Maha Chohan/hi: Difference between revisions

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'''महा चौहान''' [[Special:MyLanguage/Holy Spirit|पवित्र आत्मा]] के एक प्रतिनिधि हैं। जो इस पद को धारण करता है वह इस गृह की सभी जीवन प्रणालियों तथा [[Special:MyLanguage/Elementals|सृष्टि देव साम्राज्य]] के लिए [[Special:MyLanguage/Father-Mother God|पिता-माता भगवान]] और [[Special:MyLanguage/Alpha and Omega|अल्फा और ओमेगा]] की पवित्र आत्मा को दर्शाता है। महा चौहान का आश्रय स्थल का नाम [[Special:MyLanguage/Temple of Comfort|टेम्पल ऑफ़ कम्फर्ट ]] है तथा यह श्रीलंका के आकाशीय स्तर पर है - यह स्थान पवित्र आत्मा की लौ तथा कम्फर्ट की लौ आश्रय स्थल भी है।  
'''महा चौहान''' पृथ्वी लोक पर [[Special:MyLanguage/Holy Spirit|ईश्वरीय ऊर्जा]] के प्रतिनिधि हैं। जो इस पद को धारण करता है, वह इस गृह की सभी जीवन प्रणालियों तथा [[Special:MyLanguage/Elementals|सृष्टि देव साम्राज्य]] (Elementals kingdom) के लिए [[Special:MyLanguage/Father-Mother God|पिता-माता भगवान]] (Father-Mother God|पिता-माता भगवान) और [[Special:MyLanguage/Alpha and Omega|अल्फा और ओमेगा]] (Alpha and Omega) के ईश्वरीय प्रकाश को दर्शाता है। महा चौहान के आश्रय स्थल का नाम [[Special:MyLanguage/Temple of Comfort|सुख का मंदिर]] (Temple of Comfort) है, यह श्रीलंका के आकाशीय स्तर पर है - यह स्थान ईश्वरीय ऊर्जा तथा सुख की लौ का  आश्रय स्थल भी है।  


इनकी समरूप जोड़ी सत्य की देवी [[Special:MyLanguage/Pallas Athena|पलास एथेना]] है।
इनकी समरूप जोड़ी, सत्य की देवी का नाम [[Special:MyLanguage/Pallas Athena|पालस अथीना]] है।


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== "महान नायक" का कार्यालय ==
== "महान स्वामी" का कार्यालय (The office of Great Lord) ==


''महा चौहान'' का अर्थ है "महान नायक," और महा चौहान सातों [[Special:MyLanguage/chohans|चौहानों]] के सरदार हैं (सात चौहान सात किरणों के निदेशक हैं)। [[Special:MyLanguage/hierarchy|पदानुक्रम]] के इस पद को प्राप्त करने के लिए एक ज़रूरी योग्यता है उस व्यक्ति का सातों किरणों में से प्रत्येक किरण पर [[Special:MyLanguage/adeptship|निपुणता]] हासिल करना। ये सातों किरणें ही पवित्र आत्मा की श्वेत लौ में विलीन होती हैं। सातों चौहानों के साथ मिलकर, महा चौहान हम जीवात्माओं को पवित्र आत्मा की नौ प्रतिभाएं - जिनका ज़िक्र प्रथम कोरिंथियन १२:४-११ में किया गया है - ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं।
''महा चौहान'' का अर्थ है "महा चौहान," और महा चौहान सातों [[Special:MyLanguage/chohans|चौहानों]] (chohans) के सरदार हैं (सात चौहान सात किरणों के निदेशक हैं)। [[Special:MyLanguage/hierarchy|पदानुक्रम]] (hierarchy) के इस पद को प्राप्त करने के लिए एक ज़रूरी योग्यता है उस व्यक्ति का सातों किरणों में से प्रत्येक किरण पर [[Special:MyLanguage/adeptship|निपुणता]] (adeptship) हासिल करना। ये सातों किरणें ही पवित्र आत्मा की श्वेत लौ में विलीन होती हैं। सातों चौहानों के साथ मिलकर, महा चौहान हम जीवात्माओं को ईश्वरीय ऊर्जा की नौ प्रतिभाएं - जिनके बारे में प्रथम कोरिंथियन (Corinthians) १२:४-११ में बताया गया है - ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं।


पहली तीन [[Special:MyLanguage/root race|मूल जातियों]] - जिनमें से प्रत्येक ने स्वयं को आवंटित की गयी १४,०००  साल के चक्र में अपनी दिव्य योजना पूरी की थी - के पास पवित्र आत्मा के अपने प्रतिनिधि थे जो अपने सभी सदस्यों के साथ ब्रह्मांडीय सेवा करने में निपुण हो पृथ्वी से ऊपर उठ ब्रह्माण्ड में चले गए।
पहली तीन [[Special:MyLanguage/root race|मूल जातियों]] (root race) - जिनमें से प्रत्येक ने स्वयं को निर्धारित की गयी १४,०००  साल के चक्र में अपनी दिव्य योजना पूरी की थी - के पास पवित्र आत्मा के अपने प्रतिनिधि थे जिन्होंने अपनी-अपनी मूल जातियों के साथ ब्रह्मांडीय सेवा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।


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== अवतार ==
== अवतार (Embodiments) ==


