ईश्वर विरोधी दिमाग (Carnal mind)

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मानव अहंकार, मानव इच्छा, और मानव बुद्धि; आत्मा के ज्ञान से विहीन स्वयं के प्रति जागरूकता; मनुष्य का पशु स्वभाव जिसे मशीनी मानव कहते हैं, और मास्टर आर द्वारा दिया गया मशीनीकरण का सिद्धांत जिसे गूढ़ पुराण में दहलीज़ पर रहने वाला दुष्ट कहते हैं। धर्मदूत पॉल के अनुसार "शारीरिक बुद्धि ईश्वर की शत्रु है क्योंकि ना तो यह ईश्वर के कानून को मानती है और ना ही कभी मान सकती है"।[1]

मानसिक शरीर की रचना आत्मा के माध्यम से ईश्वर के मन का प्याला बनने के लिए की गई थी। जब व्यर्थ का सांसारिक ज्ञान मानसिक शरीर में भर जाता है, तो शारीरिक बुद्धि आत्मा को विस्थापित कर देती है। जब तक कि इसे प्रोत्साहित न किया जाए तब तक यह शारीरिक बुद्धि का वाहन बना रहता है और ऐसे में यह निम्न मानसिक शरीर कहलाता है - निचला, सीमित, आत्म-सीमित नश्वर बुद्धि। यह ‘उच्च’ बुद्धि या आत्मिक बुद्धि के विपरीत है।

जब आत्मिक चेतना का पूर्ण विकास होता है, तो निचला मानसिक शरीर जीवन-दायिनी चमक देने वाला क्रिस्टल का प्याला बन सकता है। जब तक जीवात्मा आत्मा से संपर्क नहीं बनाती ("यह बुद्धि तुम्हारे अंदर वैसे ही रहे जैसे ईसा मसीह में थी,"[2]), उसके पास न तो ईश्वर के दिल और दिमाग तक पहुँचने के लिखे प्रकाश-पंख होते हैं, न ही वह ब्रह्मांडीय चेतना या बुद्ध जो विश्व के भगवान हैं, के अधीन शिष्यता के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।

इसे भी देखिये

मानव अहंकार

दहलीज़ पर रहने वाला दुष्ट

मशीनी मानव

अधिक जानकारी के लिए

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Enemy Within

For Djwal Kul’s teaching on “The Challenge of the Carnal Mind,” see Kuthumi and Djwal Kul, The Human Aura: How to Activate and Energize Your Aura and Chakras.

Sources

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

Gautama Buddha, Pearls of Wisdom, vol. 26, no. 18, May 1, 1983.

  1. Rom. 8:7.
  2. Phil. 2:5.