एल मोर्या (El Morya)

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Painting of El Morya wearing a yellow turban and a blue robe
दिव्यगुरु एल मोर्या (The Ascended Master El Morya)

एल मोर्या श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) के दार्जिलिंग समिति (Darjeeling Council) के प्रमुख, पहली किरण के चौहान (chohan) और भारत के दार्जीलिंग शहर में स्थित आकाशीय ईश्वरीय इच्छा का मंदिर (Temple of Good Will) के प्रधान हैं। एल मोरया द समिट लाइटहाउस (The Summit Lighthouse) के संस्थापक हैं और सन्देश वाहक मार्क एल प्रोफेट (Mark L. Prophet) और एलिजाबेथ क्लेयर प्रोफेट (Elizabeth Clare Prophet) के गुरु और शिक्षक भी हैं।

एल मोर्या साहस, निश्चितता, शक्ति, स्पष्टवादिता, आत्मनिर्भरता, विश्वसनीयता, विश्वास और पहलकदमी के ईश्वरीय गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ईश्वरीय पिता के सिद्धांतों के गुण हैं: राजनीतिज्ञ, प्रबंधक और शासक। एल मोर्या ने कई जन्मों में सत्ता का मुकुट पहना हैं और अनेक राज्यों पर बुद्धिमानी से शासन किया है। उन्होंने कभी तानाशाह बनकर शासन नहीं किया और यह कभी नहीं चाहा कि प्रजा उनकी इच्छा के अधीन हो। वह अपने पात्रों को ईश्वर की पवित्र इच्छा के प्रति प्रबुद्ध (illumined) आज्ञाकारिता के लिए प्रेरित करते हैं।

एल मोर्या के पूर्वजन्म (El Morya’s embodiments)

तीन देवदूतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अब्राहम (उत्पत्ति १८:९-१५), जैन विक्टर्स (Jan Victors)

एल मोर्या कई पूर्वजन्मों में और अभी भी दिव्य (सक्रिय) रूप में पृथ्वी के लोगों के साथ ईश्वरीय प्रकाश की सेवा में जुटे हुए हैं। इनाक (Enoch) के पुत्र के रूप में, जिन्हें आध्यात्मिक उत्थान के द्वारा ईश्वर अपने साथ ले गए थे (“walked with God and was not for God took him”), एल मोर्या उन ऋषियों में से एक थे जिन्होंने ऊर ऑफ़ द चलडीस (Ur of the Chaldees) सुमेर की भूमि के एक प्राचीन शहर में प्रकाश के उच्च आयामों में प्रवेश किया था और ईरान (Persia) के निवासी अहुरा माज़दा (Ahura Mazda) की अराधना करते थे। तत्पश्चात कई जन्मों के बाद वह फोहाट (fohat) का रचनात्मक उपयोग करने में निपुण हो गए। फोहाट ब्रह्मांडीय चेतना की रहस्यमय प्रेरक महत्वपूर्ण विद्युत शक्ति (शांत या सक्रिय) है जो दिव्य आदेश (decrees) द्वारा ब्रह्मांड, आकाशगंगा या सौर मंडल के विकास, यहां तक ​​कि मनुष्य को अपनी दिव्य योजना को प्रारम्भ से अंत तक पूरा करने के लिए आगे बढ़ाती है।

अब्राहम

मुख्य लेख: अब्राहम

एल मोर्या ने सी. २१०० बी.सी. में अब्राहम (Abraham) के नाम से जन्म लिया, वह पहले आदरणीय यहूदी कुलपिता थे जो इजराइल की बारह जनजातियों (twelve tribes of Israel) के जन्मदाता थे। यहूदी, ईसाई और इस्लाम ये तीनो धर्मों के आदर्श (prototype) और प्रजनक (progenitor) अपनी उत्पत्ति अब्राहम से ही मानते हैं। एक समय था जब विद्वानों ने व्यापक रूप से यह मान लिया था कि अब्राहम या तो एक काल्पनिक (mythical) व्यक्ति थे या कोई खानाबदोश (nomadic or semi-nomadic) या यहूदी थे परन्तु प्रथम विश्व युद्ध के बाद की पुरातात्विक खोजों ने अब्राहम के बारे में जो वर्णन बाइबिल में दिया है उसकी पुष्टि की है।