[[File:614px-William-Adolphe Bouguereau (1825-1905) - Homer and his Guide (1874).jpg|thumb|alt=caption|''होमर और उनके मार्गदर्शक'', विलियम-अडोल्फ बौगुएरेउ (१८७४)]]
[[File:614px-William-Adolphe Bouguereau (1825-1905) - Homer and his Guide (1874).jpg|thumb|alt=caption|''होमर और उनके मार्गदर्शक'', विलियम-अडोल्फ बौगुएरेउ (१८७४)  
[Homer and his Guide, William-Adolphe Bouguereau (1874)]]]


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=== होमर ===
=== होमर (Homer) ===


महा चौहान के कार्यालय को जो इस वक्त संभाल रहे हैं, उन्होंने होमर के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। ये एक नेत्रहीन कवि थे। इनकी दो महान रचनाओं -  इलियड और ओडिसी - में इनकी समरूप जोड़ी पलास एथेना एक मुख्य किरदार हैं। इलियड में ट्रोजन युद्ध के अंतिम वर्ष की कहानी कही गयी है, और ओडिसी ट्रोजन युद्ध के नायकों में से एक ओडीसियस की घर वापसी पर केंद्रित है।
महा चौहान के कार्यालय को जो इस वक्त संभाल रहे हैं, उन्होंने होमर के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। ये एक नेत्रहीन कवि थे। इनकी दो महान रचनाओं -  इलियड और ओडिसी (the Iliad and the Odyssey)- में इनकी समरूप जोड़ी पालस अथीना एक मुख्य किरदार हैं। इलियड (Iliad) में ट्रोजन (Trojan) युद्ध के अंतिम वर्ष की कहानी कही गयी है, और ओडिसी ट्रोजन (Odyssey focuses) युद्ध के नायकों में से एक ओडीसियस (Odysseus) की घर वापसी पर केंद्रित है।


ऐतिहासिक रूप से होमर के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि उन्होंने अपनी कविताओं की रचना (ईसा पूर्व) आठवीं या नौवीं शताब्दी में की थी। उस समय भी होमर ने अपनी चेतना को कम्फर्ट लौ के साथ मिलाया था और अपनी हृदय की लौ से जो विभा उन्होंने बरकरार रखी वह सृष्टि देव साम्राज्य के लिए एक बहुत बड़ा आशीर्वाद था।  
ऐतिहासिक रूप से होमर के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि उन्होंने अपनी कविताओं की रचना (ईसा पूर्व) आठवीं या नौवीं शताब्दी में की थी। उस समय भी होमर ने अपनी चेतना को ईश्वरीय सुख  (comfort flame) के साथ मिलाया था और अपनी हृदय की लौ से जो तेज (radiance) उन्होंने बनाए रखा वह सृष्टि देव साम्राज्य के लिए एक बहुत बड़ा आशीर्वाद था।  


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=== चरवाहा, भारत ===
=== चरवाहा, भारत (Shepherd in India) ===


पृथ्वी पर उनका अंतिम जन्म भारत में हुआ, और इस जन्म में वे एक चरवाहे थे। चुपचाप काम करते हुए इस जन्म में जो प्रकाश उन्होंने फैलाया उससे लाखों जीवनधाराओं की लौ कायम रही। उन्होंने अपने चारों निचले शरीरों को पवित्र आत्मा की लौ में समर्पित किया और अपनी चेतना द्वारा [[Special:MyLanguage/Sanat Kumara|सनत कुमार]] की चेतना को विश्व में फैलाया।
पृथ्वी पर उनका अंतिम जन्म भारत में हुआ, और इस जन्म में वे एक चरवाहे थे। चुपचाप काम करते हुए इस जन्म में जो प्रकाश उन्होंने फैलाया उससे लाखों जीवनधाराओं की ईश्वरीय लौ कायम रही। उन्होंने अपने चारों निचले शरीरों को पवित्र आत्मा की लौ में समर्पित किया और अपनी चेतना द्वारा [[Special:MyLanguage/Sanat Kumara|सनत कुमार]] (Sanat Kumara) की चेतना को विश्व में फैलाया।


उस जन्म के बारे में बात करते हुए महा चौहान कहते हैं
उस जन्म के बारे में बात करते हुए महा चौहान कहते हैं:


<blockquote>मैं कई जन्मों चरवाहा था, तब मैं पहाड़ियों पर भेड़ों की देखभाल करता था और साथ ही भगवान से ज्ञान की प्रार्थना भी करता था ताकि उस ज्ञान को मैं अन्य लोगों को बता सकूं जो मेरे आस पास थे, जिनकी ज़िम्मेदारी ईश्वर ने मुझे दी थी। और इन सब के बीच देवदूत कई बार मुझे आकाशीय स्तर पर स्थित आत्मा की अकादमियों में ले गए जहाँ पर महा चौहान के सरंक्षण में मैंने बहुत कुछ सीखा और स्वयं को पवित्र आत्मा का आवरण पहनने के योग्य बनाया।<ref>महा चौहान, "मैं पवित्र अग्नि की अदालत के समक्ष ईश्वर के सभी अनुयायियों के ज्ञानवर्धन की प्रार्थना करता हूँ।"{{POWref|३८|३३|, जुलाई ३०, १९९५}}</ref></blockquote>
<blockquote>मैं कई जन्मों में चरवाहा था, तब मैं पहाड़ियों पर भेड़ों की देखभाल करता था और साथ ही भगवान से ज्ञान की प्रार्थना भी करता था ताकि उस ज्ञान को मैं अन्य लोगों में बांट संँकू जो मेरे आस पास थे, जिनकी ज़िम्मेदारी ईश्वर ने मुझे दी थी। और इन सब के बीच देवदूत कई बार मुझे आकाशीय स्तर पर स्थित आत्मा की अकादमियों (academies) में ले गए जहाँ पर उस समय के महा चौहान के सरंक्षण में मैंने बहुत कुछ सीखा और स्वयं को पवित्र आत्मा का आवरण पहनने के योग्य बनाया। <ref>महा चौहान, "मैं पवित्र अग्नि की अदालत के समक्ष ईश्वर के सभी अनुयायियों के ज्ञानवर्धन की प्रार्थना करता हूँ।"{{POWref|३८|३३|, जुलाई ३०, १९९५}}</ref></blockquote>


