तत्त्व अनश्वर है। हालांकि इसका निर्माण भौतिक शरीर के साथ होता है, परन्तु पदार्थ के स्तर पर अनुभव प्राप्त करते हुए यह विकसित हो रही आत्मिक चेतना का हिस्सा बन जाता है। विभिन्न जन्मों के अंतराल में , यह अपने सूक्ष्म तत्व में सम्मिलित हो जाता है और जीवात्मा के साथ अगले जन्म की तैयारी करता है। आत्मिक चेतना इसे अगले जन्म में सेवा के लिए प्रज्वलित करती है। कभी कभी मौलिक तत्व अपनी वृत्ति (polarity) बदल लेता - ऐसा तब होता है जब जीवात्मा यह विचार कर रही होती है कि वह स्त्री शरीर धारण करे या पुरुष।

जब जीवात्मा का आध्यात्मिक उत्थान हो जाता है तब शरीर का मौलिक तत्व अमरत्व प्राप्त कर लेता है। जीवात्मा को जब भौतिक शरीर की आवश्यकता नहीं रहती, तब उसे मौलिक तत्व के सेवा की भी ज़रुरत नहीं होती। इस तरह शरीर का मौलिक तत्व भी पुनर्जन्म के चक्कर से बच जाता है। चूँकि यह सेवा के माध्यम से मिला होता है, दिव्यगुरु इसे अपने साथ सहायता के लिए रख सकते हैं। जो समरूप जोड़ियां आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो जाती हैं, अपने मौलिक तत्व के साथ वे एक आध्यात्मिक चौकड़ी बनाती हैं। डेमन और पिथियस के अलावा, ऐसा अमर बंधन सिर्फ दिव्यगुरु और उसके मौलिक तत्व में ही देखा गया है।

शरीर का त्याग करना

बड़े से बड़े योगियों के जीवन में भी भीषण कष्ट के क्षण आते हैं, तथा वे भी समाधी लेते वक्त शरीर का त्याग करने में अथाह दुःख महसूस करते हैं - इस समय जीवात्मा कभी वापिस न आने के लिए ऊपर निकल जाती है। इसे ही महासमाधि कहा जाता है। गंभीर मनोवैज्ञानिक अलगाव से पीड़ित लोगों के अलावा लगभग हर इंसान अपने शरीर के प्रति भावनात्मक लगाव रखता है। और क्यों ना हो? आखिर यह शरीर ही तो है जो हमने पहना हुआ है और जिसकी सहायता से हम अच्छे कार्य कर सकते हैं, दुःख और सुख का अनुभव कर सकते हैं, और अपने कर्मों को संतुलित कर सकते हैं। यह शरीर हो तो वह मंदिर है जहाँ जीवात्मा रहती है।

इसीलिए हम कहते हैं, "धन्य है वह बंधन जो हमें पृथ्वी से तब बांधता है जब हमें स्वयं को सिद्ध करने के लिए पृथ्वी पर जाने की आवश्यकता होती है, और धन्य है शिव की वह मुक्ति-प्रदायिनी शक्ति जो इस नश्वर बंधन से छुटकारा पाने के समय हमें मिलती है।" शरीर के प्रति लगाव स्वाभाविक हैं, पर आपको पता होना चाहिए कि आपके शरीर के मौलिक तत्व में एक चेतना है और यही चेतना भौतिक शरीर में भी व्याप्त होती है।

अपने शरीर के मौलिक तत्व के भय को अपना डर मत मानिये। यह आपके शरीर से जुड़ा हुआ है, उसका कार्य शरीर की देखभाल करना है। शरीर नहीं होगा तो उसका काम भी नहीं होगा। इसलिए आध्यात्मिक उत्थान के वक्त जब जीवात्मा शरीर का त्याग करती है, शरीर का मौलिक तत्व घबराया हुआ होता है, वह समझ नहीं पाता की अब उसे क्या करना है। ऐसे समय में आपको अपने शरीर के मौलिक तत्व को दिलासा देना है - ठीक उसी तरह जिस तरह आप एक छोटे बच्चे को सांत्वना देते हैं, और उस से ये विश्वास दिलाना होता है कि चूँकि वह एक अच्छा सहायक रहा है, आप उसे अपने साथ अगले स्तर पर ले जाएंगे। उसको यह बताइये की अगले स्तर पर भी वह आपका साथी हो सकता है, वहां भी उसके करने के लिए अनेक काम होंगे।

इसे भी देखिये

मौलिक तत्त्व

अधिक जानकारी के लिए

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of the Higher Self, volume 1 of the Climb the Highest Mountain® series, pp. 380–87.

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of the Higher Self, volume 1 of the Climb the Highest Mountain® series, chapter 7.

Pearls of Wisdom, vol. 35, no. 30, २६ जुलाई १९९२.