ईश्वर के बुलावे पर अब्राहम ने मेसोपोटामिया (Mesopotamia) की संस्कृति और पंथ को त्याग सुमेरिया (Sumerian) के शहर उर से प्रस्थान किया। उस समय सुमेरियन सभ्यता अपनी चरम सीमा पर थी। ईश्वर ने उसे उस देश की यात्रा करने के लिए कहा जो वह उसे दिखाएंगें। उससे एक महान राष्ट्र बनाने का वादा किया। द बुक ऑफ़ जेनेसिस (The Book of Genesis) में उनका वर्णन एक समृद्ध व्यक्ति के रूप में किया गया है जो पशु समूह और समुदायों के प्रमुख थे और अपनी एक निजी सेना रखते थे। पड़ोसी समुदायों के नेता उन्हें एक शक्तिशाली राजकुमार के रूप में मानते थे।

अब्राहम ईश्वर में विश्वास रखने वाले व्यक्ति का मूलरूप आदर्श हैं। उनके विश्वास की सबसे बड़ी परीक्षा तब हुई जब ईश्वर ने उन्हें अपने बेटे आइजक (Isaac) का बलिदान देने के लिए कहा। अब्राहम और उनकी पत्नी सेराह (Sarah) ने कई वर्षों तक आइजक के जन्म का इंतजार किया था। आइजक को ईश्वर ने अब्राहम के वंश को "स्वर्ग के सितारों" के रूप में बढ़ाने का वर दिया था। इसके बावजूद अब्राहम ने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया और जैसे ही उन्होंने अपने बेटे को मारने के लिए चाकू उठाया, भगवान के एक दूत ने उन्हें रुकने के लिए कहा - तब अब्राहम ने अपने पुत्र के स्थान पर एक भेड़ को अर्पण किया।

अब्राहम के ईश्वर के प्रति गहन विश्वास के कारण, ईसाई और इस्लाम दोनों के धर्मग्रंथों में उन्हें ईश्वर के मित्र (कुरान की अरबी भाषा में "एल खलील") के रूप में वर्णित किया गया है। पुराने जेरूसलम शहर में जाफ़ा गेट पर कुरान का एक लेख अंकित है - अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है, और अब्राहम उनका प्रिय है।

मेल्चियोर (Melchior)

मुख्य लेख: मेल्चियोर

मेल्चियोर पूर्व के तीन बुद्धिमान पुरुषों में से एक थे। मेल्चियोर के अपने जन्म में उन्होंने उस तारे का अनुसरण किया जिसने उनके वंश के सर्वोत्तम जन्म की पूर्वसूचना दी थी जो उनके आध्यात्मिक वंशजों के लिए ईश्वर के सभी वादों को पूरा करेगा। मेल्चियोर कहते हैं:

बहुत समय पहले एक पूर्वजन्म में जब मेरा नाम मेल्चियोर था ,मैं कुथुमी (Kuthumi) और दवाॅल कूल (Djwal Kul) के साथ पूर्व के तीन बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक था। तब मैं ऊंट पर सवार होकर स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करने आया था। मैं बहुत अच्छी तरह से जानता था कि मेरा जीवन ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण के लिए है। इसी कारण उनके पुत्र (Higher Self) को सदभावना का प्रतीक मानकर, मैं प्रेम-भरे दिल से उनके पास गया और ईश्वर के रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा ली। ये प्रतिज्ञा लेते वक्त मैंने ईश्वर की उस इच्छा का स्मरण किया जो देवदूतों ने "ग्लोरी टू गॉड इन द हाईएस्ट" (Glory to God in the highest) नामक स्तुति गीत में प्रकट की थी।[1]

राजा आर्थर (King Arthur)

मुख्य लेख: राजा आर्थर

आर्थर ने पांचवीं शताब्दी में कैमलॉट (Camelot) के एक रहस्यमय विद्यालय (mystery school) के गुरु के रूप में अध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा की। उन्होंने गोल मेज (Round Table) के दरबार के योद्धा (knights) और भद्र महिलाओं (ladies) को भीतरी पवित्र प्याले (Holy Grail) की खोज करने और दीक्षा (initiation) के माध्यम से आत्मा के रहस्यों को प्राप्त करने के लिए बुलाया। उनके राज्य में इंग्लैंड में एकता, व्यवस्था और शांति कायम थी। संत जरमेन (Saint Germain) राजा आर्थर और उनके योद्धाओं के पवित्र प्याले खोज के रहस्यवादी सलाहकार मर्लिन (Merlin) के रूप में अवतरित हुए थे।