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== पवित्र आत्मा ==
== ईश्वरीय ऊर्जा ==


ईश्वर प्रकृति और मनुष्य दोनों को ही जीवनदायनी ऊर्जा देते हैं इसलिए ईश्वर के प्रतिनिधि को इतना सक्षम होना चाहिए वह अपनी चेतना के माध्यम से इन सभी में प्रवेश कर पाए करने और उनकी जीवन बनाए रखने वाली लौ को भी प्रज्वल्लित कर पाए।
ईश्वर प्रकृति और मनुष्य दोनों को ही जीवनदायनी ऊर्जा देते हैं इसलिए ईश्वर के प्रतिनिधि को इतना सक्षम होना चाहिए वह अपनी चेतना के माध्यम से इन सभी में प्रवेश कर पाएं और उनकी जीवन बनाए रखने वाली लौ को भी प्रज्वल्लित कर सकें।


वह तत्व जो पवित्र आत्मा की लौ से मेल खाता है वह प्राणवायु (oxygen) है। इसके बगैर न तो मनुष्य और न ही सृष्टि देव साम्राज्य जीवित रह सकता है। इसलिए महा चौहान की चेतना की तुलना [[Special:MyLanguage/Great Central Sun Magnet|महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र]] से की जा सकती है। वे उस ग्रह पर चुंबक केंद्रित करते हैं जो सूर्य से निकलने वाली उन वस्तुओं को पृथ्वी की ओर खींचता है जो जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
वह तत्व जो ईश्वरीय ऊर्जा की लौ के अनुकूल होता है, वह प्राणवायु (oxygen) है। इसके बिना न तो मनुष्य और न ही सृष्टि देव साम्राज्य जीवित रह सकता है। इसलिए महा चौहान की चेतना की तुलना [[Special:MyLanguage/Great Central Sun Magnet|महान केंद्रीय सूर्य के चुंबक]] (Great Central Sun Magnet) से की जा सकती है। वह चुंबक को उस ग्रह पर केंद्रित करते हैं जो सूर्य से पृथ्वी की ओर उन विकिरणों (emanations) को आकर्षित करता है जो जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।


श्वेत-अग्नि के देवदूतों की टोलियां (जो श्रीलंका द्वीप में स्थित अल्फा और ओमेगा के आकाशीय आश्रय स्थल में शुद्ध श्वेत लौ की सेवा में सलंग्न हैं) इस कार्य में उनकी मदद करती हैं। ये देवदूत ग्रह के [[Special:MyLanguage/four lower bodies|चार निचले शरीरों]] में [[Special:MyLanguage/Prana|प्राणवायु ]] को बनाए रखने के लिए अल्फा और ओमेगा की शुद्ध श्वेत लौ से पवित्र अग्नि का दोहन करते हैं।  
श्वेत-अग्नि के देवदूतों के समूह (जो श्रीलंका द्वीप में स्थित अल्फा और ओमेगा (Alpha and Omega) के आकाशीय आश्रय स्थल में शुद्ध श्वेत लौ (white-fire) की सेवा में सलंग्न हैं) इस कार्य में उनकी मदद करते हैं। ये देवदूत उस लौ से पवित्र अग्नि का मूलतत्त्व ग्रहण करके पृथ्वी के [[Special:MyLanguage/four lower bodies|चार निचले शरीरों]] (four lower bodies) में [[Special:MyLanguage/Prana|प्राणवायु]] (Prana)  शक्ति को बनाए रखते हैं।  


गुलाबी-लौ के देवदूत भी महा चौहान के सेवा में तैनात रहते हैं। इनके पास के एक कमरे में क्रिस्टल के एक प्याले में सुनहरी बुनियाद पर एक गुलाबी-श्वेत रंग की लौ जलती है जिसमें से दिव्य प्रेम की एक शक्तिशाली चमक निकलती है। ये सारे देवदूत इस लौ से निकलने वाली लपटों को पृथ्वी के कोने कोने में उन सभी मनुष्यों के दिलों तक ले जाते हैं जो ईश्वर को पाने के लिए तरसते हैं।
गुलाबी-लौ (pink-flame) के देवदूत भी महा चौहान के सेवा में तैनात रहते हैं। साथ के लौ कक्ष में, क्रिस्टल फ़ाख़तों (Dove) से सजे क्रिस्टल (crystal) प्याले में एक सफेद लौ स्थिर है, जिसमें गुलाबी रंग की झलक है और आधार पर सोना है, जो दिव्य प्रेम की शक्तिशाली चमक बिखेरती है। ये देवदूत इन लपटों की किरणों को पृथ्वी के चारों कोनों तक, उन सभी के हृदयों तक पहुंचाते हैं जो ईश्वर पिता-माता से सांत्वना और पवित्रता की कामना करते हैं।


