Carnal mind/hi: Difference between revisions
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मानसिक शरीर की रचना आत्मा के माध्यम से ईश्वर के मन का प्याला बनने के लिए की गई थी। जब व्यर्थ का सांसारिक ज्ञान मानसिक शरीर में भर जाता है, तो ईश्वर विरोधी दिमाग आत्मा को विस्थापित कर देता है और जब तक कि इसे प्रोत्साहित न किया जाए तब तक यह विरोधी दिमाग का वाहन बना रहता है। ऐसे में यह निम्न मानसिक शरीर, निचला, सीमित, आत्म-सीमित नश्वर बुद्धि कहलाता है। यह ‘उच्च’ बुद्धि या आत्मिक बुद्धि के विपरीत है। | मानसिक शरीर की रचना आत्मा के माध्यम से ईश्वर के मन का प्याला बनने के लिए की गई थी। जब व्यर्थ का सांसारिक ज्ञान मानसिक शरीर में भर जाता है, तो ईश्वर विरोधी दिमाग आत्मा को विस्थापित कर देता है और जब तक कि इसे प्रोत्साहित न किया जाए तब तक यह विरोधी दिमाग का वाहन बना रहता है। ऐसे में यह निम्न मानसिक शरीर, निचला, सीमित, आत्म-सीमित नश्वर बुद्धि कहलाता है। यह ‘उच्च’ बुद्धि या आत्मिक बुद्धि के विपरीत है। | ||
जब अध्यात्मिक चेतना का पूर्ण विकास होता है, तो निचला मानसिक शरीर जीवन-दायिनी चमक देने वाला क्रिस्टल का प्याला बन सकता है। जब तक जीवात्मा आत्मा से संपर्क नहीं बनाती ("यह बुद्धि तुम्हारे अंदर वैसे ही रहे जैसे ईसा मसीह में थी,"<ref>Phil. 2:5.</ref>), उसके पास न तो ईश्वर तक पहुँचने के लिए पर्याप्त प्रकाश होता हैं, न ही वह ब्रह्मांडीय चेतना पा सकता है और न ही वह गौतम बुद्ध जो विश्व के स्वामी हैं उनकी शिष्यता के मार्ग पर चल सकता | जब अध्यात्मिक चेतना का पूर्ण विकास होता है, तो निचला मानसिक शरीर जीवन-दायिनी चमक देने वाला क्रिस्टल का प्याला बन सकता है। जब तक जीवात्मा आत्मा से संपर्क नहीं बनाती ("यह बुद्धि तुम्हारे अंदर वैसे ही रहे जैसे ईसा मसीह में थी,"<ref>Phil. 2:5.</ref>), उसके पास न तो ईश्वर तक पहुँचने के लिए पर्याप्त प्रकाश होता हैं, न ही वह ब्रह्मांडीय चेतना पा सकता है और न ही वह गौतम बुद्ध जो विश्व के स्वामी हैं उनकी शिष्यता के मार्ग पर चल सकता है। | ||
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Latest revision as of 10:18, 28 December 2023
ईश्वर विरोधी दिमाग मानव अहंकार (human ego), मानव इच्छा, मानव बुद्धि और अध्यात्मिक ज्ञान से विहीन होता है। इसे मनुष्य का पशु स्वभाव और मशीनी मानव (mechanization man) भी कहते हैं। इसे मास्टर आर (Master R) ने दहलीज़ पर रहने वाला हमारा नकरात्मक रूप (dweller-on-the-threshold) भी कहा है। ईसा मसीह के शिष्य पॉल (Apostle Paul) के अनुसार "विरोधी दिमाग ईश्वर का शत्रु है क्योंकि ना तो यह ईश्वर के कानून को मानता है और ना ही कभी मान सकता है"।[1]
मानसिक शरीर की रचना आत्मा के माध्यम से ईश्वर के मन का प्याला बनने के लिए की गई थी। जब व्यर्थ का सांसारिक ज्ञान मानसिक शरीर में भर जाता है, तो ईश्वर विरोधी दिमाग आत्मा को विस्थापित कर देता है और जब तक कि इसे प्रोत्साहित न किया जाए तब तक यह विरोधी दिमाग का वाहन बना रहता है। ऐसे में यह निम्न मानसिक शरीर, निचला, सीमित, आत्म-सीमित नश्वर बुद्धि कहलाता है। यह ‘उच्च’ बुद्धि या आत्मिक बुद्धि के विपरीत है।
जब अध्यात्मिक चेतना का पूर्ण विकास होता है, तो निचला मानसिक शरीर जीवन-दायिनी चमक देने वाला क्रिस्टल का प्याला बन सकता है। जब तक जीवात्मा आत्मा से संपर्क नहीं बनाती ("यह बुद्धि तुम्हारे अंदर वैसे ही रहे जैसे ईसा मसीह में थी,"[2]), उसके पास न तो ईश्वर तक पहुँचने के लिए पर्याप्त प्रकाश होता हैं, न ही वह ब्रह्मांडीय चेतना पा सकता है और न ही वह गौतम बुद्ध जो विश्व के स्वामी हैं उनकी शिष्यता के मार्ग पर चल सकता है।
इसे भी देखिये
दहलीज़ पर रहने वाला हमारा नकरात्मक रूप
अधिक जानकारी के लिए
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Enemy Within
द्वाल कूल (Djwal Kul) द्वारा दी गई शिक्षा जानने के लिए देखें "द चैलेंज ऑफ़ कार्नल माइंड" (The Challenge of the Carnal Mind) Kuthumi and Djwal Kul, The Human Aura: How to Activate and Energize Your Aura and Chakras.
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
गौतम बुद्ध, Pearls of Wisdom, vol. २६, no. १८, १ मई १९८३.