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मध्ययुगीन पुस्तक, बुक ऑफ आवर्स, में दर्शायी गयी थॉमस बेकेट की शहादत (सी.१३९०) {The martyrdom of Thomas Becket, from a medieval Book of Hours (c.1390)}

थॉमस बेकेट (Thomas Becket)

मुख्य लेख: थॉमस बेकेट

थॉमस बेकेट (१११८-११७०) के रूप में वह इंग्लैंड के लॉर्ड चांसलर (Lord Chancellor) थे और हैनरी द्वितीय (Henry II) के अच्छे दोस्त और सलाहकार थे। कैंटरबरी (Canterbury) के आर्चबिशप (archbishop) बनने के बाद उन्होंने चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया हालांकि राजा (हैनरी) ऐसा नहीं चाहते थे। थॉमस बेकेट ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे यह भांप गए थे कि आर्कबिशप के रूप में उनके कार्य राजा (हैनरी) की इच्छा के विपरीत होंगे।

आर्चबिशप (archbishop) बनने के बाद बेकेट ने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं और कूटनीतिक कुशलता का बहुत अच्छा प्रयोग किया। उन्होंने पोप (pope) के पद का उसी प्रबलता के साथ समर्थन किया जितना वह पहले राजा (हैनरी) के पद का किया करते थे। यही नहीं, उन्होंने चर्च की संपत्ति के गैरकानूनी उपयोग और अन्य उल्लंघनों के लिए राजदरबारियों और रईसों का स्पष्ट रूप से बहिष्कार किया। राजा (हैनरी) द्वारा बंदी बनाये जाने की आशंका होने पर बेकेट इंग्लैंड छोड़कर फ्रांस में चले गए। फ्रांस में छह वर्ष तक रहने के बाद उनकी इंग्लैंड के राजा (हैनरी) के साथ कुछ हद तक सुलह हो गयी और वे वापिस इंग्लैंड आ गए। परन्तु यह सुलह ज़्यादा समय नहीं टिकी और उन दोनों में एक नए सिरे से झगड़े शुरू हो गए।

२९ दिसंबर ११७० को कैंटरबरी (Canterbury) के प्रधान गिरजा घर में अदालत के चार योद्धाओं ने बेकेट की बेरहमी से हत्या कर दी - उन योद्धाओं ने राजा (हैनरी) की इस आलोचना को सच मान लिया था कि वह "इस अशांत पादरी" से छुटकारा पाना चाहते हैं। अंत समय में बेकेट ने उन योद्धाओं से कहा: "यदि इंग्लैंड में सभी तलवारें भी मेरे सिर पर तनी हों, तो भी मैं भगवान या पोप को धोखा नहीं दूंगा।" मृत्यु के कुछ वर्षों बाद पाँच सौ से अधिक उपचारात्मक चमत्कारों का श्रेय उन्हें दिया गया, जिसके तीन साल बाद पोप (pope) ने उन्हें संत की उपाधि (canonized) से सम्मानित किया।

Thomas More wearing the chain of office of chancellor
होल्बिन द यंगर द्वारा १५२७ में बनाया गया सर थॉमस मोर का चित्र {Sir Thomas More, by Hans Holbein the Younger (1527) }

थॉमस मोर (Thomas More)

मुख्य लेख: थॉमस मोर

ऐल मोर्या सर थॉमस मोर (Sir Thomas More ) (१४७८-१५३५), के नाम से और मैन फॉर आल सीज़न्स (man for all seasons) के नाम से भी जाने जाते थे। उनकी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था थी और एक समय ऐसा भी था जब वे अपनी आजीविका के लिए किसी धार्मिक कार्य को अपनाना चाहते थे। आत्म - अनुशासन का अभ्यास करने के लिए उन्होंने चार वर्षों से अधिक समय तक असाधारण तपस्या भी की परन्तु बाद में उन्होंने विवाह किया और कुछ समय के बाद उनकी पत्नी और चार बच्चे ही उनके लिए सबसे बड़ी खुशी और एकमात्र सुख का साधन बने। उनका घर चेल्सी (Chelsea) में था जहाँ वे अपने पूरे परिवार - पत्नी, बच्चों और ग्यारह पोते-पोतियों के साथ रहते थे।