[[Special:MyLanguage/Pentecost|पेंटेकोस्ट]] के दिन जब शिष्यों के ह्रदय अत्यंत निर्मल और पावन हो गए थे, पवित्र आत्मा की जुड़वां लौ आग की लपलपाती हुई जिह्वा के रूप में प्रकट हुई।<ref>Acts२:३।</ref>जब ईसा मसीह का ईसाई धर्म का विधिवत सदस्‍य बनने का संस्‍कार () किया गया था तो उन्होंने ईश्वर को एक कबूतर के रूप में नीचे उतरते हुए एव अपने ऊपर प्रकाश डालते हुए देखा था।"<ref>Matt३:१६</ref> कबूतर पवित्र आत्मा की जुड़वां लौ का भौतिक स्वरुप है, जिसे पंखों के साथ एक वी के रूप में भी देखा जा सकता है। यह देवता के स्त्री और पुरुष ध्रुवों को दर्शाता है और यह भी याद दिलाता है कि जुड़वाँ लौ ईश्वर के उभयलिंगी स्वभाव को प्रदर्शित करती हैं।
[[Special:MyLanguage/Pentecost|पेंटेकोस्ट]] (Pentecost) के दिन जब ईसा मसीह के शिष्यों के ह्रदय अत्यंत निर्मल और पावन हो गए थे, ईश्वरीय ऊर्जा की जुड़वां लौ (twin flames) आग की लपलपाती हुई जिह्वा (cloven tongues of fire) के रूप में प्रकट हुई।<ref>Acts२:३।</ref>जब ईसा मसीह का ईसाई धर्म का विधिवत सदस्‍य बनने का संस्‍कार किया गया था तो उन्होंने ईश्वर की ऊर्जा को एक फ़ाख़ता (Dove) के रूप में नीचे उतरते हुए एव अपने ऊपर प्रकाश डालते हुए देखा था।"<ref>Matt३:१६</ref> फ़ाख़ता पवित्र आत्मा की जुड़वां लौ (twin flame) का भौतिक स्वरुप है, जिसे पंखों के साथ एक वी (V) के रूप में भी देखा जा सकता है। यह स्त्री और पुरुष के दिव्य ध्रुवों को दर्शाता है और यह भी याद दिलाता है कि जुड़वाँ लौ (twin flame) ईश्वर के उभयलिंगी (androgynous) स्वभाव को प्रदर्शित करती है।


महा चौहान के आश्रय स्थल में और उनकी उपस्थिति में व्यक्ति को पवित्र आत्मा की लौ का अनुभव होता है। यहां ईश्वर के पवित्र अग्निश्वास की धड़कन भी महसूस होती है जो [[Special:MyLanguage/Central Sun|केंद्रीय सूर्य]] से पृथ्वी के प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में जीवन के प्रवाह को लाती है।
महा चौहान के आश्रय स्थल (retreat) में और उनकी उपस्थिति में व्यक्ति को ईश्वरीय ऊर्जा की लौ का अनुभव होता है। यहां ईश्वर के पवित्र अग्निश्वास की धड़कन भी महसूस होती है जो [[Special:MyLanguage/Central Sun|केंद्रीय सूर्य]] (Central Sun) से पृथ्वी के प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में जीवन के प्रवाह को लाती है।


महा चौहान ने पवित्र आत्मा को एक महान एकीकृत समन्वयक के रूप में संदर्भित किया है, जो  
महा चौहान ने ईश्वरीय ऊर्जा को एक महान एकीकृत समन्वयक (great unifying coordinator) के रूप में संदर्भित किया है, जो  


<blockquote>
<blockquote>
...एक शक्तिशाली बुनकर की तरह दिव्यगुरु के प्रकाश और प्रेम का एक बेजोड़ वस्त्र बुनता है। जब मनुष्य अपना ध्यान ईश्वर पर केंद्रित करता है और उनके समक्ष अपनी आशाएं और इच्छाएं व्यक्त कर ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करता है तो ईश्वर की ओर से खुशनुमा और दीप्तिमान रोशनी की उज्ज्वल पवित्र किरणें पृथ्वी पर उतरती हैं तथा मनुष्यों के दिलों में प्रवेश कर लेती हैं।
...प्राचीन काल के एक महान बुनकर (weaver) की तरह वह दिव्यगुरु के प्रकाश और प्रेम का एक बेजोड़ वस्त्र बुनते हैं। ईश्वर की दृष्टि मनुष्य पर केंद्रित होकर प्रकाश की उज्ज्वल किरणों के द्वारा पवित्रता और सुख के जगमगाते अंशों को पृथ्वी की ओर और ईश्वर के बच्चों के हृदयों में प्रवाहित करती है, जबकि मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं, प्रार्थनाएं  और सहायता के लिए आह्वान और पुकारें, उन्हें ईश्वर के ब्रह्मांडीय पवित्रता के विशाल आश्रय में ले जाती हैं...


ईश्वर की पवित्र आत्मा प्रकाश के एक छोटे से बीज के रूप में पृथ्वी पर प्रत्येक पदार्थ में प्रवेश करती है और फिर रूप और अस्तित्व, विचार और धारणा की प्रत्येक कोशिका में फैल अध्यात्मविद्या और चेतना का भण्डार बन जाती है। बहुत से लोग यह जान नहीं पाते परन्तु कुछ एक ज़रूर पहचान जाते हैं। अनंत प्रसन्नता के द्योतक इस दिव्य ज्ञान का प्रकाश अनश्वर है। मनुष्य इस ज्ञान को शनैः शनैः अपनी चेतना में भरता है।<ref>द महा चौहान, “द डिसेंट ऑफ़ द होली स्पिरिट,” {{POWref|७|४८, २७ नवम्बर, १९६४}}</ref>  
ईश्वरीय ऊर्जा प्रकाश के एक छोटे से बीज के रूप में पृथ्वी के ह्रदय और प्रत्येक पदार्थ में प्रवेश करती है और फिर रूप और अस्तित्व, विचार और धारणा की प्रत्येक कोशिका में फैल कर अध्यात्मविद्या और चेतना का भण्डार बन जाती है। बहुत से लोग यह जान नहीं पाते परन्तु कुछ ज़रूर पहचान जाते हैं। उस दिव्य ज्ञान के प्रकाश को फैलाते हुए जो नश्वर धारणा से परे है और शाश्वतता की सुबह की ताजगी में है, यही प्रकाश हर क्षण को ईश्वर-आनंद से भर देता है—वह आनंद जिसे मनुष्य अपनी चेतना में उठने वाली अनगिनत अनुभूतियों के द्वारा पहचानता है।” <ref>द महा चौहान, “द डिसेंट ऑफ़ द होली स्पिरिट (The Descent of the Holy Spirit),” {{POWref|७|४८, २७ नवम्बर, १९६४}}</ref>  
</blockquote>
</blockquote>


१९७४ में महा चौहान ने कहा था:
१९७४ (1974) में महा चौहान ने कहा था:


कार्मिक समिति ने कहा है कि इस समय पृथ्वीजीवों के विकास में अब वह क्षण आ गया है जब ब्रह्मांडीय घंटा बज चूका है। इस समय समस्त मानव जाति को चाहिए कि वे अपने मनमंदिर को ईश्वर का निवास स्थान बनाने के लिए तैयार करें। बहुत ज़रूरी है कि कम से कम कुछ मनुष्य तो ईश्वर की आत्मा को ग्रहण करने के लिए पूर्णतया शुद्ध हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पृथ्वी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। क्योंकि जब तक ईश्वर की पवित्र ऊर्जा पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में नहीं उतरती पृथ्वी पर जीवन का संतुलन नहीं हो सकता। रात के बारह बजे, जब वर्ष १९७५ प्रारम्भ होगा, ठीक उस समय ईश्वर पृथ्वी पर अपनी ऊर्जा का प्रसारण करेंगे। <ref>द महा चौहान, “अ तबेरनाक्ले ऑफ़ विटनेस फ़ोर  द होली स्पिरिट इन द फाइनल क्वार्टर ऑफ़ द सेंचुरी,” १ जुलाई, १९७४.</ref></blockquote>
<blockquote>[[Special:MyLanguage/Karmic Board|कार्मिक सभा]] ने कहा है कि इस समय पृथ्वी जीवों के विकास में अब वह क्षण आ गया है जब ब्रह्मांड की घड़ी ने संकेत दे दिया है। इस समय समस्त मानव जाति को चाहिए कि वे अपने मनमंदिर को ईश्वर का निवास स्थान बनाने के लिए तैयार करें। बहुत ज़रूरी है कि कम से कम कुछ मनुष्य तो ईश्वर की ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए पूर्णतया शुद्ध हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पृथ्वी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। क्योंकि जब तक ईश्वर की पवित्र ऊर्जा पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में नहीं उतरती पृथ्वी पर जीवन का संतुलन नहीं हो सकता। रात के बारह बजे, जब वर्ष १९७५ प्रारम्भ होगा, ठीक उस समय ईश्वर पृथ्वी पर अपनी ऊर्जा का प्रसारण करेंगे। <ref>द महा चौहान, “अ तबेरनाक्ले ऑफ़ विटनेस फ़ोर  द होली स्पिरिट इन द फाइनल क्वार्टर ऑफ़ द सेंचुरी,” १ जुलाई, १९७४. (“A Tabernacle of Witness for the Holy Spirit in the Final Quarter of the Century,” July 1, 1974.)</ref></blockquote>


फिर महा चौहान ने हमें बताया कि इस सदी के अंतिम कुछ सालों के दौरान ईश्वर चक्राकार गति से ब्रह्मांडीय ऊर्जा पृथ्वी पर भेजेंगे जिससे ईश्वर की पवित्र आत्मा सभी जीवों - पुरुष, स्त्री, बच्चे, तथा प्रकृति - में प्रवेश करेगी। पच्चीस साल के अभ्यास काल के दौरान ये तय किया जाएगा कि अपने समर्पण, त्याग एवं आत्म-शुद्धि द्वारा क्या मानवजाति ईश्वर की पवित्र आत्मा के लिए कोई देवालय स्थापित कर पायी कि नहीं।"</ref>आइबिड</ref>
फिर महा चौहान ने हमें बताया कि इस सदी के अंतिम कुछ सालों के दौरान ईश्वर चक्राकार गति से ब्रह्मांडीय ऊर्जा पृथ्वी पर भेजेंगे जिससे ईश्वर की पवित्र आत्मा सभी जीवों - पुरुष, स्त्री, बच्चे, तथा प्रकृति - में प्रवेश करेगी। पच्चीस साल के अभ्यास काल के दौरान ये तय किया जाएगा कि अपने समर्पण, त्याग एवं आत्म-शुद्धि द्वारा क्या मानवजाति ईश्वर की पवित्र आत्मा के लिए कोई देवालय स्थापित कर पायी कि नहीं।"<ref>आइबिड</ref>