अंततः थॉमस मोर (Thomas More) का घर, जिसे वे अक्सर "छोटा आदर्शलोक" (Utopia) कहते थे, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बन गया, जिसकी तुलना इरास्मस (Erasmus) ने "प्लेटो की अकादमी" (Plato’s academie) से की थी। यह सदभावना से पूर्ण घर था जिसमें उस समय के राजा और अनेक विद्वान लोग विचार-विनिमय के लिये आते थे। यहीं पर मोर (Thomas More) ने यूटोपिया (Utopia) नामक पुस्तक लिखी थी जिसमें उन्होंने अंग्रेजी जीवन की अल्पज्ञता (superficiality) और अंग्रेजी कानून की बुराइयों का विनोदपूर्वक खुलासा किया है ।

१५२९ में सर थॉमस मोर को हेनरी अष्टम (Henry VIII) ने इंग्लैंड के लॉर्ड चांसलर (Lord Chancellor) और ग्रेट सील (Great Seal) के रक्षक के रूप में नियुक्त किया। उनकी उपलब्धियां के लिए उन्हें कई बार समान्नित भी किया गया हालांकि वह इस बात के इच्छुक नहीं थे। वह अपनी तत्परता, कार्यकुशलता और समतापूर्ण न्याय के लिए जाने जाते थे। वह गरीब और असहाय लोगों की सहायता करने के उद्देश्य से प्रतिदिन लंदन की गलियों में घूमते थे।

सर थॉमस (Sir Thomas) अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित थे तथा अपने सभी कार्यों को उत्साह से करते थे। जब वहां के राजा हैनरी को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी कैथरीन जो ऐरोगोन (Aragon) की निवासी थी से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और ऐन बोलिन (Ann Boleyn) से विवाह का निश्चय किया, तब थॉमस मोर (Thomas More) ने राजा का साथ नहीं दिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि पोप तलाक का समर्थन नहीं करते थे, तथा तलाक को गिरिजाघर की मान्यता प्राप्त नहीं थी।

१५३२ में अपने करियर के चरम पर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और चेल्सी (Chelsea) चले गए जहां लूथर (Luther) के विरुद्ध मत से चिंतित होकर उन्होंने कैथोलिक (Catholic) मत की रक्षा में अपना लेखन जारी रखा। वहां, दोस्तों और कार्यालय के बिना, थॉमस मोर और उनका परिवार अत्यंत गरीबी में रहे। राजा हैनरी के प्रति उनकी सार्वजनिक अस्वीकृति के कारण राजा का बहुत अपमान हुआ था इसलिए राजा ने अपनी छवि को पुनः स्थापित करने के लिए थॉमस मोर को बदनाम किया।

जब थॉमस मोर ने सर्वोच्चता की शपथ (Oath of Supremacy) लेने से इनकार किया तो उन्हें टॉवर ऑफ लंदन (Tower of London) में कैद कर दिया गया। शपथ लेने का अर्थ होता कि वह पोप की सर्वोच्चता को अस्वीकार करके राजा हैनरी को अंग्रेजी गिरजा घर का प्रमुख स्वीकार कर रहे हैं। पंद्रह महीने बाद, झूठे सबूतों के आधार पर उन्हें राजद्रोह का दोषी ठहराया गया। ६ जुलाई १५३५ को टॉवर हिल (Tower Hill) पर उनका सिर काट दिया गया। थॉमस मोर ने हमेशा स्वयं को "राजा का अच्छा सेवक, लेकिन भगवान का पहला सेवक" बताया था। इसके लगभग ४०० साल बाद १९३५ में थॉमस मोर को संत की उपाधि (canonized) से सम्मानित किया।

थॉमस मोर (Thomas More) अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और खुशमिज़ाज़ी के लिए जाने जाते थे। लेखक एंथनी केनी (Anthony Kenny) का मानना ​​है कि थॉमस मोर का विश्वास था कि कोई भी भला मनुष्य प्रतिकूल परिस्थितियों और संकट का सामना चुपचाप त्यागपत्र देकर या सिद्धांत के उत्कृष्ट बयान के साथ नहीं, बल्कि एक हँसी-मजाक के साथ करता है। थॉमस मोर के सबसे आधुनिक जीवनी लेखकों में से एक के अनुसार, 'जब थॉमस मोर सबसे ज़्यादा नाखुश होते थे, तभो वह सबसे ज़्यादा मज़ाक भी करते थे।'

वकील, न्यायाधीश, राजनेता, विद्वान व्यक्ति, लेखक, कवि, किसान, और पुरोहिताई संबंधी जीवन के प्रेमी, तपस्वी, पति और पिता, महिलाओं की शिक्षा के सर्वोच्च समर्थक, मानवतावादी और संत, थॉमस मोर अंग्रेजी पुनर्जागरण के लोगों में अग्रणी स्थान पर थे।

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अकबर धार्मिक सभा के आयोजक थे

अकबर

मुख्य लेख: अकबर महान

मोर्या का अगला जन्म अकबर महान (१५४२-१६०५) के रूप में हुआ, जो भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक और एक महान शासक थे। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने हिंदुओं के विरुद्ध सभी भेदभावों को समाप्त किया और मुसलमानों के समकक्ष अधिकार देते हुए हिन्दुओं को सरकार में भी शामिल किया। उनकी नीतियों को अपने समय की सबसे प्रबुद्ध नीतियों में से एक माना जाता था।

थॉमस मूर

मुख्य लेख: थॉमस मूर

मोर्या आयरिश कवि (१७७९-१८५२) थॉमस मूर भी थे - जिन्होंने कई गीत लिखे। उनका सबसे प्रसिद्द गीत है - "बिलीव मी इफ ऑल दोज़ एंडियरिंग यंग चार्म्स" (Believe Me If All Those Endearing Young Charms)। यह गीत आज भी सर्वोच्च अच्छाई के प्रतिनिधि के रूप में, ईश्वर की इच्छा के प्रति उनके गहन प्रेम और इस संसार के हर बोझ से अछूती आत्मा की शुभ्र, निष्कलंक छवि को दर्शाता है।

एल मोर्या खान

अपने अंतिम जन्म में पृथ्वी पर एल मोर्या का जन्म भारत में एक राजपूत राजकुमार के रूप में हुआ था जो बाद में हिमालय के पहाड़ों पर भ्रमण करने वाले भिक्षु (monk) बन गए। मास्टर एम (Master M.) के रूप में उन्होंने कुथुमी (Kuthumi) और दवाॅल कूल (Djwal Kul) के साथ मिलकर, हेलेना पी. ब्लावात्स्की (Helena P. Blavatsky) के लेखन के माध्यम से मानव जाति को ईश्वर के नियमों और पदक्रम की प्रक्रिया से परिचित कराने का प्रयास किया। मास्टर के एच् (Master K.H.) और संत जरमेन (Saint Germain) के साथ मिलकर उन्होंने थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) की स्थापना की।

१८९८ में मोर्या का आध्यात्मिक उत्थान हुआ परन्तु आज भी सदभावना की ज्योत और अवतरित शिष्यों के माध्यम से पृथ्वी पर राम राज्य के लिए वह अपना महान कार्य जारी रखे हुए हैं।

उनके नाम का अर्थ

एल मोर्या ने कहा है कि उसका नाम माराया है. माँ का तात्पर्य ईश्वर के मातृ रूप से है। रा का अर्थ पिता है, ईश्वर का पितृ रूप - प्राचीन मिस्रवासी पिता के लिए रा शब्द का प्रयोग करते थे। आज हम रा को किरण कहते हैं - सूर्य से आने वाली किरण। या ज्वलंत योड (flaming Yod) अथवा पवित्र आत्मा की शक्ति है, जो दिव्य चेतना की त्रिमूर्ति का तीसरा भाग है। प्राचीन हिब्रू में एल का तात्पर्य एलोहिम (Elohim) या ईश्वर से है।

तो हम ऐसा कह सकते हैं कि मोरया एल, या माराया एल नामों के पीछे एक ऐसा अनाम व्यक्ति है जिसने जानबूझकर यह नाम चुना ताकि वह भगवान की महिमा कर सकें। फिर ईश्वर ने उन्हें एक नया नाम दिया - एक ऐसा नाम जिसका इस्तेमाल वह ईश्वर की स्तुति के लिए करते हैं।

श्री मगरा (Sri Magra) और कई अन्य महान व्यक्तियों के नामों का विश्लेषण करने पर हमें यह पता चलता है कि नामों की पहचान हमेशा ईश्वरत्व के साथ की गई है - व्यक्ति तो स्वयं ईश्वरत्व में लीन हो गए हैं।