पृथ्वी पर जन्म एवं मृत्यु दोनों समय महा चौहान हमारी सेवा में रहते हैं। जन्म के क्षण वे शरीर में सांस फूंकने और [[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिदेव ज्योत]] को प्रज्वलित करते हैं। इस समय ही त्रिदेव ज्योत को [[Special:MyLanguage/secret chamber of the heart|हृदय के गुप्त कक्ष]] में प्रवेशित किया जाता है।  
पृथ्वी पर जन्म एवं मृत्यु दोनों समय महा चौहान हमारी सेवा में रहते हैं। जन्म के क्षण वे शरीर में सांस फूंकने और [[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिदेव ज्योत]] को प्रज्वलित करते हैं। इस समय ही त्रिदेव ज्योत को [[Special:MyLanguage/secret chamber of the heart|हृदय के गुप्त कक्ष]] में प्रवेशित किया जाता है।  
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महा चौहान की रोशनी आर्थर सैल्मन की संगीत रचना "होमिंग" के माध्यम से ली जा सकती है
महा चौहान की रोशनी आर्थर सैल्मन की संगीत रचना "होमिंग" के माध्यम से ली जा सकती है


== See also ==
<span id="See_also"></span>
== इसे भी देखिये ==


[[Chohans]]
[[Special:MyLanguage/Chohans|चौहान]]


[[Pallas Athena]]
[[Special:MyLanguage/Pallas Athena|पालस एथेना]]


[[Holy Spirit]]
[[Special:MyLanguage/Holy Spirit|पवित्र आत्मा]]


== Sources ==
<span id="Sources"></span>
== स्रोत ==


{{MTR}}, s.v. “The Maha Chohan.”
{{MTR}}, s.v. “द महा चौहान”


[[Category:Heavenly beings]]
[[Category:Heavenly beings]]


<references />
<references />

Latest revision as of 12:09, 15 December 2025

Other languages:
caption
महा चौहान

महा चौहान पृथ्वी लोक पर ईश्वरीय ऊर्जा के प्रतिनिधि हैं। जो इस पद को धारण करता है, वह इस गृह की सभी जीवन प्रणालियों तथा सृष्टि देव साम्राज्य (Elementals kingdom) के लिए पिता-माता भगवान (Father-Mother God|पिता-माता भगवान) और अल्फा और ओमेगा (Alpha and Omega) के ईश्वरीय प्रकाश को दर्शाता है। महा चौहान के आश्रय स्थल का नाम सुख का मंदिर (Temple of Comfort) है, यह श्रीलंका के आकाशीय स्तर पर है - यह स्थान ईश्वरीय ऊर्जा तथा सुख की लौ का आश्रय स्थल भी है।

इनकी समरूप जोड़ी, सत्य की देवी का नाम पालस अथीना है।

"महान स्वामी" का कार्यालय (The office of Great Lord)

महा चौहान का अर्थ है "महा चौहान," और महा चौहान सातों चौहानों (chohans) के सरदार हैं (सात चौहान सात किरणों के निदेशक हैं)। पदानुक्रम (hierarchy) के इस पद को प्राप्त करने के लिए एक ज़रूरी योग्यता है उस व्यक्ति का सातों किरणों में से प्रत्येक किरण पर निपुणता (adeptship) हासिल करना। ये सातों किरणें ही पवित्र आत्मा की श्वेत लौ में विलीन होती हैं। सातों चौहानों के साथ मिलकर, महा चौहान हम जीवात्माओं को ईश्वरीय ऊर्जा की नौ प्रतिभाएं - जिनके बारे में प्रथम कोरिंथियन (Corinthians) १२:४-११ में बताया गया है - ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं।

पहली तीन मूल जातियों (root race) - जिनमें से प्रत्येक ने स्वयं को निर्धारित की गयी १४,००० साल के चक्र में अपनी दिव्य योजना पूरी की थी - के पास पवित्र आत्मा के अपने प्रतिनिधि थे जिन्होंने अपनी-अपनी मूल जातियों के साथ ब्रह्मांडीय सेवा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

अवतार (Embodiments)

caption
होमर और उनके मार्गदर्शक, विलियम-अडोल्फ बौगुएरेउ (१८७४) [Homer and his Guide, William-Adolphe Bouguereau (1874)]

होमर (Homer)

महा चौहान के कार्यालय को जो इस वक्त संभाल रहे हैं, उन्होंने होमर के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। ये एक नेत्रहीन कवि थे। इनकी दो महान रचनाओं - इलियड और ओडिसी (the Iliad and the Odyssey)- में इनकी समरूप जोड़ी पालस अथीना एक मुख्य किरदार हैं। इलियड (Iliad) में ट्रोजन (Trojan) युद्ध के अंतिम वर्ष की कहानी कही गयी है, और ओडिसी ट्रोजन (Odyssey focuses) युद्ध के नायकों में से एक ओडीसियस (Odysseus) की घर वापसी पर केंद्रित है।

ऐतिहासिक रूप से होमर के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि उन्होंने अपनी कविताओं की रचना (ईसा पूर्व) आठवीं या नौवीं शताब्दी में की थी। उस समय भी होमर ने अपनी चेतना को ईश्वरीय सुख (comfort flame) के साथ मिलाया था और अपनी हृदय की लौ से जो तेज (radiance) उन्होंने बनाए रखा वह सृष्टि देव साम्राज्य के लिए एक बहुत बड़ा आशीर्वाद था।

चरवाहा, भारत (Shepherd in India)