एल मोर्या का वर्तमान लक्ष्य

दार्जिलिंग समिति के प्रमुख

हिमालय की तलहटी में बसे भारत देश के शहर दार्जिलिंग में आकाशीय स्तर पर सदभावना का मंदिर (Temple of Good Will) है, एल मोर्या यहाँ के प्रमुख हैं। यह आश्रय स्थल एक ऐसा मंडल का बलक्षेत्र है जहाँ से सौर (solar) पदक्रम पृथ्वी पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा भेजते हैं। दार्जिलिंग समिति तथा ब्रदर्स ऑफ डायमंड हार्ट (Brothers of the Diamond Heart) के सदस्यों के साथ मिलकर एल मोर्या ईश्वर की इच्छा को संगठित, विकसित, निर्देशित और कार्यान्वित करके मानव जाति की सहायता करते हैं।

एल मोर्या कहते हैं:

मैं दार्जिलिंग आश्रय स्थल के महासंघ से लोक सेवा प्रदान करता हूँ। यहां मैं ईश्वर की इच्छा के अनुरूप चलने वाले अन्य भाइयों के साथ मिलकर पृथ्वी पर विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों में शिक्षक, वैज्ञानिक और संगीतकारों और उन लोगों को जो ईश्वर की इच्छा के अनुसार शासन करते हैं- मैं उनसे परामर्श करता हूँ। ईश्वर की इच्छा मनुष्यों के प्रत्येक कार्य में लागू होती है और हर एक कार्य की रूपरेखा ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही बनाई जाती है। यह ही प्रत्येक कार्य का आधार है। आपके शरीर में हड्डियों का ढांचा ईश्वर की इच्छा से ही बना है, यह ही भौतिक ऊर्जा है, यह ही आकाशीय अग्नि है। ईश्वर की इच्छा आपके हृदय में ज्वलंत हीरा है।[2]

ईश्वर का हीरे जैसा चमकता मनुष्य में का दिमाग ही हर एक प्रयास का मूल (हृदय) है। लोक सेवकों, विश्व और समुदाय के नेताओं और सार्वजनिक पद पर नियुक्त व्यक्तियों को नींद के दौरान सूक्ष्म शरीर के माध्यम से तथा उनके विभिन्न जन्मों के बीच के समय में ईश्वर की इच्छा के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है - उन्हें बताया जाता है की किस तरह वे धर्म, व्यवसाय, और शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वर की इच्छा के अनुसार काम कर सकते हैं। दिव्यगुरु तथा पृथ्वी पर रहने वाले गुरु और उनके शिष्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं और उनके समाधान के बारे में चर्चा करने के लिए मोर्या के आश्रय स्थल में अक्सर मिलते हैं। यहीं पर दिव्यगुरु एल मोर्या ने १९६३ में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी (John F. Kennedy) के निधन के बाद उनका स्वागत किया था।

समिट लाइटहाउस की स्थापना

१९२० और १९३० के दशक के दौरान दिव्यगुरु एल मोर्या ने निकोलस रोरिक और हेलेना रोरिक (Nicholas and Helena Roerich) के साथ काम किया, जिन्होंने कई प्रकाशित कार्यों में अपने लेखन को प्रस्तुत किया।

एल मोर्या (El Morya) ने १९५८ में वाशिंगटन, डी.सी.(Washington, D.C.) में द समिट लाइटहाउस (The Summit Lighthouse) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सन्देश वाहकों (Messengers) मार्क और एलिजाबेथ प्रोफेट (Mark and Elizabeth Prophet) को दी गई दिव्यागुरुओं की शिक्षाओं को प्रकाशित करना था। अपने विभिन्न अवतारों में ईश्वर की इच्छा के सिद्धान्तों को धरती पर स्थापित करने के उनके प्रयासों का यह एक भाग है।

दार्जिलिंग समिति की प्रायोजक (sponsored) योजनायें जो इन सन्देश वाहकों के कई प्रयासों के बाद संभव हुई: १९६१ में संत जर्मेन द्वारा ब्रह्मांडीय नियमों में आदेश स्थापित करने के लिए कीपर्स ऑफ़ द फ्लेम फ्रटर्निटी (Keepers of the Flame Fraternity) की स्थापना; मदर मैरी, जीसस और कुथुमी द्वारा मारिया मोंटेसरी (Maria Montessori) के सिद्धांतों और दिव्यगुरुओं की शिक्षाओं पर आधारित मोंटेसरी इंटरनेशनल (Montessori International) ; समिट यूनिवर्सिटी (Summit University) की स्थापना; और चर्च यूनिवर्सल एंड ट्राईमफेंट (Church Universal and Triumphant) की स्थापना पर ईश्वर की स्वीकृति की प्राप्ति, श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) के अध्यात्मिक रहसयमयी विद्यालय (mystery school), और आत्मा और परमात्मा की दीक्षा के मार्ग द्वारा आध्यात्मिक उत्थान से युक्त पूर्व और पश्चिम के दिव्य और अदिव्य सामाजिक सदस्य।

कुथुमी और दवाॅल कूल के साथ किया गया कार्य

६ जनवरी १९९८ को एल मोर्या ने हमें बताया कि तीन विद्वान पुरुष (Three Wise Men), एल मोरया, कुथुमी (Kuthumi) और दवाॅल कूल (Djwal Kul), हमें आध्यात्मिक उत्थान (ascension) के मार्ग पर चलने की चाबियाँ देंगे और वे उन सबकी सहायता करेंगे जो इस जीवन में आधायत्मिक उत्थान के इच्छुक हैं। ये दिव्यगुरु हमें हमारे कर्मों को संतुलित करने में मदद करेंगे, और वे तब तक ऐसा करेंगें जब तक कि कुछ प्रमुख जीवात्माओं का आध्यात्मिक उत्थान नहीं हो जाता।

एल मोर्या, कुथुमी और दवाॅल कूल हृदय की त्रिज्योति लौ (threefold flame) के तीन रंगों की ज्योति का प्रतिनिधित्व करते हैं - नीली ज्योत एल मोर्या की है; पीली ज्योत कुथुमी की है और गुलाबी ज्योत दवाॅल कूल की है। ये तीनों हमारी त्रिज्योति लौ को अपनी त्रिज्योति लौ के साथ संतुलित करने के लिए आते हैं। यदि आप इन तीनो की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं तो आप अपनी आत्मिक क्षमता को पहचान पाते हैं तथा ईश्वरत्व तक पहुँचते हैं।

मुझे-नहीं-भूलना

एल मोर्या से प्राप्त शिष्यता

१९९५ में मोर्या ने बताया कि उनका चेला बनने के लिए क्या करना पड़ता है:

स्थिरता वह प्रमुख गुण है जो मुझे उन लोगों में चाहिए जो वास्तव में मेरे साथ एक होने की इच्छा रखते हैं। प्रिय, अगर मैं आपको व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित करूंगा, तो आपको मुझे अटल स्थिरता (unflinching constancy) देनी होगी जो आपके मन में ईश्वर की इच्छा की नीली लौ के अवशोषण (absorption) द्वारा स्थिर स्तर बनाए रखेगी और इस तरह दिन प्रति दिन आप पहली किरण की पवित्र अग्नि में प्रवेश करोगे। आपको किसी भी डांट, किसी भी सुधार को तुरंत स्वीकार करने और फिर तत्परतापूर्वक स्वयं-सुधार करने के लिए तैयार रहना होगा। आपके पास दिव्यगुरुओं को दिव्य आदेश (decrees) देने की गति शक्ति का होना आवश्यक है जो मुख्य रूप से पहली किरण की सेवा करते हैं। आप नीले रंग के दिव्य आदेशों में से कोई भी (या सभी) कर सकते हैं - सूर्य (Surya) के लिए हो, या फिर हिमालय (Himalaya) के लिए; वैवस्वता (Vaivasvata) के लिए या फिर महादेवदूत माइकल के लिए।

आप आश्वस्त रहिये कि जब आप स्वयं को नीली किरण के गुणों से पूरी तरह से संतृप्त (saturate) कर लेते हैं और अपने मन की हर उस अप्रत्याशित (out-of-step) स्थिति के प्रति सचेत रहते हैं जो आपको ईश्वर के रास्ते से भटका सकती है, तो मैं आपका समर्थक बन जाता हूँ। और एक बार जब मैं किसी शिष्य का समर्थक (champion) बन जाता हूँ तब अंत तक उसका साथ नहीं छोड़ता। तो आप इस बात को समझिये कि मैं आपको अपना चेला बनाने के कार्य को सहजता से नहीं लेता।