पृथ्वी पर उनका अंतिम जन्म भारत में हुआ, और इस जन्म में वे एक चरवाहे थे। चुपचाप काम करते हुए इस जन्म में जो प्रकाश उन्होंने फैलाया उससे लाखों जीवनधाराओं की ईश्वरीय लौ कायम रही। उन्होंने अपने चारों निचले शरीरों को पवित्र आत्मा की लौ में समर्पित किया और अपनी चेतना द्वारा सनत कुमार (Sanat Kumara) की चेतना को विश्व में फैलाया।

उस जन्म के बारे में बात करते हुए महा चौहान कहते हैं:

मैं कई जन्मों में चरवाहा था, तब मैं पहाड़ियों पर भेड़ों की देखभाल करता था और साथ ही भगवान से ज्ञान की प्रार्थना भी करता था ताकि उस ज्ञान को मैं अन्य लोगों में बांट संँकू जो मेरे आस पास थे, जिनकी ज़िम्मेदारी ईश्वर ने मुझे दी थी। और इन सब के बीच देवदूत कई बार मुझे आकाशीय स्तर पर स्थित आत्मा की अकादमियों (academies) में ले गए जहाँ पर उस समय के महा चौहान के सरंक्षण में मैंने बहुत कुछ सीखा और स्वयं को पवित्र आत्मा का आवरण पहनने के योग्य बनाया। [1]

ईश्वरीय ऊर्जा

ईश्वर प्रकृति और मनुष्य दोनों को ही जीवनदायनी ऊर्जा देते हैं इसलिए ईश्वर के प्रतिनिधि को इतना सक्षम होना चाहिए वह अपनी चेतना के माध्यम से इन सभी में प्रवेश कर पाएं और उनकी जीवन बनाए रखने वाली लौ को भी प्रज्वल्लित कर सकें।

वह तत्व जो ईश्वरीय ऊर्जा की लौ के अनुकूल होता है, वह प्राणवायु (oxygen) है। इसके बिना न तो मनुष्य और न ही सृष्टि देव साम्राज्य जीवित रह सकता है। इसलिए महा चौहान की चेतना की तुलना महान केंद्रीय सूर्य के चुंबक (Great Central Sun Magnet) से की जा सकती है। वह चुंबक को उस ग्रह पर केंद्रित करते हैं जो सूर्य से पृथ्वी की ओर उन विकिरणों (emanations) को आकर्षित करता है जो जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

श्वेत-अग्नि के देवदूतों के समूह (जो श्रीलंका द्वीप में स्थित अल्फा और ओमेगा (Alpha and Omega) के आकाशीय आश्रय स्थल में शुद्ध श्वेत लौ (white-fire) की सेवा में सलंग्न हैं) इस कार्य में उनकी मदद करते हैं। ये देवदूत उस लौ से पवित्र अग्नि का मूलतत्त्व ग्रहण करके पृथ्वी के चार निचले शरीरों (four lower bodies) में प्राणवायु (Prana) शक्ति को बनाए रखते हैं।

गुलाबी-लौ (pink-flame) के देवदूत भी महा चौहान के सेवा में तैनात रहते हैं। साथ के लौ कक्ष में, क्रिस्टल फ़ाख़तों (Dove) से सजे क्रिस्टल (crystal) प्याले में एक सफेद लौ स्थिर है, जिसमें गुलाबी रंग की झलक है और आधार पर सोना है, जो दिव्य प्रेम की शक्तिशाली चमक बिखेरती है। ये देवदूत इन लपटों की किरणों को पृथ्वी के चारों कोनों तक, उन सभी के हृदयों तक पहुंचाते हैं जो ईश्वर पिता-माता से सांत्वना और पवित्रता की कामना करते हैं।

पेंटेकोस्ट (Pentecost) के दिन जब ईसा मसीह के शिष्यों के ह्रदय अत्यंत निर्मल और पावन हो गए थे, ईश्वरीय ऊर्जा की जुड़वां लौ (twin flames) आग की लपलपाती हुई जिह्वा (cloven tongues of fire) के रूप में प्रकट हुई।[2]जब ईसा मसीह का ईसाई धर्म का विधिवत सदस्‍य बनने का संस्‍कार किया गया था तो उन्होंने ईश्वर की ऊर्जा को एक फ़ाख़ता (Dove) के रूप में नीचे उतरते हुए एव अपने ऊपर प्रकाश डालते हुए देखा था।"[3] फ़ाख़ता पवित्र आत्मा की जुड़वां लौ (twin flame) का भौतिक स्वरुप है, जिसे पंखों के साथ एक वी (V) के रूप में भी देखा जा सकता है। यह स्त्री और पुरुष के दिव्य ध्रुवों को दर्शाता है और यह भी याद दिलाता है कि जुड़वाँ लौ (twin flame) ईश्वर के उभयलिंगी (androgynous) स्वभाव को प्रदर्शित करती है।

महा चौहान के आश्रय स्थल (retreat) में और उनकी उपस्थिति में व्यक्ति को ईश्वरीय ऊर्जा की लौ का अनुभव होता है। यहां ईश्वर के पवित्र अग्निश्वास की धड़कन भी महसूस होती है जो केंद्रीय सूर्य (Central Sun) से पृथ्वी के प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में जीवन के प्रवाह को लाती है।

महा चौहान ने ईश्वरीय ऊर्जा को एक महान एकीकृत समन्वयक (great unifying coordinator) के रूप में संदर्भित किया है, जो

...प्राचीन काल के एक महान बुनकर (weaver) की तरह वह दिव्यगुरु के प्रकाश और प्रेम का एक बेजोड़ वस्त्र बुनते हैं। ईश्वर की दृष्टि मनुष्य पर केंद्रित होकर प्रकाश की उज्ज्वल किरणों के द्वारा पवित्रता और सुख के जगमगाते अंशों को पृथ्वी की ओर और ईश्वर के बच्चों के हृदयों में प्रवाहित करती है, जबकि मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं, प्रार्थनाएं और सहायता के लिए आह्वान और पुकारें, उन्हें ईश्वर के ब्रह्मांडीय पवित्रता के विशाल आश्रय में ले जाती हैं...