आपमें से कई शिष्य बनने के रास्ते पर चल रहे हैं। लेकिन मैं आपका कई वर्षों तक, कभी-कभी जीवन भर तक, निरीक्षण करता हूँ जब तक मुझे स्वयं सर्वशक्तिमान ईश्वर से संकेत मिलता है कि मैं किसी और का बोझ अपने ऊपर ले सकता हूँ और उसे अपना शिष्य बना सकता हूँ।

प्रिय, आप इस बात को समझिए कि स्वयं को भगवान की इच्छा का सेवक बनाना बहुत गौरव की बात है। इस अवस्था में आप सेवक के रूप में आगे बढ़ते जाएंगे और आपके चार निचले शरीरों और आपके जीवन की परिधि (circumference) के चारों ओर नीले रंग के कई घेरे बन जाएंगे। जब आप जीवन की कई अस्थिर एवं विनाशकारी परिस्थितियों में भी सही रास्ते पर चलते रहते हैं तो यह सिद्ध हो जाता है कि आप एक पहले क्रम के शिष्य हैं। तब दार्जीलिंग समिति में आपका अभिषेक किया जा सकता है।

जी हाँ, ये एक बहुत विशेष अवसर है और हर मनुष्य अपने आप को इस योग्य बना सकता है। मैं इसके बारे में बात कर रहा हूं क्योंकि मैंने पृथ्वी का सर्वेक्षण किया है और इस कक्षा में दिए गए उपदेशों को सुना है। मैं समझता हूं कि अगर लोगों को इन दिव्यगुरुओं की शिक्षाओं के अस्तित्व के बारे में पता चले तो बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जो इन शिक्षाओं को खोजेंगे।

क्योंकि मैं इस गतिविधि (activity) और इस पथ के लिए लाखों जीवात्माओं को प्रायोजित (sponsor) करने वाला हूँ, मुझे यह सुनिश्चित करना होगा कि आप और जिन लोगों ने इस संस्था की स्थापना का पृथ्वी लोक पर आधार बनाया है वे मेरे सच्चे शिष्य हैं।[3]

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एल कैपिटन, योसेमिटी नेशनल पार्क

एल मोर्या के आश्रय स्थल

मुख्य लेख: सदभावना का मंदिर

श्वेत महासंघ (Great White Brotherhood) की दार्जिलिंग समिति के प्रमुख के रूप में, मोर्या दार्जिलिंग में अपने आश्रय स्थल, जिसे ईश्वर की इच्छा का आश्रय स्थल (Retreat of God’s Will) कहते हैं, वँहा गोलमेज बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। यहाँ दुनिया के राजनेता और ईश्वर की इच्छा में निष्ठा रखने वाले पुरुष और महिलाएं अपने सूक्ष्म शरीरों में उनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए एकत्रित होते हैं।

मोर्या का दूसरा आश्रय स्थल एल कैपिटन, योसेमिटी वैली (El Capitan, in Yosemite Valley), कैलिफोर्निया में है

सर एडवर्ड एल्गर (Sir Edward Elgar) ने अपनी संगीत रचना "पोम्प एंड सर्कमस्टेंस" (Pomp and Circumstance) में एल मोर्या का मूलराग (keynote) प्रस्तुत किया है - यह राग उनकी इलेक्ट्रॉनिक उपस्थिति (Electronic Presence) की आवृत्तियों (frequencies) को आकर्षित करता है। नीले गुलाब और फोरगट-मी-नॉट (forget-me-not) एल मोर्या के फूल हैं, और उनकी सुगंध चंदन की है।

इसे भी देखिये

चौहान

एल मोर्या का आश्रम

एल मोर्या का प्रकाश रुपी उपहार

अधिक जानकारी के लिए

El Morya, The Chela and the Path: Keys to Soul Mastery in the Aquarian Age

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Lords of the Seven Rays

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats

El Morya, The Chela and the Path: Keys to Soul Mastery in the Aquarian Age

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

मार्क एल प्रोफेट, ६ अगस्त १९७२

  1. एल मोर्या, जुलाई ३, १९६५.
  2. एल मोर्या, “टू अवेकन अमेरिका टू ऐ वाइटल पर्पस,” (To Awaken America to a Vital Purpose) १६ अप्रैल १९७६, Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Lords of the Seven Rays, पुस्तक नंबर २ के दूसरे अध्याय से.
  3. एल मोर्या, "क्लीन हाउस !”Pearls of Wisdom, vol. ३८, no. २६.