ईश्वरीय ऊर्जा प्रकाश के एक छोटे से बीज के रूप में पृथ्वी के ह्रदय और प्रत्येक पदार्थ में प्रवेश करती है और फिर रूप और अस्तित्व, विचार और धारणा की प्रत्येक कोशिका में फैल कर अध्यात्मविद्या और चेतना का भण्डार बन जाती है। बहुत से लोग यह जान नहीं पाते परन्तु कुछ ज़रूर पहचान जाते हैं। उस दिव्य ज्ञान के प्रकाश को फैलाते हुए जो नश्वर धारणा से परे है और शाश्वतता की सुबह की ताजगी में है, यही प्रकाश हर क्षण को ईश्वर-आनंद से भर देता है—वह आनंद जिसे मनुष्य अपनी चेतना में उठने वाली अनगिनत अनुभूतियों के द्वारा पहचानता है।” [4]

१९७४ (1974) में महा चौहान ने कहा था:

कार्मिक सभा ने कहा है कि इस समय पृथ्वी जीवों के विकास में अब वह क्षण आ गया है जब ब्रह्मांड की घड़ी ने संकेत दे दिया है। इस समय समस्त मानव जाति को चाहिए कि वे अपने मनमंदिर को ईश्वर का निवास स्थान बनाने के लिए तैयार करें। बहुत ज़रूरी है कि कम से कम कुछ मनुष्य तो ईश्वर की ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए पूर्णतया शुद्ध हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पृथ्वी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। क्योंकि जब तक ईश्वर की पवित्र ऊर्जा पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में नहीं उतरती पृथ्वी पर जीवन का संतुलन नहीं हो सकता। रात के बारह बजे, जब वर्ष १९७५ प्रारम्भ होगा, ठीक उस समय ईश्वर पृथ्वी पर अपनी ऊर्जा का प्रसारण करेंगे। [5]

फिर महा चौहान ने हमें बताया कि इस सदी के अंतिम कुछ सालों के दौरान ईश्वर चक्राकार गति से ब्रह्मांडीय ऊर्जा पृथ्वी पर भेजेंगे जिससे ईश्वर की पवित्र आत्मा सभी जीवों - पुरुष, स्त्री, बच्चे, तथा प्रकृति - में प्रवेश करेगी। पच्चीस साल के अभ्यास काल के दौरान ये तय किया जाएगा कि अपने समर्पण, त्याग एवं आत्म-शुद्धि द्वारा क्या मानवजाति ईश्वर की पवित्र आत्मा के लिए कोई देवालय स्थापित कर पायी कि नहीं।"[6]

पृथ्वी पर जन्म एवं मृत्यु दोनों समय महा चौहान हमारी सेवा में रहते हैं। जन्म के क्षण वे शरीर में सांस फूंकने और त्रिदेव ज्योत को प्रज्वलित करते हैं। इस समय ही त्रिदेव ज्योत को हृदय के गुप्त कक्ष में प्रवेशित किया जाता है।

मृत्यु के समय जब जीवात्मा का पारगमन होता है, तब भी महा चौहान मनुष्य के साथ होते हैं । इस समय वे जीवन की लौ और पवित्र श्वास को वापिस लेने के लिए आते हैं। जीवन की लौ और आकाशीय शरीर में लिपटी हुई जीवात्मा तब पवित्र आत्मिक स्व में लौट जाती है। इसी प्रकार, महा चौहान जीवन के हर एक मोड़ पर हमारे साथ रहते हैं। यदि आप निर्णय लेते समय एक पल का विराम लें, ईश्वर का ध्यान करें और कहें - ईश्वर, आइये, मुझे समझाइये - तो आप उनकी मंत्रणा सुन पाएंगे।

महा चौहान की रोशनी आर्थर सैल्मन की संगीत रचना "होमिंग" के माध्यम से ली जा सकती है

इसे भी देखिये

चौहान

पालस एथेना

पवित्र आत्मा

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “द महा चौहान”

  1. महा चौहान, "मैं पवित्र अग्नि की अदालत के समक्ष ईश्वर के सभी अनुयायियों के ज्ञानवर्धन की प्रार्थना करता हूँ।"Pearls of Wisdom, vol. ३८, no. ३३, जुलाई ३०, १९९५.
  2. Acts२:३।
  3. Matt३:१६
  4. द महा चौहान, “द डिसेंट ऑफ़ द होली स्पिरिट (The Descent of the Holy Spirit),” Pearls of Wisdom, vol. ७, no. ४८, २७ नवम्बर, १९६४.
  5. द महा चौहान, “अ तबेरनाक्ले ऑफ़ विटनेस फ़ोर द होली स्पिरिट इन द फाइनल क्वार्टर ऑफ़ द सेंचुरी,” १ जुलाई, १९७४. (“A Tabernacle of Witness for the Holy Spirit in the Final Quarter of the Century,” July 1, 1974.)
  6. आइबिड